भ्रष्टाचार के मामले में बिहार के उप-मुख्यमंत्री और आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव का नाम सीबीआई के एफाआईआर में सामने आया है और इसी वजह से विपक्षी पार्टियां उनके इस्तीफे की मांग कर रही हैं.
इस मामले पर विचार करने के लिए सोमवार को आरजेडी के विधायकों की बैठक लालू प्रसाद यादव के घर पर हुई जिसमें यह फैसला लिया गया कि तेजस्वी यादव अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे, क्योंकि जिस घोटाले के संबंध में उनका नाम सीबीआई के एफआईआर में आया है उस वक्त तेजस्वी केवल तेरह साल के थे.
विपक्ष, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मांग कर रहा है कि वो तेजस्वी यादव को अपने मंत्रीमंडल से बाहर करें. वहीं इस पूरे मसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू ने चुप्पी साधी हुई है.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर आरजेडी और पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की ऐसी क्या मजबूरी है कि वो तेजस्वी के साथ इन हालात में भी खड़े हैं.
इस सवाल का पहला जवाब तो यही है कि तेजस्वी, लालू प्रसाद यादव के बेटे हैं और ऐसे में पार्टी के नेताओं की मजबूरी है कि वो तेजस्वी के साथ आखिर दम तक खड़े रहें क्योंकि तेजस्वी के साथ खड़े होने का साफ मतलब है कि वो लालू के साथ खड़े हैं. अगर पार्टी के नेता या विधायक इस मौके पर तेजस्वी के खिलाफ जाते हैं या उनसे इस्तीफे की मांग करते हैं तो इसका साफ मतलब होगा कि वो पार्टी चीफ लालू प्रसाद यादव की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं.
ये तो हो गई पार्टी के नेताओं की मजबूरी लेकिन लालू प्रसाद यादव की ऐसी क्या मजबूरी है कि वो अपने बेटे को पद पर बने रहने देना चाहते हैं.
यहां जानकारों का मानना है कि लालू नहीं चाहेंगे कि सत्ता की बागडोर उनके परिवार में से निकलकर किसी और के हाथ में जाए. इस बात को और पुख्ता करने के लिए जानकार उस वक्त को याद करवाना चाहते हैं जब मुख्यमंत्री रहते हुए लालू जेल गए थे और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था. इसके अलावे लालू यादव की एक और मजबूरी है और वो यह कि अगर उनके बेटे को सत्ता में आने के कुछ ही साल बाद भ्रष्टाचार के एक आरोप की वजह से पद छोड़ना पड़ा तो उसका राजनीतिक करियर चौपट हो जाएगा और लालू यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनके सामने और इतनी जल्दी उनके बेटे के राजनीतिक करियर पर चंद्र ग्रहण लग जाए.