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ग्रामीणों को बचाने गए वन विभाग अधिकारी को हाथियों ने रौंदा

हाथियों से ग्रामीणों को बचाने आये वन विभाग के डिप्टी रेंजर को हाथियों ने सूंड से उठाकर फेंका. कड़ी मशक्क्त के बाद रेंजर की लाश मिली.

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हाथियों का आतंक
हाथियों का आतंक

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छत्तीसगढ़ में इंसानों और हाथियों के बीच जंग छिड़ हुई है. हाथी ग्रामीणों को उनके गांव से खदेड़ना चाहते हैं. वहीं, दूसरी ओर इंसान हाथियों को जंगल से. इस जंग में किसका पल्ला भारी रहेगा ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन जमीन को लेकर छिड़ी जंग में कभी इंसान तो कभी हाथियों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है. ताजा मामला राज्य के मनेन्द्रगढ़ इलाके का है. जहां हाथियों द्वारा गांव में मचाये जा रहे उत्पात की सूचना मिलने के बाद पहुंची वन विभाग की टीम पर जंगली हाथियों ने हमला बोल दिया. इस झुंड में दर्जन भर से ज्यादा हाथी मौजूद थे.

अचानक आक्रामक हुए हाथियों ने वहां अफरा-तफरी मचा दी. इसके पहले की कोई कुछ समझ पाता, हाथी ग्रामीणों को दौड़ाने लगे. मौके पर मौजूद वन विभाग की टीम हाथियों का ध्यान भटकाने में लगी थी, इसी दौरान हाथियों के झुण्ड से एक हाथी वन विभाग के अमले के ऊपर ही हमला बोल दिया. हाथी को अपनी ओर आता देख अमला अपनी जान बचाने के लिए भागने लगा. इसी बीच हाथी ने 52 वर्षीय डिप्टी रेंजर सीताराम तिवारी को अपने सूंड से पकड़कर जमीन पर पटका और पैरों से रौंद डाला.

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इलाके में हाथियों की मौजूदगी की वजह से वन विभाग की टीम को डिप्टी रेंजर के शव को जंगल से निकालने में काफी मशक्क्त करनी पड़ी. हाथियों को स्पॉट करने और आसपास के गांवों के लोगों को आगाह करने के लिए डिप्टी रेंजर सीताराम  तिवारी के साथ वन विभाग की एक टीम जंगल के भीतर दाखिल हुई थी. हमले के दौरान बाकी कर्मचारी तो जैसे तैसे भागने में सफल रहे, लेकिन डिप्टी रेंजर सीताराम तिवारी को हाथी ने दबोच लिया. घटनास्थल केल्हारी और जनकपुर के बीच घने जंगल में है.

इस इलाको में हाथियों ने सैकड़ों एकड़ हरीभरी फसलों को नष्ट कर दिया है. ग्रामीण यहां सब्जी भाजी के अलावा चावल, मक्का और दाल तिलहन, गन्ना उपजाते हैं. यही वो खाद्य पदार्थ है जिस पर हाथियों की नजर लगी रहती है. फसलों के पकने की खुशबु जंगल में फैलते ही हाथियों का झुण्ड गांव की ओर रुख कर लेता है. हाथियों के हमले से बचने के लिए ग्रामीणों ने बाकायदा दो दल बनाये हुए हैं. एक टीम दिन में गांव की रखवाली करती है तो दूसरी टीम रात को. लाठी, डंडों और सीटियों से लैस हो कर ग्रामीण इन हाथियों का सामना करते हैं. लेकिन हाथियों की आमद दर्ज करने के बाद ग्रामीण ज्यादा देर तक उनके सामने नहीं टिक पाते.

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