छत्तीसगढ़ में पांच सालों में एड्स की बीमारी से 3051 लोगों की मौत हो चुकी है. यह किसी अन्य संक्रामक बीमारी से होने वाली मौत के आंकड़ों से कहीं ज्यादा है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने विधानसभा में एड्स के बढ़ते खतरों को लेकर उठे एक सवाल के जवाब में बताया कि साल 2017 -18 में एक साल के भीतर ही एड्स से पीड़ित 703 मरीजों की मौत हुई.
उनके मुताबिक साल 2013-14 से लेकर जून 2018 तक 3015 लोगों की एड्स से मौत हुई है. इसमें एक चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि पिछले तीन महीने, यानी एक अप्रैल 2018 से 8 जून 2018 के बीच 176 लोगों की मौत सिर्फ एड्स की वजह से हुई. पिछले वित्तीय वर्ष 2017-18 में 703 एड्स पीड़ित लोगों की मौत का आंकड़ा जब विधानसभा में आया तो सिर्फ विपक्षी विधायक ही नहीं बल्कि सत्ताधारी दल के विधायक भी चकित हो गए.
स्वास्थ्य मंत्री के इस जवाब के बाद सरकार की एड्स कंट्रोल सोसायटी के कामकाज पर सवालिया निशान लग गया है. दरअसल एड्स पीड़ितों की ज्यादातर मौत विंडो पीरियड में हुई है. यह पीरियड दस साल का होता है. सीधे तौर पर यह मामला इलाज में कमी की ओर इशारा करता है. रायपुर, बिलासपुर, भिलाई, रायगढ़ और कोरबा जिले में एड्स पीड़ितों की संख्या में लगातार इजाफा पाया गया है.
सिर्फ एड्स ही नहीं संक्रामक बीमारियों से हो रही मौतों में स्वाइन फ्लू के आंकड़े भी चौकाने वाले है. विधानसभा में आई लिखित जानकारी के मुताबिक पिछले चार सालों में 121 लोगों ने स्वाइन फ्लू की वजह से दम तोड़ दिया. साल 2017-18 में सर्वाधिक 67 लोगों की मौत स्वाइन फ्लू से हुई थी. डायरिया से पांच सालों में 298 मौतें हुई हैं. वहीं मलेरिया आज भी लोगों के लिए जानलेवा बना हुआ है. मलेरिया से पिछले 5 सालों में 284 मौतें हुई हैं, जिसमें करीब 62 जानें मच्छरों के काटने से गई हैं. विभिन्न संक्रामक बीमारियों से मौत का आंकड़ा 6224 तक पहुंच गया है.
छत्तीसगढ़ में संक्रामक बीमारियों से होने वाली मौतों के बढ़ते मामले राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की लचर हालात को बयां कर रहे है. स्वास्थ्य विभाग की दयनीय हालत का कारण रायपुर स्थित राज्य के सबसे बड़े डॉ भीमराव अंबेडकर अस्पताल में दवाओं की खरीद फरोख्त पर हुए भ्रष्ट्राचार को भी मुख्य कारण बताया जा रहा है.
हाल ही में EOW और दूसरी जांच एजेंसियों ने घटिया दवाओं का जखीरा और उसकी खरीदी में हुए गोलमाल का खुलासा किया था. बताया जाता है कि दवाओं की सरकारी सप्लाई में गुणवत्ता का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता है. घटिया कंपनी और गुणवत्ताविहीन दवाओं के चलते मरीजों को उसका फायदा नहीं मिल पाता.
नतीजतन आखिरी वक्त तक मर्ज बना रहता है और मरीज स्वर्ग सिधार जाते हैं. फिलहाल विपक्ष ने स्वास्थ्य विभाग में हो रहे घोटालों की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. ताकि आम बीमारियों के साथ-साथ संक्रामक बीमारियों को भी फैलने से रोका जा सके.