आरजेडी नेता तेजप्रताप यादव ने अपने छोटे भाई और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ तकरार की खबरों को दरकिनार करते हुए कहा है कि जब तक उनके पिता और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव हैं उन्हें पार्टी से कोई बाहर नहीं कर सकता.
11 सितंबर को पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास 10, सर्कुलर रोड पर लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति पर चर्चा करने को लेकर हुई बैठक में तेज प्रताप ने शिरकत नहीं की थी जिसके बाद ये अटकलें तेज हो गई थीं कि उनके और तेजस्वी के बीच कुछ खटपट चल रही है. इस बैठक में राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, मीसा भारती और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हुए थे मगर घर पर मौजूद होते हुए भी तेजप्रताप ने खुद को इस बैठक से दूर रखा.
बैठक में शामिल नहीं होने को लेकर सफाई देते हुए तेजप्रताप ने कहा कि वह उस दिन काफी बीमार थे और इस वजह से मीटिंग में शामिल नहीं हो पाए थे. इस बात की भी अटकलें तेज हो गई थीं कि तेजप्रताप को आरजेडी से अब अलग-थलग किया जा रहा है. इस मुद्दे पर बोलते हुए तेजप्रताप ने कहा कि लालू के रहते कोई क्यों और कैसे उन्हें पार्टी से अलग कर सकता है?
पिछले कुछ महीने से दोनों भाइयों के बीच तकरार की खबरों के लिए तेज प्रताप ने अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं को जिम्मेदार ठहराया था. तेजप्रताप ने कहा कि उनकी पार्टी के कुछ नेताओं समेत बीजेपी और RSS भी इस कोशिश में लगी है कि दोनों भाइयों में झगड़ा हो जाए लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है.
तेजप्रताप ने कहा कि पार्टी के अंदर तेजस्वी के साथ उनका कोई सत्ता संघर्ष नहीं चल रहा है और वह इस कोशिश में लगे हुए हैं कि 2020 में उनका छोटा भाई बिहार का मुख्यमंत्री बने. तेज ने कहा कि दोनों भाई मिलकर पार्टी में काम कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे.
गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों में लालू परिवार में दोनों भाइयों के बीच झगड़े की खबरें बार-बार आती रही हैं. जुलाई में तेजप्रताप यादव ने एक फेसबुक पोस्ट किया था और कहा था कि राबड़ी देवी उनकी शिकायतों की अनदेखी करती हैं. हालांकि, विवाद होने के बाद तेजप्रताप ने कहा कि उनका फेसबुक अकाउंट भाजपा द्वारा हैक कर लिया गया था. तेजप्रताप ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे के खिलाफ भी कहा था कि वह उनकी बातें नहीं सुनते हैं. पार्टी के स्थापना दिवस कार्यक्रम के दौरान भी बोलते हुए तेजप्रताप ने कहा था कि वह अपनी पार्टी में सभी वरिष्ठ नेताओं के मास्टर हैं. तेजप्रताप की यह बात पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अच्छी नहीं लगी थी.