आपने अक्सर सुना होगा कि महिलाएं मंदिरों में जाकर भगवान की पूजा अर्चना करती है मगर रेलवे ट्रैक पर जाकर ट्रैक की पूजा करते हुए शायद ही सुना हो. मगर यह सच है.
पटना से महज 55 किलोमीटर दूर अथमलगोला इलाके में मिल्कीचक और सरवरपुर नाम का दो गांव है. वैसे तो यह दोनों गांव एक दूसरे के आमने सामने है मगर इन दोनों गांव के बीच से पटना - कोलकाता मेन लाइन की रेल की पटरी गुजरती है. इन दोनों गांव की महिलाएं रोजाना पास के मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए जाती है और वापसी में नियमित तौर पर इस रेल पटरी पर आती है और दोबारा पूजा-अर्चना करती हैं. सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा करने की वजह क्या है ?
कई साल पहले इस दोनों गांव के बीच से गुजरने वाली रेलवे की पटरी पर एक गेट हुआ करता था जिसकी संख्या नंबर 58 थी. इस लाइन पर जब भी रेल गुजरा करती थी तो यह गेट बंद कर दिया जाता था ताकि कोई घटना ना हो जाए. मगर धीरे धीरे इस गेट की हालत जर्जर हो गई और आज की तारीख में वहां पर गेट के नाम पर कुछ भी नहीं है, यानी कि इन दोनों गांव के बीच में बिना गेट के मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग है.
इन दोनों गांव के लोग रोजाना अपने काम के लिए रेलवे ट्रैक पार किया करते हैं. रोजाना स्कूली बच्चे भी इसी रेलवे ट्रैक को पार करके पास के स्कूल जाया करते हैं. इसी कारण साल में लगभग आधा दर्जन लोगों की रेल की चपेट में आ जाने से मौत हो जाती है. इस रेलवे क्रॉसिंग पर गेट लगाने के लिए कई बार दोनों गांव के लोगों ने रेल के अधिकारियों से शिकायत की. यही नहीं, बिहार सरकार के मंत्रियों से भी गुहार लगाई, धरना प्रदर्शन किया और अनशन भी मगर उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ.
प्रशासन से किसी प्रकार की मदद नहीं मिलने के बाद आखिर थक हार कर लोगों को लगा कि उन्हें अब सिर्फ भगवान का ही सहारा है और इसी वजह से गांव की महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की कुशलता के लिए रोजाना इस रेलवे ट्रैक की पूजा-अर्चना करती है ताकि कोई अप्रिय घटना ना हो जाए.
गौरतलब है कि 2014 में, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में 2547 रेलवे क्रॉसिंग पर दुर्घटना हुई जिसमें 2575 लोगों की जान चली गई. बिहार के इन दोनों गांव के लोगों ने सरकारी उदासीनता से थक हार कर अब भगवान के शरण में चले गए हैं और उन्हें उम्मीद है कि अब भगवान ही उनकी मदद कर सकते हैं.