जिस तरह से दिल्ली की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. ठीक वैसे ही छत्तीसगढ़ में सत्ता का रास्ता बस्तर से होकर गुजरता है. बस्तर में 12 विधान सभा सीटों को लेकर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच है. यहां एक मात्र जगदलपुर सामान्य सीट है, जबकि 11 विधान सभा सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं.
वर्ष 2013 के विधान सभा चुनाव में 12 में से 08 सीट कांग्रेस के कब्जे में रही, जबकि 04 सीटों पर बीजेपी जीती थी. इस बार बीजेपी ने सभी 12 सीटों पर पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार बस्तर का दौरा कर चुके हैं. उधर कांग्रेस ने नक्सलवाद और आदिवासियों के विकास के मामले में फेल होने का मुद्दा उठाकर बीजेपी की तगड़ी घेराबंदी की है.
छत्तीसगढ़ में पिछले तीन विधान सभा चुनाव में सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों के बीच मात्र पांच से सात सीट का ही अंतर रहा है. ऐसे में दोनों ही पार्टियां आदिवासियों को लुभाने में जुटी हैं. हालांकि कई इलाकों में नक्सली दोनों पार्टियों को छोड़कर वामपंथी पार्टी को वोट देने में जोर दे रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में नवंबर और दिसंबर राजनैतिक दलों के लिए करो या मरो की स्थिति में रहेगा. उम्मीद है कि विधान सभा चुनाव इन्हीं महीनों में संपन्न हों. राज्य में 25 दिसंबर के पहले नई सरकार भी सत्तासीन हो जाएगी. लिहाजा तमाम राजनैतिक दलों ने चुनावी बिसात अपने-अपने तरीके से बिछानी शुरू कर दी है.
शह और मात के इस खेल में बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने हैं. दोनों ही पार्टियां पूरी तरह से यह मान कर चल रही हैं कि राज्य में नई सरकार के गठन में बस्तर की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. यही कारण है कि इस आदिवासी अंचल की सभी 12 विधान सभा सीटों पर कब्जा करने सभी प्रमुख सियासी दलों में होड़ शुरू हो गई है.
बस्तर का चुनावी इतिहास
वर्ष 2003 में छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव के लिए हुए पहले चुनाव में जहां 12 में से 9 विधान सभा सीटें बीजेपी को मिलीं, वहीं कांग्रेस को सिर्फ 3 सीटों में ही संतोष करना पड़ा. इसी तरह 2008 के विधानसभा चुनाव में 12 में से 11 सीटें बीजेपी को तथा कांग्रेस को 1 सीट ही मिली. वर्ष 2013 के चुनाव में कांग्रेस 8 तथा बीजेपी को मात्र 4 सीटें जीतने में कामयाब रही. राज्य गठन के पूर्व बस्तर को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था. किन्तु छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद के चुनाव में आंकड़े बताते हैं कि बस्तर के मतदाताओं ने कभी एक दल पर ही निष्ठा नहीं जताई बल्कि समय समय पर विधान सभा सीटों के परिणाम बदलते रहे हैं.
छोटे दल भी आजमा रहे किस्मत
बस्तर में सक्रिय सभी प्रमुख दल अपनी चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने के जुटे हैं. कुछ स्थानीय दलों ने विधान सभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा भी कर दी है. इसमें जोगी कांग्रेस और छत्तीसगढ़ लोकतांत्रिक पार्टी, छत्तीसगढ़ स्वाभिमान पार्टी और कुछ आदिवासी संगठन शामिल हैं. आम आदमी पार्टी भी इस बार बस्तर में अपना लोहा मनवाने की तैयारी में है. उसने भी सभी 12 विधान सभा सीटों में अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, लेकिन प्रमुख दलों बीजेपी, कांग्रेस ने प्रत्याशियों को लेकर अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
भाकपा भी मैदान में
बस्तर में विधान सभा चुनाव को लेकर जहां तमाम राजनैतिक दल अपनी अपनी कवायद में जुटे हैं, वहीं नक्सलियों ने भी अपनी चहलकदमी बढ़ा दी है. नक्सलियों ने खुलकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) का साथ देने के लिए ग्रामीणों को चेताया है. हालांकि भाकपा के एक दो विधान सभा क्षेत्रों में ही उम्मीदवार सामने आए हैं, लेकिन नक्सलियों की कोशिश है कि वे भी अपने समर्थक उम्मीदवारों को ज्यादा से ज्यादा विधान सभा सीटों पर उतारे.
बस्तर में विकास का मुद्दा
बस्तर की फिजा से पता चलता है कि 2018 विधान सभा चुनाव में विकास का मुद्दा उछाल मरेगा. इस मुद्दे को बीजेपी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करेगी, जबकि कांग्रेस ने भ्रष्ट्राचार, नक्सल समस्या के मोर्चे पर सरकार की विफलता और आदिवासियों के कल्याण में कोई खास प्रगति नहीं होने का आरोप लगाकर बीजेपी के खिलाफ माहौल खड़ा करने की तैयारी की है.