जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से कई नेता निकले और देश के विभिन्न प्रदेशों की राजनीति में छा गए. समाजवादी मूल्यों के साथ सियासी सफर की शुरुआत कर अपने संघर्षों के बूते लोकप्रियता और सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने वाले ऐसे ही नेताओं की फेहरिस्त में लालू प्रसाद यादव का नाम भी शुमार किया जाता है. 11 जून 1948 को जन्मे लालू ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद उसी की छाया में पिछड़ी जातियों को एकजुट किया. खुद को पिछड़ों की आवाज के रूप में प्रस्तुत करने में सफल रहे लालू 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और फिर राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
सन 1995 का विधानसभा चुनाव जीत कर लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने लालू ने 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल नाम से अपनी पार्टी बना ली. 1990 से 2005 के बीच 7 दिन छोड़कर (2000 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन 7 बाद ही सरकार गिर गई थी) लगातार प्रदेश की सत्ता पर अपना कब्जा बरकरार रखने वाले लालू चारा घोटाला मामले में जेल में बंद हैं और उनकी पार्टी आज अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. वह भी तब, जब लालू ने 2005 में जिन नीतीश के हाथों सत्ता गंवाई थी, उन्हीं नीतीश के भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से रूठने पर तुरंत हाथ मिला पार्टी को बेहतर स्थिति में ला दिया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद विजय रथ पर सवार भाजपा को नीतीश के साथ मिलकर हराने के बाद अपने बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री और तेज प्रताप यादव को मंत्री बनवा दिया था.
इतने पर भी लालू के जेल जाने के बाद कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुकीं उनकी पत्नी राबड़ी देवी और दोनों बेटे विरासत संभालने में नाकाम सिद्ध हुए. अपनी स्थापना के बाद पहली बार आरजेडी लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई और लालू की बेटी मीसा भारती भी चुनाव हार गईं. कभी बिहार की सियासत का सिरमौर रही आरजेडी की इस हालत के पीछे कई कारण नजर आते हैं.
अधिक सीटें पाकर भी मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश को दिया जाना नहीं पचा पाया लालू का परिवार
आरजेडी के अर्श से फर्श तक के सफर के लिए लालू के परिवार का 2015 के विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें जीतने के बावजूद भी कम सीट वाले नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री बने रहना लालू का परिवार पचा नहीं पाया. जानकारों की मानें तो उपमुख्यमंत्री तेजस्वी और तेज प्रताप सरकार पर अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए अनावश्यक दबाव भी बनाने लगे थे, जिससे नीतीश असहज महसूस कर रहे थे. दोनों के व्यवहार और बड़बोलेपन से आजिज आकर नीतीश ने अलग राह चुन ली.
तेजस्वी-तेज प्रताप के मनमुटाव से भी पड़ा नकारात्मक प्रभाव
तेज प्रताप ने कई अवसरों पर छोटे भाई तेजस्वी को अर्जुन बताते हुए अपनी भूमिका कृष्ण की बताई. लेकिन दोनों भाइयों में मनमुटाव की खबरें भी आम रहीं. तेज प्रताप का घर छोड़ काशी का भ्रमण हो या लोकसभा चुनाव में अपने पसंदीदा उम्मीदवार उतारना, दोनों भाइयों के बीच खींचतान का भी नकारात्मक संदेश गया.
वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा
आरजेडी की दुर्दशा के पीछे वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा भी बड़ी वजह है. लालू के समय पार्टी में नंबर दो का ओहदा रखने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे वरिष्ठ नेता भी उनके जेल जाने के बाद मानो नेपथ्य में चले गए. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि उपेक्षा से आजिज कुछ नेताओं ने या तो पाला बदल जेडीयू का दामन थाम लिया, नहीं तो निष्क्रिय हो गए. इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी में जनाधार वाले नेताओं का टोटा हो गया. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के पिछड़ा-अति पिछड़ा, दलित और महा दलित के दांव से पहले ही अपने वोट बैंक में सेंधमारी का शिकार हो चुकी आरजेडी मुस्लिम-यादव वोट पर सिमट कर रह गई.