बिहार के सोनपुर में गंगा और गंडक नदी के संगम पर पूरे एक महीने चलने वाला प्रसिद्ध सोनपुर मेला इस साल पांच नवंबर से शुरू हो रहा है. सारण और वैशाली जिले की सीमा पर प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पूर्व शुरू होने वाले इस मेले की तैयारी अंतिम चरण में है. इस मेले का उद्घाटन बिहार के पर्यटन मंत्री जावेद इकबाल अंसारी करेंगे. उद्घाटन समारोह में सरोजा वैद्यनाथन का भरत नाट्यम भी प्रस्तुत किया जाएगा.
पौराणिक महत्व वाले इस हरिहर क्षेत्र मेले में प्रत्येक साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं. इस मेले की प्रसिद्धि वैसे तो सबसे बड़े पशु मेले के रूप में है, मगर सभी प्रकार के सामान मिलते हैं और लोग रंगारंग कार्यक्रमों का लुत्फ भी उठाते हैं. यहां देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए तो पहुंचते ही हैं, मेले का मनोरम दृश्य देखने विदेशी सैलानी भी खिंचे चले आते हैं. इस मेले में इसके अलावा उद्योग विभाग द्वारा बनाया गया आर्ट ऐन्ड क्राफ्ट विलेज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहता है. मेले में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए इस दौरान प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को गंडक आरती की जाएगी.
इस मेले की शुरुआत मौर्य काल में हुई थी. चंद्रगुप्त मौर्य अपनी सेना के लिए हाथी खरीदने यहां आते थे. स्वतंत्रता आंदोलन में भी सोनपुर मेला क्रांतिकारियों के लिए पशुओं की खरीद के लिए पहली पसंद रहा.
इस मेले में हाथी, घोड़े, ऊंट, कुत्ते, बिल्लियां और विभिन्न प्रकार के पक्षी सहित कई पशु-पक्षियों का बाजार सजता है. यह मेला केवल पशुओं के कारोबार का बाजार नहीं, बल्कि परंपरा और आस्था दोनों का मिलाजुला स्वरूप भी है.
इस मेले को लेकर एक पौराणिक कथा भी जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि भगवान के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए. कोणाहारा घाट पर जब गज पानी पीने आया तो उसे ग्राह ने मुंह में जकड़ लिया और दोनों में युद्ध शुरू हो गया. युद्ध कई दिनों तक चला. इस बीच गज जब कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु से बचाने की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर गज को ग्राह से मुक्ति दिलाई.
इसी स्थान पर दो पशुओं के बीच युद्ध होने और विष्णु के हस्तक्षेप से युद्ध विराम होने के कारण यहां पशुओं का बड़ा मेला लगता है. इसी जगह हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है. कुछ लोग मानते हैं कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान राम ने सीता स्वयंवर में शामिल होने के लिए मिथिला जाते समय किया था.
सोनपुर मेले के विषय में कहा जाता है कि पूर्व में मध्य एशिया से व्यापारी फारसी नस्ल के घोड़ों, हाथी और ऊंट के साथ यहां आते थे. इस मेले की विशेषता है कि यहां सभी पशुओं का अलग-अलग बाजार होता है. विक्रेता ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपने पशुओं को खूब सजा-संवार कर रखते हैं. इस मेले में नौटंकी, पारंपरिक संगीत, नाटक, मैजिक शो, सर्कस जैसे कार्यक्रम लोगों के मनोरंजन के लिए महीनाभर चलते रहते हैं.
सारण जिले के जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने बताया कि मेले के लिए तैयारी अंतिम चरण में है. मेले में सुरक्षा को लेकर पुख्ता प्रबंध किए गए हैं. उन्होंने बताया कि पहली बार इस मेले में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ‘गज शाही स्नान’ कराए जाने का निर्णय लिया गया है. इसके लिए घाट भी बनवाए जा रहे हैं.
इधर, बिहार राज्य पर्यटन विभाग आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के ठहरने के लिए आधुनिक सुख-सुविधा के साथ ग्रामीण साजो-सामान वाले 1000 कॉटेज बनवा रहा है. पिछले वर्ष ऐसे 490 कॉटेज बनवाए गए थे.
सोनपुर बिहार की राजधानी पटना से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह अपने बहुत बड़े प्लेटफॉर्म के लिए भी मशहूर है.