scorecardresearch
 

बिहारः RJD ने बदली रणनीति, विधानसभा चुनाव में कितनी होगी कारगर?

आरजेडी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति में कुछ फेरबदल कर सकती है. मुस्लिम-यादव गठजोड़ के सहारे चल रही आरजेडी अब अति पिछड़ा, दलित को भी साथ लेकर चलना चाहती है.

Advertisement
X
आरजेडी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ फेरबदल करेगी (फाइल फोटो-PTI)
आरजेडी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ फेरबदल करेगी (फाइल फोटो-PTI)

Advertisement

  • जिलाध्यक्षों की सूची पर तेजस्वी यादव की मुहर लगेगी
  • आरजेडी में अति पिछड़ा, दलित को भी मिलेगा प्रतिनिधित्व

राष्ट्रीय जनता पार्टी (आरजेडी) के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह बुधवार को प्रदेश कार्यालय में दिन भर इस इंतजार में बैठे रहे कि अब उनकी तरफ से भेजी गई जिलाध्यक्षों की सूची पर तेजस्वी यादव की मुहर लगेगी. लेकिन अंततः मुहर नहीं लगी और उनका दिन भर का इंतजार इंतजार में ही रह गया. जगदानंद सिंह ने घोषणा की थी ये सूची 5 फरवरी को जारी कर दी जाएगी. लेकिन ऐसा हो न सका.

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक तेजस्वी यादव अभी दिल्ली के चुनाव में व्यस्त हैं. हालांकि उन्हें बुधवार को पटना लौटना था लेकिन किसी कारणवश वो नहीं आ सके. उनके कार्यक्रम में तब्दीली आ गई. लिहाजा उन्होंने जिला अध्यक्षों की लिस्ट को फाइनल नहीं किया. अब संभावना जताई जा रही है कि 6 फरवरी को इसका ऐलान हो सकता है. आरजेडी के बिहार में 50 संगठन जिला हैं. सभी जिलों में प्रदेश स्तर से ही जिलाध्यक्षों के नाम का ऐलान होना था.

Advertisement

ये भी पढ़ेंः आरजेडी में दो राजपूत नेताओं में कलह, लालू यादव ने ऐसे सुलझाया झगड़ा

इन्हीं संगठनों के गठन के लिए आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को चिठ्ठी लिखी थी और बाद में वो उन से मिलने रांची भी गए थे. रघुवंश प्रसाद सिंह ने आरजेडी के संगठन को मजबूत करने के लिए पत्र में कई सुझाव दिए थे. इस पर उन्होंने लालू प्रसाद यादव से चर्चा भी की.

पार्टी बदलेगी रणनीति

माना जा रहा है कि आरजेडी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस बार अपनी रणनीति में कुछ फेर बदल कर सकती है. माई समीकरण यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ के सहारे चल रही आरजेडी अब अति पिछड़ा, दलित को भी साथ लेकर चलना चाहती है.

ये भी पढ़ेंः CAA और NRC पर लालू यादव का तंज, CM नीतीश कुमार को कहा पलटूराम

लिहाजा, संगठन में इनकी संख्या बढ़ेगी तो जाहिर है कि कुछ पुराने चेहरे किनारे किए जाएंगे. पार्टी की सोच है कि केवल मुस्लिम-यादव गठजोड़ से सत्ता नहीं हासिल की जा सकती है. ऐसे में समाज के अन्य तबकों को जोड़ने के लिए उन्हें प्रतिनिधत्व भी देना पड़ेगा. इस तरह संगठन के स्तर पर यादवों की संख्या में कमी आ सकती है. मुस्लिमों की संख्या भी बहुत ज्यादा नहीं होगी क्योंकि पार्टी जानती है कि इनके पास विकल्प नहीं है.

Advertisement

Advertisement
Advertisement