छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर बीते तीन दिनों से हाईकोर्ट लगातार सुनवाई कर रहा है. उम्मीद की जा रही थी कि इस मामले में जनवरी माह के अंतिम दिन फैसला आ जाएगा, लेकिन मामला फिर अगले दिन के लिए टल गया. राज्य के 11 संसदीय सचिवों को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई लगातार दूसरे दिन हुई. इससे पहले इस मामले में फैसला आने की उम्मीद मंगलवार को थी, लेकिन अदालत ने मामले की सुनवाई बुधवार को स्थगित कर दी.
अब मामले की सुनवाई गुरुवार को होगी. लिहाजा राजनीतिक गलियारों की बेचैनी लगातार बढ़ती जा रही है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अदालत की कार्यवाही पर पैनी निगाह गड़ाए हुए है. वहीं, दूसरी ओर बीजेपी की सांसे फूली हुई है, जिन तथ्यों को अदालत में विपक्षी पेश कर रहे है, उससे बीजेपी को शंका-कुशंका हो रही है. अदालत का फैसला राज्य में सत्ताधारी दल की राजनीति और भविष्य की राह तय करेगा. मोहम्मद अकबर और हमर संगवारी नामक स्वयं सेवी संस्था की ओर से राकेश चौबे ने याचिका दायर कर 11 संसदीय सचिवों की अयोग्य ठहराने के लिए कानूनी और संवैधानिक तथ्यों को अदालत के समक्ष रखा हुआ.
इस मामले में कुल चार याचिकाएं दायर की गई थीं. सभी याचिकाओं में कहा गया कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति संवैधानिक नहीं है. हालांकि पूर्व सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सभी संसदीय सचिवों के पावर को सीज करने का भी आदेश दे दिया गया है. उधर, फैसले को टालने के लिए राज्य की बीजेपी सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है.
राज्य के महाधिवक्ता ने कुछ दस्तावेज तैयार किए है. इसके जरिए वो अदालत के सामने यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि संसदीय सचिवों का पद राज्य में लाभ के पद में शामिल नहीं है. याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तथ्यों और हाईकोर्ट के रुख से अंदेशा है कि फैसला संसदीय सचिवों के खिलाफ ही आएगा. बहरहाल, लोगों की निगाहें अदालत के रुख पर टिकी हुई हैं. राज्य में कुल 90 सीटों में बीजेपी के पास 49, कांग्रेस के पास 36, BSP के पास एक और एक अन्य के पास हैं. 11 विधायकों की सदस्यता खत्म होने से बीजेपी सरकार अल्पमत में आ जाएगी. राज्य में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं. लिहाजा रणनीतिक तौर पर कानूनी दावपेंचों का सहारा लेकर बीजेपी इस प्रकरण को टालने के मूड में है.