जदयू के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने बिहार में उच्च जाति आयोग गठित करने के मामले में राज्य की जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि उच्च जातियों के गरीबों को किसी तरह का आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए और उन्हें गरीबी से उबारने के लिए बेहतर अर्थव्यवस्था काफी है.
जदयू के महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता तिवारी ने कहा, ‘मुझे लगता है कि उच्च जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए जो विशेष रूप से पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए बनाया गया है.’
उन्होंने उच्च जातियों के गरीबों की शिकायतों पर विचार करने के लिए उच्च जाति आयोग बनाने के बिहार सरकार के फैसले को अनावश्यक और बेकार का कदम बताया.
उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों किया गया है लेकिन मैं देश में उच्च जातियों को किसी तरह का आरक्षण का लाभ दिये जाने के सख्त खिलाफ हूं.’
जदयू नेता ने कहा कि उच्च जाति के लोग सदियों से निम्न जाति के लोगों को दबाते रहे हैं. उन्हें आरक्षण देने के बारे में या आयोग का गठन करने के बारे में सोचने का क्या मतलब है.
तिवारी ने कहा, ‘हां, उच्च जातियों के लोगों में भी गरीबी की समस्या है. लेकिन देश के आर्थिक विकास की रफ्तार के साथ उन्हें खुद ब खुद लाभ मिलेगा. इसके लिए कोई आयोग बनाने और आरक्षण देने की जरूरत नहीं है.’
तिवारी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब उनकी पार्टी के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उच्च जातियों में अपना आधार बढ़ाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं ताकि भाजपा से गठबंधन समाप्त होने की स्थिति के लिए पार्टी तैयार हो सके. यहां तक कि राज्य में विपक्षी दलों ने भी वादा किया है कि सत्ता में आने पर सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में उच्च जातियों के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा.
हो सकता है कि तिवारी का बयान जदयू की सहयोगी पार्टी भाजपा को रास नहीं आए जिसका बिहार में खासतौर पर उच्च जातियों के मतदाताओं के बीच अच्छा प्रभाव है.
बिहार में उच्च जाति आयोग के गठन को दो साल हो चुके हैं लेकिन यह अब तक कोई ठोस सिफारिश नहीं कर पाया है.
बिहार में आज भी जाति व्यवस्था होने की बात स्वीकार करते हुए तिवारी ने कहा, ‘हमने जाति प्रथा को समाप्त करने के लंबे चौड़े वादे नहीं किये लेकिन हां व्यापक बदलाव हुआ है.’