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अब छत्तीसगढ़ में मुक्तिधाम बनाने की मांग ने पकड़ी जोर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में कब्रिस्तान और श्मशान घाट का जिक्र का छेड़ा तो यह मामला एक मुद्दा बन गया. सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि बीजेपी शाषित राज्यों में ये मामला गरमा गया है. खासतौर पर छत्तीसगढ़ में सबका विकास और सबका साथ की तर्ज पर सभी धर्मो के लिए एक अदद मुक्तिधाम की मांग जोर पकड़ गयी है.

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श्मशान घाट के बारे में पीएम का था बयान
श्मशान घाट के बारे में पीएम का था बयान

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में कब्रिस्तान और श्मशान घाट का जिक्र का छेड़ा तो यह मामला एक मुद्दा बन गया. सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि बीजेपी शाषित राज्यों में ये मामला गरमा गया है. खासतौर पर छत्तीसगढ़ में सबका विकास और सबका साथ की तर्ज पर सभी धर्मो के लिए एक अदद मुक्तिधाम की मांग जोर पकड़ गयी है. दिलचस्प बात यह है कि इसकी मांग सत्ताधारी बीजेपी से ही उठ रही है. इसके लिए बाकायदा बजट में प्रावधान किये जाने को लेकर जोर आजमाइश भी शुरू हो गयी है.

छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी के उस वक्तव्य को लेकर सक्रिय हो गए हैं, जो उन्होंने उत्तर प्रदेश चुनाव में अपने विरोधियों पर हमला करने के लिए छेड़ा था. कब्रिस्तान और श्मशान घाट को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने समाजवादी पार्टी पर तीखा हमला बोला था, लेकिन अब ये मुद्दा बीजेपी शासित राज्यों में भी जोर पकड़ गया है. इसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ से हुई है, जहां पार्टी के भीतर से ही राज्य के तमाम छोटे बड़े गांव और शहरो में एक अदद मुक्तिधाम की मांग उठ खड़ी हुई है.

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वह भी बाकायदा तर्कों और दलीलों के साथ. बीजेपी नेता और पार्टी कार्यसमिति सदस्य अजय शुक्ला के मुताबिक इसके लिए बिल्कुल बजट में प्रबंध होना चाहिए, क्योकि पूरे जीवन में आदमी की जो कमाई होती है, वो शांति के साथ अंतिम संस्कार स्थल में दिखाई देती है. बीजेपी का मंत्र है, सबका साथ, सबका विकास. इसके लिए हिंदुओं के श्मशान, मुस्लिमों के लिए कब्रिस्तान और ईसाई व पारसियों के लिए भी अंतिम संस्कार स्थल अच्छे और विकसित होना चाहि, क्योंकि यह ऐसी जगह है जहां सभी को जाना है.

सिर्फ बीजेपी ही नहीं राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी सभी धर्मों के लिए अंतिम संस्कार के स्थलों के रख-रखाव और विकास के लिए सालाना बजट निर्धारित करने की मांग कर रही है. कांग्रेस नेता प्रभात मेघावाले ने मांग की है कि सरकार अपने सालाना बजट में इसका प्रावधान करे.

छत्तीसगढ़ में हिंदुओं के श्मशान घाट ,मुस्लिमो के कब्रिस्तान और क्रिश्च‍ियनों के ग्रेवयार्ड के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं होता, ना ही ऐसी कोई परंपरा है. विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ में वही नियम-कायदे लागू हैं, जो मध्य प्रदेश में प्रभावशील हैं. राज्य में ग्राम पंचायते, नगर पंचायतें, नगर पालिका और नगर निगम परंपरागत श्मशान घाट , कब्रिस्तान और ग्रेवयार्ड के लिए सिर्फ स्थान चयनित करने में NOC जारी करती है, जबकि इनका विकास स्थानीय सामाजिक संगठन या फिर किसी ट्रस्ट द्वारा संचालित होता है. छत्तीसगढ़ के गठन हुए 17 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन इन वर्षो में जब भी राज्य की विधान सभा में बजट पेश किया गया , उसमे इनके रखरखाव या विकास के लिए कोई राशि आवंटित नहीं की गयी.

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इस मामले में राज्य के राजस्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडे की दलील है कि राज्य सरकार मांग आने पर अंतिम संस्कार स्थल के लिए राजस्व स्वीकृत करती है. उनके मुताबिक यह विषय स्थानीय निकायों का है. स्थानीय निकाय ही अंतिम संस्कार स्थल के रखरखाव और उसके विकास की रूपरेखा तैयार करते हैं.

छत्तीसगढ़ में रायपुर से लेकर बस्तर और सरगुजा डिवीजन समेत राज्य का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है , जहां श्मशान घाट , कब्रिस्तान और ग्रेवयार्ड के लिए राज्य सरकार ने कोई आर्थिक सहायता मुहैया कराई हो. सरकार की भूमिका इन स्थानों के लिए सिर्फ स्थल चयन तक सिमित रही है. इसके लिए राज्य सरकार कलेक्टरों के जरिये भूमि आवंटित करती है. बशर्ते उस भूमि के लिए गांव में ग्राम और नगर पंचायतें, शहरों में नगर पालिका और नगर निगम ने कोई रोड़ा ना अटकाया हो.

जाहिर है ये नगरीय निकाय उस जमीन के इस्तेमाल के लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी करते है. इसके बाद श्मशानघाट के व्यवस्था का जिम्मा हिंदू धार्मिक व्यवस्था के अनुसार स्थानीय सामाजिक और स्वयंसेवी संस्थाए , मुस्लिमो के लिए वक्फ बोर्ड और क्रिश्चि‍यनों के लिए उनके स्थानीय डायस करते हैं. ये तमाम संस्थाए अपने स्तर पर आर्थिक रकम जुटाती है और उनका रखरखाव करती हैं.

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राज्य के सामाजिक और धार्मिक इतिहास में अभी तक ऐसा कोई मौक़ा नहीं आया है, जब श्मशानघाट] कब्रिस्तान और ग्रेवयार्ड के स्थल चयन या फिर उसके रख रखाव और विस्तार के लिए लोगों ने सरकार का मुह ताका हो.

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