विरासत में मिली राजनीति को चिराग पासवान संभाल नहीं पाए. अपने पिता की बनाई पार्टी से ही बेदखल कर दिए गए. क्या इसे अनुभव की कमी मानी जाएगी? राजनीति के धाकड़ खिलाड़ी चाल को पहले समझ कर मात देते हैं. लेकिन चिराग इस खतरे को भांप नहीं पाए. स्वर्गीय रामविलास पासवान ने पार्टी की कमान अपने युवा बेटे को दी, ताकि वो इसका विस्तार कर सकें. पार्टी का कमान बेटे को सौंपने के बाद जबतक रामविलास पासवान ज़िंदा रहे उन्होंने चिराग के हर फैसले का समर्थन किया.
राम विलास पासवान ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद और अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले 5 नवंबर 2019 को पार्टी की कमान अपने बेटे चिराग पासवान को सौंप दी. इससे 5 साल पहले यानी 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पासवान ने अपने बेटे चिराग को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया था.
2014 में रामविलास पासवान जब यूपीए छोड़कर NDA में शामिल हुए तो उसके पीछे भी चिराग की ज़िद थी. रामविलास पासवान ने अपने तमाम बातचीत में इसका जिक्र करते हुए कहा था चिराग युवा हैं उनकी सोच नई है. इसी विचार के तहत उन्होंने अगली पीढ़ी को अपनी विरासत सौंपी है. रामविलास पासवान को अपने बेटे पर बड़ा भरोसा था.
2019 के लोकसभा चुनाव में NDA में जेडीयू के फिर से शामिल होने के कारण समझौते के तहत लोक जनशक्ति पार्टी को 6 सीट मिली जो पिछली बार से (7) एक सीट कम थी. एक सीट राज्यसभा से देने की तय हुई. रामविलास पासवान ने अपने परंपरागत सीट हाजीपुर से अपने भाई पशुपति कुमार पारस को लड़ाया और खुद राज्यसभा गए.
चिराग पासवान के पार्टी का कमान संभालते ही जेडीयू और खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी शुरू हो गई. चिराग ने तब बताया था कि राज्यसभा चुनाव के दौरान उनके पिता का अपमान हुआ था. नीतीश कुमार ने कई बार मिलने का टाइम नहीं दिया. हालांकि नीतीश कुमार ने बातचीत में कभी इस बात को नहीं माना. इधर चिराग की तरफ से सरकार पर हमला जारी रहा. कभी नल जल योजना को लेकर तो कभी विकास के कामों को लेकर.
इसी बीच नीतीश कुमार ने LJP के काट के लिये पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को NDA में शामिल कर लिया. इस वजह से तल्खी और बढ़ती चली गई. इसी बीच चिराग पासवान ने बिहार के सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिये अपने कार्यकर्ताओं को तैयार रहने को कहा. बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट के नाम से अपना कार्यक्रम भी बनाया.
विधानसभा चुनाव के कुछ महीने बचे थे. तब एक फार्मूला तय हुआ कि बीजेपी और जेडीयू बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. जेडीयू मांझी को अपने कोटे से और बीजेपी चिराग को अपने कोटे से सीट देंगे. लेकिन चिराग ने इतनी सीट मांग दी कि बीजेपी के लिये ये संभव नहीं था. लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी और जेडीयू में जुबानी जंग जारी थी.
चिराग पासवान ने कहा कि हमारी सरकार में कोई भागीदारी नहीं है. लोकसभा चुनाव से पहले पशुपति कुमार पारस बिहार सरकर में मंत्री थे लेकिन उनके चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने चिराग की पार्टी के किसी विधायक को मंत्री नहीं बनाया था.
चिराग पासवान ने बाद में नीतीश कुमार पर आरोप लगाया था कि जब वो अपनी पार्टी के लिए मंत्री पद मांगने के लिए नीतीश कुमार से मिले तो उन्होंने कहा कि अपरकास्ट को क्या मंत्री बनाना, अपनी बिरादरी का कोई हो तो बताइए. यह बात चिराग पासवान ने बिहार NDA से अलग होकर चुनाव लड़ने के फैसले के बाद कही थी. चिराग ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी केवल जेडीयू की सीट पर अपने उम्मीदवार उतारेगी.
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जेडीयू के एनडीए में शामिल होने से कई बीजेपी नेता सीट बंटवारे के कारण टिकट से वंचित हो गए. उन्होंने LJP का दामन थामा और जेडीयू के उम्मीदवार के खिलाफ लड़ने लगे. तब लगा कि चिराग पर बीजेपी का वरदहस्त है. ये बातें तब और पुख्ता हो गई जब चिराग ने कहा कि वो नरेंद्र मोदी के हनुमान हैं. तब नारे लगते थे मोदी से बैर नहीं नीतीश तेरी खैर नहीं.
हालांकि बाद में ये पता चला कि बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने चिराग को इस तरह की राजनीति करने से रोका था. खासकर गृहमंत्री अमित शाह ने लेकिन बीजेपी के अन्य नेताओं के शह पर चिराग आगे बढ़ते रहे. इसी बीच रामविलास पासवान की मृत्यु हो गई. सहानुभूति वोट और युवाओं में लोकप्रिय होने के कारण चिराग को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी की इतनी सीटें आएंगी कि वो बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लें और जेडीयू को बाहर का रास्ता दिखा दें.
हालांकि जब नतीजे आये तो सबकुछ बिखर चुका था. LJP के सांसदों के लिये ये कतई अच्छी बात नहीं थी. पशुपति कुमार पारस, चिराग के इन फैसलों के शुरू से ही खिलाफ थे. बाद में यह खिलाफत इतनी बढ़ गई कि पारस ने 5 सांसदों के साथ अपनी राह अलग कर ली. अब ये कहा जा रहा है कि एलजेपी के इस टूट से जेडीयू ने अपना बदला पूरा कर लिया.
विधानसभा चुनाव से पहले जब जेडीयू और एलजेपी में जुबानी जंग चल रही थी तब जेडीयू के सांसद ललन सिंह ने कहा था कि चिराग जिस डाल पर बैठे हैं उसे ही काट रहे हैं. आज वही ललन सिंह एलजेपी की टूट में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. एलजेपी में टूट का स्क्रिप्ट जेडीयू नेता और विधानसभा में उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी ने तैयार की थी. इस टूट में बीजेपी की भी भूमिका रही क्योंकि इतनी जल्दी लोकसभा के स्पीकर ने इस टूट को मान्यता दे दी.
इस टूट के टाइमिंग की बात करें तो केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चा चल रही है. ऐसे में अगर एलजेपी की तरफ से किसी को मंत्री बनाया जाता तो वो चिराग पासवान ही होते और वो जेडीयू को किसी कीमत पर मंजूर नहीं होता. बिहार एनडीए में खटास बढ़ जाती. इसलिए ऐसा रास्ता निकाला गया ताकि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाये.