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प्रशांत किशोर ने अपनी सियासी लॉन्चिंग के लिए जेडीयू को ही क्यों चुना?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बिहार में नीतीश कुमार और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की चुनावी रणनीति में अहम भूमिका निभा चुके प्रशांत किशोर की पहचान ऐसे चाणक्य के तौर पर की जाती है जिसकी मौजूदगी ही जीत की गारंटी है.

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प्रशांत किशोर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
प्रशांत किशोर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

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चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी चुनावी राजनीतिक पारी का आगाज जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से किया है. अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए चुनावी अभियान का काम कर चुके प्रशांत किशोर ने एक क्षेत्रीय दल को ही अपनी सियासी लॉन्चिंग के लिए क्यों चुना? यह बड़ा प्रश्न है. क्योंकि यदि वे चाहते तो किसी राष्ट्रीय दल से भी यह शुरुआत कर सकते थे.

दरअसल इस सवाल में ही इसका जवाब छिपा है. 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव से लेकर 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी के प्रचार अभियान का अहम हिस्सा रहे प्रशांत किशोर की महत्वकांक्षा थी कि मोदी सरकार के गठन के बाद सरकार के नीतिगत फैसलों में उनकी भूमिका रहे. लेकिन इस मुद्दे पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मतभेद के बाद किशोर ने अपना रास्ता बदल लिया और तब मोदी के धुर विरोधी नीतीश कुमार के साथ जुड़ गए. वहीं कांग्रेस के साथ भी यूपी और पंजाब में काम करने के बावजूद पार्टी के नेताओं ने उन्हें स्वतंत्र होकर काम नहीं करने दिया.

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नीतीश के साथ प्रशांत इसलिए सहज हैं क्योंकि प्रशांत की तरह नीतीश भी यह दिखा चुके हैं कि मौका पड़ने पर कांग्रेस और बीजेपी दोनो के साथ काम करने में उन्हें कोई गुरेज नहीं होगा. नीतीश कुमार 2013 में मोदी विरोध के नाम पर एनडीए का साथ छोड़ते हुए लालू यादव और कांग्रेस के साथ जुड़ गए और संघ मुक्त भारत की बात करने लगे. फिर रातोरात आरजेडी और कांग्रेस का साथ छोड़कर फिर से बीजेपी के साथ आते हुए एनडीए का हिस्सा हो गए.

हाल ही में हैदराबाद के इंडियन बिजनेस स्कूल में एक कार्यक्रम में प्रशांत किशोर ने कहा था कि वे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों के संपर्क में हैं. इसी कार्यक्रम में उन्होंने किसी भी तरह की दलगत राजनीति में आने से साफ इनकार कर दिया था. लेकिन एक हफ्ते बाद ही प्रशांत किशोर ने जेडीयू का दामन थाम सभी को चौंका दिया. लोकिन वो राजनीतिज्ञ ही क्या जिसके दिल की बात जुबान पर आ जाए.

इसी तरह का निर्बद्ध लचीलापन प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार के ज्यादा करीब करता है. जिस तरह से एक लोहियावादी नीतीश कुमार कांग्रेस और बीजेपी दोनों के साथ सहज हैं, ठीक इसी तरह से प्रशांत किशोर भी किसी तरह की प्रतिबद्धता से बंधना पसंद नहीं करते. इसके साथ ही कांग्रेस और बीजेपी सरीखे बड़े दलों में उन्हें वो स्वतंत्रता नहीं मिलती.

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नीतीश कुमार की जेडीयू में जो हैं वो नीतीश ही हैं. नीतीश का विश्वास प्राप्त करने के बाद प्रशांत किशोर के सामने पार्टी में कोई चुनौती नहीं है. जेडीयू के साथ जुड़ने के बाद प्रशांत ने एनडीए खेमे में अपनी मौजूदगी दर्ज करा ली है. कुछ लोगों का कहना है कि अंतत: प्रशांत किशोर 2019 में नरेंद्र मोदी के लिए प्रचार करते दिखेंगे. लेकिन पिछले कुछ घटनाक्रमों पर गौर करें तो नीतीश और प्रशांत किशोर दोनों ने मौका पड़ने पर अपनी राजनीतिक चतुराई का भी परिचय दिया है.

इसमें कोई शक नहीं कि जेडीयू में प्रशांत किशोर की हाईप्रोफाइल एंट्री ने पार्टी के अंदर राजनीतिक महत्वकांक्षा रखने वाले नेताओं और हायरार्की (पदानुक्रम) पर प्रश्न खड़ा किया है. साथ ही पार्टी में इस बात को लेकर उत्साह भी है कि प्रशांत जेडीयू में नई ऊर्जा का संचार करेंगे. प्रशांत किशोर भी महज जेडीयू नेता के तौर पर सीमित रहें ऐसी उनकी मंशा नहीं होगी, क्योंकि अपने कद से बड़ा बीड़ा उठाने के लिए ही अब तक उन्हें जाना जाता रहा है.

आज तक से बातचीत में नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर में भविष्य दिखता है. लेकिन मंडल की राजनीति से प्ररित बिहार में आने वाले समय में प्रशांत किशोर, जो एक ब्राह्मण हैं, को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि जातीय पहचान की राजनीति हावी होने के बाद से बिहार में 1989 के बाद कोई ब्राह्मण राजनीतिक शिखर पर नहीं पहुंचा.  

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