जेडीयू में अपनी पार्टी आरएलएसपी का विलय करने वाले उपेंद्र कुशवाहा सियासी मझधार में फंसे हुए हैं. न तो उन्हें जेडीयू में राजनीतिक तवज्जो मिल रही है और न ही नीतीश कुमार भाव दे रहे हैं. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश के खिलाफ उसी तरह से मोर्चा खोल रखा है, जैसे एक समय आरसीपी सिंह ने तेवर अपनाए हुए थे. कुशवाहा ने उसी नक्शेकदम पर चलते हुए अपनी सियासी ताकत दिखाने के लिए 19-20 फरवरी को एक बैठक बुलाई, जिसमें जदयू के प्रमुख नेताओं, अपनी पुरानी पार्टी आरएलएसी के साथियों और महात्मा फुले समता परिषद के नेताओं को आमंत्रित किया है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ उपेंद्र कुशवाहा आर-पार के मूड में उतर गए हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि लालू यादव की आरजेडी की ओर से खास डील होने से जेडीयू के अस्तित्व को खतरा है. चर्चा है कि जेडीयू का आरजेडी में विलय हो रहा है. इस खबर ने जेडीयू से जुड़े निष्ठावान नेताओं और कार्यकर्ताओं को झकझोर कर रख दिया है. ऐसे में पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए विमर्श की जरूरत है.
नीतीश के गले की फांस बन गए कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा के इस पत्र के बाद यह बात साफ हो गई है कि उन्होंने भी आरसीपी सिंह के बगावती तेवर को अख्तियार कर लिया है. जेडीयू में पक रही सियासी खिचड़ी अब उबलने की स्थिति में है. वहीं, नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा का नाम लिए बगैर कहा कि जेडीयू का कोई नेता बीजेपी के संपर्क में नहीं है. जो है वो ही इस तरह की बातें भी करता है. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि जेडीयू में दो फाड़ हो सकते हैं. कुशवाहा भी आरसीपी की तरह नीतीश के खिलाफ आक्रामक हैं, लेकिन क्या जेडीयू को सियासी झटका दे पाएंगे? आरसीपी सिंह तो नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलकर ठंडे पड़ चुके हैं और क्या कुशवाहा कोई करिश्मा दिखा पाएंगे?
उपेंद्र कुशवाहा सीएम नीतीश कुमार के गले की फांस बन गए हैं, जिसे न उन्हें निगलते बन रहा और न ही उगलते. बिहार की सियासत में जेडीयू के लिए कुशवाहा वोट बैंक काफी अहम है, क्योंकि नीतीश की ताकत लवकुश (कुर्मी-कोयरी) फॉर्मूले में है. ऐसे में अगर उपेंद्र कुशवाहा को बाहर निकाल देते हैं तो वो शहीद हो जाएंगे. इससे उपेंद्र कुशवाहा को सहानुभूति हासिल करने का मौका मिल सकता है. इसीलिए आरसीपी सिंह की तरह कुशवाहा को भी न नीतीश कुमार अहमियत दे रहे हैं और न ही जेडीयू नेता तवज्जो दे रहे हैं.
बदल गए हैं सियासी समीकरण
बता दें कि नीतीश कुमार के कभी काफी करीबी रहे आरसीपी सिंह को राज्यसभा सदस्य से लेकर जेडीयू के अध्यक्ष तक की कमान सौंपी गई. लेकिन, जैसे ही आरसीपी सिंह ने दिल्ली की सियासत में अपने पैर जमाने की कोशिश की, वैसे ही सीएम नीतीश कुमार ने ऐसा तानाबाना बुना कि उन्हें अंततः इस्तीफा देकर जेडीयू से बाहर होना पड़ा. पार्टी से अलग होने के बाद आरसीपी के साथ न तो जेडीयू के नेता आए और न ही बीजेपी ने उन्हें अपने साथ लिया. बिहार की सियासत में इन दिनों वह गुमनाम से हो गए हैं.
उपेंद्र कुशवाहा भी आरसीपी सिंह की राह पर कदम बढ़ा दिए हैं. वो जेडीयू को बचाने की मुहिम छेड़ रखी हो, लेकिन उन्हें न पार्टी नेताओं का साथ मिल रहा है और न ही नीतीश कुमार उन्हें भाव दे रहे हैं. ऐसे में कुशवाहा अब किस तरह से अपनी सियासत को आगे बढ़ाएंगे, क्योंकि आरएलएसपी के नेता पहले ही साथ छोड़कर जा चुके हैं. जेडीयू का कोई भी नेता उनके साथ खड़ा नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में कुशवाहा के लिए अपनी पार्टी को दोबारा से खड़ी करना आसान नहीं है, क्योंकि अब सियासी समीकरण काफी बदल गए हैं.
अब क्या करेंगे उपेंद्र कुशवाहा?
बिहार बीजेपी के नेता भी उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी में लेने की इच्छा जता चुके हैं. जेडीयू-आरजेडी के गठबंधन होने के चलते कुशवाहा के पास सिर्फ बीजेपी ही पार्टी बचती है, जिसके साथ जाने का उम्मीदें बनती है. बीजेपी के अलावा फिलहाल कोई ऐसा दल नहीं है, जिसके साथ जुड़कर अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ा सके. बीजेपी के नेता उनके स्वागत के लिए उसी तरह से बातें कर रहे हैं, जैसे आरसीपी सिंह को किया था.
आरसीपी सिंह ने जिस समय नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, उस समय बीजेपी नेताओं को काफी पसंद आ रहे थे. जेडीयू के छोड़ते ही आरसीपी को बीजेपी ने भाव नहीं दिया, जबकि वह हिंदुत्व के रंग में पूरी तरह से रचे-बसे नजर आ रहे थे. कुशवाहा को लेकर अभी तो बीजेपी नेता उनके साथ खुलकर खड़े हैं, लेकिन जेडीयू से बगावत करने के बाद भी यह रवैया दिखेगा, कहना मुश्किल है. कुशवाहा ने 2018 में एनडीए का साथ छोड़ा था तो उन्होंने भी क्या-क्या नहीं कहा. कुशवाहा का सियासी असर भी पहले जैसा नहीं रहा. ऐसे में बीजेपी क्या उन्हें लेगी और लेगी भी तो क्या राजनीतिक तवज्जो मिलेगा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि कहीं आरसीपी सिंह जैसा सियासी हश्र न हो जाए?
नीतीश की यह रही है रणनीति
दरअसल, जेडीयू में नीतीश कुमार के समानांतर जो भी व्यक्ति या नेता खड़ा होने का प्रयास करता है, वो फिर कहीं का नहीं रहता. उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश ने एमएलसी बनाया, पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बनाया और अब कहते हैं कि उनको जब जाना है, तब चल जाएं. ये सिर्फ कुशवाहा से बीजेपी नेताओं की एम्स में मुलाकात का मामला नहीं है. नीतीश कुमार को पता है कि बिहार की राजनीति में बीजेपी 'खेल' कर रही है.
उपेंद्र कुशवाहा के लिए नेताओं को इकट्ठा करने का प्रयास बीजेपी की ओर से किया जा रहा है. नीतीश कुमार जानते हैं कि जरा भी मौका मिला तो उपेंद्र कुशवाहा अपनी जाति का बड़ा नेता बन जाएंगे. ये बात नीतीश कुमार को बर्दाश्त नहीं है. अब तक का जो इतिहास रहा, उसमें देखा गया कि जिसने भी नीतीश कुमार के समानांतर या जिसने भी खुद को बराबरी का समझने की कोशिश की, उसे नीतीश ने कहीं का नहीं छोड़ा. जॉर्ज फर्नांडिस से लेकर शरद यादव आरसीपी सिंह तक उदाहरण भरे पड़े हैं. इन नेताओं ने नीतीश से बगवात किया, लेकिन राजनीतिक चुनौती नहीं बन सके.