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Opinion: बिहार में शरद-मांझी टकराव

बिहार की राजनीति लोकसभा चुनाव के बाद से लगातर करवट ले रही है. पार्टी की जबर्दस्त पराजय के बाद नीतीश कुमार ने महादलित नेता जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनवाकर पर्दे के पीछे से शासन चलाने की व्यवस्था की. लेकिन वह राजनीति से पूरी तरह से अलग नहीं हो पाए थे और उनके मन में मोदी के प्रति जो भावना थी उससे प्रेरित होकर उन्होंने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाया.

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बिहार की राजनीति लोकसभा चुनाव के बाद से लगातर करवट ले रही है. पार्टी की जबर्दस्त पराजय के बाद नीतीश कुमार ने महादलित नेता जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनवाकर पर्दे के पीछे से शासन चलाने की व्यवस्था की. लेकिन वह राजनीति से पूरी तरह से अलग नहीं हो पाए थे और उनके मन में मोदी के प्रति जो भावना थी उससे प्रेरित होकर उन्होंने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाया.

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यह वही लालू यादव हैं जिनके शासन काल को कोई याद तक नहीं करना चाहता. उन्हें हराकर नीतीश ने कुशासन से सुशासन का नारा देकर बिहार की गद्दी संभाली और बढ़िया काम किया. लेकिन अब वही नीतीश बीजेपी से लोहा लेने के लिए लालू से हाथ मिला रहे हैं और बिहार की लगाम संयुक्त रूप से उन्हें देने की तैयारी में हैं. इस तैयारी में उनके साथ पार्टी के अध्यक्ष शरद यादव भी हैं.

शरद यादव देश के उन नेताओं में हैं जो दिल्ली के तुगलक रोड स्थित अपने अति शानदार बंगले में सुकून से दिन गुजारते हैं. यहीं से वह बिहार की बागडोर खींचते रहते हैं. उनसे पूछा जाए कि अपनी पार्टी जेडी(यू) के विकास में उनका क्या योगदान है? वह यहां से बैठकर अपनी सुविधा से राजनीति करते रहते हैं.

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अब वह बिहार में फिर से शायद यादवी शासन की पुनरावृति चाहते हैं और इसलिए लालू यादव से हाथ मिला बैठे हैं. इससे उनकी खुद की स्थिति मजबूत हो जाएगी और उनका प्रभाव बढ़ेगा. बहरहाल जिस तरह से शरद यादव जीतन राम मांझी के साथ बर्ताव कर रहे हैं उससे उनकी मानसिकता का पता चलता है. वह जल्दी से जल्दी उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं ताकि बिहार में उनका प्लान सफल हो.

लेकिन सवाल है कि जीतन राम मांझी ने क्या गलत किया कि उन्हें पद से इस तरह अचानक हटा दिया जाए? वह ईमानदार और कर्मठ मुख्यमंत्री के रूप में दिखे. उन्हें बिहार की जनता के हर वर्ग का सम्मान और समर्थन मिला है तो फिर एक एक तानाशाह की तरह उन्हें हटने का हुक्म देने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष को तो नहीं है. मांझी का मु्ख्यमंत्री बनना बिहार के दलितों की वर्षों की आकांक्षा की परिणति थी लेकिन अब उन्हें हटाने की साजिश रची जा रही है.

बिहार में लालू यादव ने पहले दलितों को खूब सपने दिखाए और खुद सत्ता पर एक दशक से ज्यादा समय तक काबिज रहे. यही काम नीतीश कुमार ने किया. उन्होंने मांझी को एक सोची समझी रणनीति के तहत मुख्य मंत्री बनाया. अब जब उन्हें लग रहा है कि मोदी की लहर कम हो गई है तो वह मुख्य मंत्री पद चाहने लगे. यहां पर उनसे यही सवाल किया जा सकता है कि अब ऐसा क्या हो गया कि वे इस पद की ओर टकटकी लगाने लगे? अगर जेडी(यू) मांझी को हटाती है तो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा और इससे पार्टी की किरकिरी तो होगी ही नीतीश कुमार के बारे में भी लोगों की राय बदलेगी.

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