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पुलिस को सलाम, पहाड़ काटकर गांव तक बना दी सड़क

छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांकेर जिला मुख्यालय से नक्सल प्रभावित आमाबेड़ा इलाके की तरफ बढ़ें, तो दक्षिण की ओर लगभग 20 किलोमीटर दूर पहाड़ों से घिरी मर्दाकोटी ग्राम पंचायत आपका स्वागत करती है. घाटी क्षेत्र वाली इस ग्राम पंचायत के अंतर्गत पांच गांवों का समूह है जिसमें जुर्रामारी, हीरादाह, मर्दाकोटी, मलाजकुडुम और मर्रापी गांव आते हैं. इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता आपको जैसे बांध ही लेती है, लेकिन यहां के पहाड़ों पर बसे गांवों में रहने वाले लोग बहुत कठिन परिस्थितियों में जीवन गुजारते हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले में गांव तक विकास का उजियारा पहुंचाने के लिए पुलिस ने पहाड़ काट कर सड़क बनाने का दुरूह कार्य कर दिखाया है. पहले जहां ऊपर पहुंचने के लिए पैदल चलना मुश्किल था अब वहां मोटर कार पहुंचने लगी है, जिससे पुलिस के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है.

छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांकेर जिला मुख्यालय से नक्सल प्रभावित आमाबेड़ा इलाके की तरफ बढ़ें, तो दक्षिण की ओर लगभग 20 किलोमीटर दूर पहाड़ों से घिरी मर्दाकोटी ग्राम पंचायत आपका स्वागत करती है. घाटी क्षेत्र वाली इस ग्राम पंचायत के अंतर्गत पांच गांवों का समूह है जिसमें जुर्रामारी, हीरादाह, मर्दाकोटी, मलाजकुडुम और मर्रापी गांव आते हैं. इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता आपको जैसे बांध ही लेती है, लेकिन यहां के पहाड़ों पर बसे गांवों में रहने वाले लोग बहुत कठिन परिस्थितियों में जीवन गुजारते हैं.

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इन्ही गांवों में से एक गांव है मर्रापी जो लगभग सात सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर बसा है. वहां अब सड़क है, बिजली है, साफ पीने का पानी है, स्कूल है और स्कूल में शिक्षक हैं. लेकिन छह महीने पहले तक यह सब बुनियादी सुविधाएं यहां के लोगों के लिए सपना थीं. इस सपने को हकीकत में बदलने का प्रयास किया है यहां की पुलिस ने.

मर्दाकोटी ग्राम पंचायत की सरपंच असिता कुमेटी के पति रामानंद कुमेटी बताते हैं कि सदियों से बसे इस गांव की जनसंख्या 380 है. कुछ महीने पहले इस गांव तक पहुंच पाना ही सबसे बड़ी समस्या थी. सीधी चढ़ाई वाले पहाड़ के ऊपर बसे गांव तक पहुंचने के लिए एक पगडंडी थी. इस पगडंडी से होकर लाठी का सहारा लेकर ही ग्रामीण यहां से आते जाते थे.

कुमेटी कहते हैं कि गांव में पांचवी कक्षा तक स्कूल है लेकिन लंबे समय तक वहां शिक्षक नहीं था. शिक्षक की नियुक्ति होती थी तब वह कभी कभार ही यहां आते थे क्योंकि उन्हें अपनी सायकल या मोटरसायकल पहाड़ के नीचे रखकर पैदल चढ़ाई करके स्कूल तक पहुंचना होता था. गांव में कोई बीमार हो जाए तो उसे कांवड़ के सहारे नीचे उतारना होता था और फिर मोटरसायकल या अन्य साधनों से अस्पताल पहुंचाना होता था. यहां से नजदीकी अस्पताल कांकेर जिला मुख्यालय में है.

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उन्होंने बताया कि पहाड़ पर चढ़ने और उतरने के दौरान अक्सर लोग गिरकर गंभीर रूप से घायल भी हो जाते हैं. इसके अलावा गांव में पीने के साफ पानी की व्यवस्था नहीं थी. राशन की दुकान नहीं था, बिजली नहीं थी. मतलब यह कि गांव तो था, लोग भी थे, पर उनके लिए कुछ नहीं था.

लेकिन पिछले साल नंवबर के बाद यहां बदलाव शुरू हुआ. पुलिस के सहयोग से सड़क बनी, फिर जिला प्रशासन पहुंचा और अब तो गांव में हैंडपंप है, स्कूल में शिक्षक हैं, छोटी सी किराने की दुकान भी है. गांव की प्राथमिक शाला के प्रधान पाठक रसालू राम कवासी बताते हैं कि स्कूल में 34 छात्र छात्राएं हैं. वह अभी अपने गांव मर्रापी में पढ़ा रहे हैं. इससे पहले वह अंतागढ़ विकासखंड में थे.

कवासी बताते हैं कि वह मर्रापी में ही रहते हैं इसलिए स्कूल पहुंचने में परेशानी नहीं होती. लेकिन दूसरे शिक्षकों को परेशानी का सामना करना पड़ता था. वह अपना वाहन नीचे गांव में छोड़ते थे और पहाड़ चढ़कर स्कूल पहुंचते थे. बारिश के दिनों में समस्या और बढ़ जाती थी. वह बताते हैं कि एक बार एक ग्रामीण के बीमार होने पर टोकरी में बिठाकर उसे नीचे पहुंचाया गया था.

पहाड़ काटकर सड़क बनाने और गांव तक विकास पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कांकेर जिले के पुलिस अधीक्षक के एल ध्रुव कहते हैं कि पिछले वर्ष सितंबर में उनका तबादला बीजापुर जिले से कांकेर जिले में हुआ. जब वह यहां नक्सलियों के खिलाफ अपनी रणनीति बना रहे थे तब तय किया गया कि ग्रामीणों का दिल जीता जाए जिससे वह मुख्यधारा से न भटक पाएं. इस दौरान उन्हें मर्रापी और कुछ दूरी पर बसे जीवलामारी गांव के बारे में जानकारी मिली.

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मर्रापी और जीवलामारी गांव के ग्रामीण जब उनसे मिलने जिला मुख्यालय आए तो गांव तक सड़क बनाने की मांग की और उन्हें वहां आने का निमंत्रण दिया. ध्रुव बताते हैं कि मर्रापी गांव पहुंचने पर पहाड़ की सीधी चढ़ाई ने उन्हें ग्रामीणों की समस्या का अहसास दिला दिया और उन्होंने उसी दिन वहां सड़क बनाने का इरादा कर लिया. इसके लिए ग्रामीणों ने भी पूरे सहयोग का भरोसा दिलाया.

पुलिस अधीक्षक बताते हैं कि नवंबर में मर्रापी तक रास्ता बनाने का काम शुरू हुआ और पहाड़ काटने की मशीनों के साथ पुलिस के जवान, महिला कमांडो और ग्रामीण सड़क बनाने के इस कठिन काम में जुट गए. धुर नक्सल प्रभावित इस इलाके में ग्रामीण सड़क निर्माण का कार्य करते और पुलिस सुरक्षा देती. क्षेत्र में पुलिस सप्ताह भर शिविर लगाती, सड़क बनती फिर वापस आ जाती. यह सिलसिला चलता रहा और दो महीने में लगभग छह किलोमीटर लंबी सड़क बनकर तैयार हो गई. यह गांव वालों और पुलिस जवानों के लिए किसी सपने के पूरे होने जैसा था.

ध्रुव बताते हैं कि सड़क बनाने का काम पूरा होने के बाद यहां इस वर्ष जनवरी में जन समस्या निवारण शिविर लगाया गया, जिसमें आजादी के बाद पहली बार कोई कलेक्टर इस गांव में पहुंचा. इस शिविर में जिला प्रशासन ने भी ग्रामीणों को पूरा सहयोग करने का आश्वासन दिया. बाद में गांव में हैंडपंप लगाया गया, धान कूटने की मशीन लगाई गई और राशन की दुकान खोलने के लिए मदद की गई.

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पुलिस अधीक्षक बताते हैं कि सड़क निर्माण के दौरान नक्सलियों ने ग्रामीणों को पुलिस के खिलाफ भड़काने की कोशिश की. नक्सलियों ने ग्रामीणों से कहा कि सड़क बनने के बाद पुलिस यहां शिविर बना लेगी, लेकिन गांव वाले जब उनकी बातों में नहीं आए तो नक्सलियों ने भी सड़क का विरोध नहीं किया.

वह कहते हैं कि पुलिस ने सड़क तो बना दी है लेकिन बारिश में अगर सड़क बह गई तो मुश्किलें फिर बढ़ जाएंगी, लिहाजा यहां पक्की सड़क बनाने के लिए जिला प्रशासन और वन विभाग से बात हो रही है. उम्मीद है जल्द ही यहां पक्की सड़क का निर्माण शुरू होगा.

ध्रुव कहते हैं कि मर्रापी तक सड़क बनाने के बाद क्षेत्र में लोगों का पुलिस पर विश्वास बढ़ा है. जीवलामारी तक सड़क बनाने के लिए भी पहाड़ काटने का काम शुरू कर दिया गया है, कुछ काम शेष है. इन दोनों सड़कों के निर्माण के बाद ग्रामीण अब ज्यादा संख्या में मदद मांगने पुलिस तक पहुंचने लगे हैं. उन्हें अहसास हो रहा है कि सड़क केवल गांव या शहरों को ही नहीं, बल्कि दिलों को भी जोड़ती है.

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