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छत्तीसगढ़ः जैविक खेती कर फंस गए किसान, अब नहीं मिल रहा कोई खरीदार

छत्तीसगढ़ में चावल उत्पादक किसानों को उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार ने उन्हें कई नुस्खे दिए. सरकार की दलील थी कि वर्ष 2022 तक यदि उन्हें अपनी आमदनी दोगुनी करनी है तो वे फसल चक्र में बदलाव के सिद्धांत पर काम करें.

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ऑगेनिक खेती को नहीं मिल रहा खरीददार
ऑगेनिक खेती को नहीं मिल रहा खरीददार

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छत्तीसगढ़ में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने किसानों से जैविक चावल की पैदावार करने की सलाह दी और उन्हें भरोसा दिलाया कि इससे उनकी आमदनी दोगुनी भी हो जाएगी, और अब वही इसकी खरीदारी से बच रही है.

सरकार ने उनसे यह भी कहा कि उनकी फसल को तुरंत खरीद लिया जाएगा, लेकिन जब किसान सरकार की मंशा पर खरे उतरे तो सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया. जैविक चावल किसानों के खेत-खलिहानों में पड़ा हुआ है, लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे. ना ही उस चावल की बिक्री के लिए कोई सरकारी बंदोबस्त ही किया गया. चावल यूं ही पड़े रहने से किसान परेशान हैं.

सरकार ने फसल चक्र में बदलाव की दी थी सलाह

छत्तीसगढ़ में चावल उत्पादक किसानों को उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार ने उन्हें कई नुस्खे दिए. सरकार की दलील थी कि वर्ष 2022 तक यदि उन्हें अपनी आमदनी दोगुनी करनी है तो वे फसल चक्र में बदलाव के सिद्धांत पर काम करें.

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सरकार ने किसानों को यह भी भरोसा दिलाया कि वे जैविक तरीके से चावल की पैदावार करें. इससे उन्हें उनकी पैदावार की ऊंची कीमत मिलेगी, लगभग दोगुनी. सरकारी फौज ने किसानों को जैविक खेती करने का नुस्खा दिया और बड़े-बड़े सपने भी दिखाए.

किसान सरकारी अफसरों के घेरे में आ गए. उन्होंने अपने खेतों में चावल की सामान्य फसल के बजाए जैविक खेती कर चावल की गुणवत्ता वाली फसल लगाईं. फसलों की खूब देखभाल भी की. कैमिकल, पेस्ट्रीसाइड और दूसरे रसायनों से दूरियां बनाकर सिर्फ गोबर खाद का इस्तेमाल किया.

किसानों की मेहनत रंग लाई और अच्छी पैदावार हुई, लेकिन ये किसान उस समय सकते में आ गए जब बाजार में जैविक चावल का कोई खरीदार नहीं मिला.

ऑर्गेनिक खेती में खर्चा ज्यादा

किसानों के मुताबिक जैविक खेती में सामान्य खेती के तुलना में प्रति एकड़ डेढ़ गुने से ज्यादा खर्च आता है. जैविक खेती वाला अलग-अलग किस्म के चावल पर उन्हें 60 से 70 रुपए प्रति किलो तक लागत आती है. इसके बाद उस चावल को बेचने के लिए मंडी तक पहुंचाने में अलग खर्च होता है, जबकि बाजार में इस चावल को खरीदार अधिकतम 40 से 50 रुपए प्रति की दर से मांगते हैं.

किसानों के मुताबिक भारी मात्रा में जैविक चावल उनके पास जमा हो गया है. किसानों का आरोप है कि सरकार ने इस चावल को बेचने का कोई सरकारी बंदोबस्त नहीं किया तो फिर उपजाया क्यों?

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छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां के अलग-अलग हिस्सों में सौ से ज्यादा किस्मों के चावल की सालाना बुआई होती है. राज्य में कई किसान साल में तीन बार तक फसल उपजाते हैं. किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार ने फसल चक्र परिवर्तन पर जोर दिया ताकि पैदावार भी अच्छी हो और फसल का अच्छा दाम भी मिले.

चावल को सर्टिफाइड कराना होगाः सरकार

किसानों को सरकार ने भरोसा दिलाया था कि जैविक खेती उनके लिए फायदेमंद साबित होगी. ये किसान सरकार पर भरोसा कर बैठे, लेकिन सरकार यह बात भूल गई कि इस पैदावार की खरीदी बिक्री के लिए बाजार मुहैया कराना भी उसकी जवाबदारी है.

दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि अब किसान को अपने इस चावल को सर्टिफाइड कराना होगा. राज्य के महासमुंद, दुर्ग, धमतरी, बालोद, बेमेतरा, मुंगेली, कवर्धा, रायपुर और सारंगढ़ में हजारों खेत-खलियानों में जैविक चावल डंप पड़ा है. किसानों को ना तो इसकी बिकवाली के लिए अच्छा बाजार मिल रहा है और ना ही खरीदार .

छत्तीसगढ़ में मानूसन सिर पर है. कई किसानों के खेत खलिहान जैविक चावल से भरे पड़े हैं. ऐसे किसानों के सामने अब समस्या आन पड़ी है कि वे दोबारा जैविक खेती अपनाए या फिर अपनी परंपरागत पद्धति से समान्य चावल की पैदावार करें.

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