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छत्तीसगढ़: महिलाओं की गुहार- 'खोलो शराब की दुकानें'

छत्तीसगढ़ में शराब के चलन को लेकर अजीब सी स्थिति बन गई है. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गांव संपर्कों पर निकले नेताओं और विधायकों को महिलाओं की हास्यास्पद मांग से दो चार होना पड़ा रहा है. नेताओं और विधायकों की मजबूरी ये है कि वो वादा भी नहीं कर सकते कि उनके गांव में सरकारी शराब की दुकान और दारू भट्टी खोलने को लेकर वो प्रशासन के साथ जोर आजमाइश करेंगे.

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छत्तीसगढ़ में शराब के चलन को लेकर अजीब सी स्थिति बन गई है. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गांव संपर्कों पर निकले नेताओं और विधायकों को महिलाओं की हास्यास्पद मांग से दो चार होना पड़ा रहा है. नेताओं और विधायकों की मजबूरी ये है कि वो वादा भी नहीं कर सकते कि उनके गांव में सरकारी शराब की दुकान और दारू भट्टी खोलने को लेकर वो प्रशासन के साथ जोर आजमाइश करेंगे.

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महिलाओं ने विधायक से माइक छीन लगाई गुहार...
छत्तीसगढ़ शराब की खपत के मामले में देश में तीसरे नंबर पर है. शहरी इलाके हों या फिर ग्रामीण लोगों को शराब की ऐसी लत पड़ी है कि वो इसे अपना सांस्कृतिक पेय पदार्थ समझने लगे हैं. हद तो तब हो गई, जब राजधानी रायपुर के महज 30 किलोमीटर दूर धर्सिवा में महिलाओं ने विधायक के हाथों से माइक छीन लिया और बोली गांव की शराब की दूकानें वापस खोलो.

घटना कुरा गाँव की है. एक कार्यक्रम के सिलसिले में इस गांव में पहुंचे स्थानीय विधायक देवजी भाई पटेल ग्रामीणों को संबोधित कर रहे थे. इसी दौरान श्रोताओं के बीच से उठी महिलाओं ने भड़कते हुए मंच की ओर रुख किया. फिर विधायक जी से माइक छीन कर उनके गांव से हाटाई गई शराब की दुकानों को फिर से खोलने की मांग कर दी.

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महिलाओं की मांग के माइक में गूंजने के साथ ही मंच पर बैठे लोगों से लेकर आम श्रोताओं तक तालियां गूंज गई, दरअसल महिलाओं का कहना था कि सरकार ने शराब बंदी का ढोल पीटने के लिए उनके गांव की सरकारी दारू भट्टी तो बंद करा दी. लेकिन उसके बाद जो हालात बने उसे पलट कर नहीं देखा.

शराब की दुकानें बंद होने से शुरू हुआ अवैध कारोबार
महिलाओं ने बताया कि पूरे गांव में बड़े पैमाने पर अवैध शराब बिकती है. इस शराब की बोतल पर उसका मूल्य 60 रुपये लिखा होता है, लेकिन शराब बंदी के चलते माफिया लोग इसे 90 रुपये में बेचते हैं. लोग शराब जमा करने के चक्कर में शराब भी ज्यादा पी रहे हैं और प्रति बोतल 30 रुपये ज्यादा भी दे रहे हैं.

पुलिस भी इस अवैध कारोबार में है 'साथी'
महिलाओं का यह भी आरोप था कि जब अवैध शराब बेचने वालों की शिकायत थाने में करने जाती हैं तो पुलिस उल्टा उन्हें डाटडपट कर भगा देती है. महिलाओं ने विधायक जी से पूछा कि राज्य की बीजेपी सरकार की यह कैसी शराब बंदी है. मौके की नजाकत को भांपते हुए विधायक जी ने आश्वस्त किया की वे उचित कदम उठाएंगे, और वे चलते बने.

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उल्टा पड़ा बीजेपी सरकार का 'पासा'
छत्तीसगढ़ में चुनावी साल में बीजेपी सरकार ने महिलाओं को लुभाने के लिए कई ऐसे कदम उठाए जो नासूर बन गए हैं. राज्य में आंशिक शराब बंदी एक ऐसा ही कदम है. इस साल राज्य सरकार ने दो हजार से कम आबादी वाले लगभग एक सैंकड़ा गांव में आंशिक शराब बंदी लागू की है. जिन इलाकों में सरकारी शराब दुकाने बंद हुईं वहां शराब का अवैध धंधा करने वालों ने पैर पसार लिए.

शराब की 'होम डिलीवरी'के साइड-इफेक्ट
शराब माफियाओं के गुर्गो ने घर-घर और गली-गली दारू पहुंचाना शुरू कर दिया है. शराब की होम डिलीवरी के लिए भी वो मनचाहा पैसा वसूलने लगे. पुलिस वाले ऐसे कारोबारियों को इसलिए भी संराक्षण दे रहे हैं क्योंकि हर महीने उन्हें इस कारोबार से अच्छी खासी आमदनी होने लगी है. लेकिन राज्य की एक बड़ी आबादी इसका दंश भोग रही है. पतियों को आसानी से शराब मुहैया होने से घर के आर्थिक हालात तो बिगड़ ही रहे है, साथ ही सूरज ढलते ही गांव में मारधाड़ के हालात भी बन जाते हैं.

जनप्रतिनिधि भी हो रहे हैं शिकार
चुनावी साल में शराब बंदी का खामियाजा सिर्फ महिलाओं को ही नहीं भोगना पड़ रहा है, बल्कि इसका शिकार जनप्रतिनिधि भी हो रहे हैं. मतदाता संभावित उम्मीदवारों से शाराब की मांग करते हैं. उधर मतदाताओं को खुश करने के लिए उम्मीदवार भी इधर-उधर से शराब का इंतजाम करते हैं. इसी जद्दोजहद के चलते धर्सिवा विधान सभा क्षेत्र का एक पार्षद महीने भर से फरार है. पार्षद मनोज साहू 246 शराब की बोतले गांव में बांटने के लिए लेकर आए, विरोधियों ने इसकी शिकायत पुलिस से कर दी. पुलिस ने पार्षद के खिलाफ अवैध शराब का मामला भी दर्ज कर दिया. मामला राजनीति रंग ले चुका है, और पार्षद मनोज साहू जमानत के जुगाड़ में पुलिस से आंखे चुराते भाग रहे हैं.

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