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छत्तीसगढ़ चुनाव में नई पार्टी की एंट्री, किसके बनेंगे और बिगड़ेंगे समीकरण?

छत्तीसगढ़ में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और एक नई पार्टी ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. छत्तीसगढ़ चुनाव में नई पार्टी की एंट्री ने सूबे में आदिवासी वोट की लड़ाई को रोचक बना दिया है. नई पार्टी के आने से चुनाव में किसके समीकरण बनेंगे और किसके बिगड़ेंगे?

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अरविंद नेताम और भूपेश बघेल (फाइल फोटो)
अरविंद नेताम और भूपेश बघेल (फाइल फोटो)

छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं. सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इसकी तैयारियों में जुटी हैं. वहीं अब राज्य में एक नई पार्टी की एंट्री हो गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने ऐलान किया है कि सर्व आदिवासी समाज भी छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारेगा.

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सर्व आदिवासी समाज के नेता अरविंद नेताम ने ऐलान किया है कि वो आदिवासियों के लिए आरक्षित 29 सीटों के साथ ही कुछ सामान्य सीटों पर भी उम्मीदवार उतारेंगे. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में 1973 से 1977 तक मंत्री रहे नेताम के इस ऐलान के बाद आदिवासी वोट को लेकर एक नई जंग छिड़ती नजर आ रही है. 

नेताम की एंट्री से बदलेगा वोट का गणित?

सर्व आदिवासी समाज विधानसभा चुनाव में उतरने का ऐलान करने से पहले एक उपचुनाव में अपनी ताकत दिखा चुका है. कांकेर जिले की भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट के लिए पिछले साल यानी 2022 के दिसंबर महीने में उपचुनाव हुए थे. इस उपचुनाव में सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार को जीत तो नहीं मिली लेकिन 23 हजार वोट पार्टी ले उड़ी थी.

भानुप्रतापपुर उपचुनाव में इस प्रदर्शन के साथ नेताम की पार्टी ने सूबे के सियासी मानचित्र पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी थी. इस नई-नवेली पार्टी को मिले वोट 2018 के चुनाव में अधिकतर सीटों पर कांग्रेस की जीत के अंतर से भी अधिक थे. 2018 चुनाव में अधिकतर आदिवासी सीटों पर हार-जीत का अंतर 10 हजार वोट के आसपास रहा था.

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राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि नेताम की पार्टी अगर उपचुनाव वाला प्रदर्शन आदिवासी सीटों पर दोहराने में सफल रहती है तो कांग्रेस के लिए राह कठिन हो जाएगी. नेताम बड़े आदिवासी नेता हैं. करीब एक दशक तक जब वो राजनीति से दूर रहे थे, तब भी आदिवासी समुदाय के बीच सक्रिय रहे. उनके चुनाव लड़ने से आदिवासी वोट का गणित बदलेगा. 

नेताम को हल्के में न लेने की वजह पिछले चुनाव का नतीजा भी है. तब अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (छजकां) बसपा और भाकपा के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी थी. इस गठबंधन ने 11 फीसदी वोट शेयर के साथ सात सीटें जीती थीं. 15 साल बाद बीजेपी की हार में अजीत जोगी के इस गठबंधन की बड़ी भूमिका थी. बीजेपी को 2013 के मुकाबले 8 फीसदी वोट शेयर का नुकसान हुआ था. बीजेपी 33 फीसदी वोट शेयर के साथ 15 सीटें ही जीत सकी. इस बार नेताम की पार्टी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है.

क्या है आदिवासी वोटों का गणित

छ्त्तीसगढ़ में करीब 34 फीसदी आदिवासी वोटर हैं. सूबे की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं. 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं. विधानसभा में बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा ही 46 सीट का है. ऐसे में राज्य की सियासत में आदिवासी समाज मजबूत दखल रखता है. आदिवासी जिस दल के साथ हो लेते हैं, जीत उसी की होती है. 2003 से 2013 तक तीन चुनावों में बीजेपी को आदिवासियों का समर्थन मिला और पार्टी 15 साल तक सरकार में रही. 2018 में आदिवासी समाज से कांग्रेस को अधिक समर्थन मिला और नतीजा भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली नई सरकार के रूप में सामने आया.

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कांग्रेस को साल 2018 के विधानसभा चुनाव में 68 सीटों पर जीत मिली थी. सूबे की 29 में से 27 आदिवासी सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं. बीजेपी इसबार पुरखौती सम्मान यात्रा जैसे आयोजनों के जरिए आदिवासी समाज के बीच सक्रिय है. अब अरविंद नेताम की पार्टी की एंट्री ने आदिवासी वोट की लड़ाई को रोचक बना दिया है.

 

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