छत्तीसगढ़ में शिक्षाकर्मियों ने सरकारी स्कूलों में पढ़ाई लिखाई ठप्प कर दी है. करीब 3 साल पहले भी शिक्षाकर्मियों ने अनिश्चितकाल के लिए हड़ताल में जा कर लाखों स्टूडेंट्स के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया था. आज फिर वही स्थिति बन गयी है. वो भी तब जब सरकार शिक्षाकर्मियों से उनकी नियुक्ति के पूर्व यह हलफनामा लेती है कि वो नौकरी में आने के बाद ना तो हड़ताल करेंगे और ना ही ऐसा कोई काम जिससे शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो.
भारत सरकार के सर्व शिक्षा अभियान से मिलने वाली आर्थिक सहायता से बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराते हुए शिक्षाकर्मी के पद पर राज्य भर में तैनाती दी गयी थी. कुछ महीनों तक शिक्षाकर्मियों ने अपने हलफनामे के तहत नियमों का पालन किया, लेकिन जैसे ही उनके संगठन बन गए और उन संगठनों को राजनैतिक हवा मिली, वैसे ही तमाम शिक्षाकर्मी अपनी गैरवाजिब मांगो को मनवाने के लिए एकजुट हो गए हैं.
उधर राजनैतिक लाभ हानि के समीकरणों को ध्यान में रख कर सरकार भी उनकी हां में हां मिलाने लगी. अब यही शिक्षाकर्मी सरकार पर भरी पड़ रहे हैं. यही नहीं उनके हड़ताल पर चले जाने से लाखों छात्रों और उनके अभिभावकों के सामने पढ़ाई लिखाई को लेकर माथा पच्ची शुरू हो गयी है. हड़ताल कब खत्म होगी यह तो पता नही, लेकिन सरकारी स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई लिखाई और उनकी सुरक्षा का सवाल खड़ा हो गया है. वैसे ही सरकारी स्कूलों में शिक्षा की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. ऊपर से शिक्षाकर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से स्कूल में छात्रों की देख रेख कैसे होगी, उनकी हिफाजत कौन करेगा, इस बात से अभिभावक चिंतित हैं.
छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में एक बार फिर पढ़ाई लिखाई ठप्प हो गई है. मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ शिक्षाकर्मियों की वार्ता विफल होने के बाद राज्य भर के लगभग 1 लाख 80 हजार शिक्षाकर्मी अनिश्चितकाल के लिए हड़ताल पर चले गए हैं. दीपावली के बाद माना जा रहा था कि सरकारी शिक्षण संस्थाओं में पाठ्यक्रम पूरा करने को लेकर तेजी आएगी ताकि मार्च अप्रैल में वार्षिक परीक्षाएं अपने समय पर खत्म हो सके. लेकिन शिक्षाकर्मी संगठनों के हड़ताल में जाने से छात्र और अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है. शिक्षाकर्मी संगठनों ने अपनी 9 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल किया है. उनके मुताबिक यदि सरकार उनकी मांग पूरी नहीं करती तो वे हड़ताल जारी रखेंगे.
छत्तीसगढ़ के प्राथमिक, मिडिल और हाई स्कूल की शिक्षा व्यवस्था में शिक्षाकर्मियों का विशेष योगदान है. इन्हीं के सहारे ही स्कूलों में पढ़ाई हो रही है. तीन बरस पहले शिक्षाकर्मियों ने ऐसे ही आंदोलन की राह पकड़ी थी. इससे स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई थी. लगभग दो माह तक आंदोलन खींचने से ना तो स्कूली बच्चे पाठ्यक्रम पूरा पढ़ पाए और ना ही परीक्षाओं में अच्छा रिजल्ट ला पाए. इस दौरान शिक्षाकर्मियों पर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने का आरोप लगा था. ऐसी स्थिति फिर बन गई है. प्रदेश के सभी 146 विकासखंडों में शिक्षाकर्मियों की हड़ताल के चलते सभी स्कूलों में पढ़ाई ठप्प हो गई है. शिक्षाकर्मी सयुंक्त मोर्चे के अध्यक्ष संजय शर्मा के मुताबिक लंबे समय से समान काम समान वेतन की मांग की जा रही है. वे सामान्य शिक्षकों के अनुरूप काम करते हैं, लेकिन उनकी तुलना में शिक्षाकर्मियों का वेतन लगभग आधा है.
इधर हड़ताल के पहले ही दिन राज्य के तमाम सरकारी स्कूलों में पढाई-लिखाई और मिड डे मील जैसे कामों पर असर दिखाई पड़ा. अधिकांश स्कूलों में छुट्टी जैसा माहौल रहा. शासन के पास हड़ताल से निपटने के लिए फिलहाल कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है. फिर भी पंचायत विभाग ने सभी मुख्य कार्यपालन अधिकारीयों को पत्र लिखकर आंदोलन करने वाले शिक्षाकर्मियों की जानकारी मंगाई है.