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धरती खोदी और चट्टानों को चीरा...आखिरकार 104 घंटे बाद 65 फीट की गहराई से राहुल को निकाल लिया बाहर

Rahul Borewell Rescue Update: जांजगीर-चांपा जिले में बोरवेल से निकाले गए राहुल की हालत स्थिर है. उसे विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में एम्बुलेंस के जरिए बिलासपुर जिले के अपोलो अस्पताल भेजा गया है. इसके लिए लगभग 100 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है.

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बोरवेल से निकालने के बाद बच्चे को अस्पताल ले जाया गया.
बोरवेल से निकालने के बाद बच्चे को अस्पताल ले जाया गया.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ सफल
  • 104 घंटे तक चला बचाव कार्य
  • छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले का मामला

Chhattisgarh: जांजगीर-चांपा जिले के पिरहिद गांव में बीते शुक्रवार की दोपहर अपने ही घर के बोरवेल में गिरे 11 साल के राहुल को आखिरकार 104 घंटे रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद सकुशल बाहर निकाल लिया गया है. 65 फीट गहरे बोरवेल से निकाले जाने के बाद बच्चे की मौके पर मौजूद डॉक्टरों ने जांच की और फिर उसे विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में एम्बुलेंस के जरिए बिलासपुर जिले के अपोलो अस्पताल भेजा गया. इसके लिए लगभग 100 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है. एनडीआरएफ, सेना, स्थानीय पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों सहित 500 से अधिक कर्मी शुक्रवार शाम से चल रहे व्यापक बचाव अभियान में शामिल थे. 

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जिले के अंतर्गत मालखरौदा ब्लॉक के पिहरीद गांव में 11 साल का बालक राहुल साहू अपने घर के पास खुले हुए बोरवेल में गिर गया था. वह करीब 65 फीट की गहराई पर फंसा हुआ था. 10 जून को दोपहर लगभग 2 बजे अचानक घटी. इस घटना की खबर मिलते ही जिला प्रशासन की टीम कलेक्टर जितेंद्र कुमार शुक्ला के नेतृत्व में तैनात हो गई. समय रहते ही ऑक्सीजन पाइपलाइन की व्यवस्था कर बच्चे तक पहुंचाई गई. कैमरा लगाकर बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ उनके परिजनों के माध्यम से बोरवेल में फंसे राहुल पर नजर रखने के साथ उनका मनोबल बढ़ाया जा रहा था.

जूस और केला पहुंचाते रहे 

बच्चे तक जूस, केला और अन्य खाद्य सामग्रियां भी पहुंचाई जा रही थीं. विशेष कैमरे से पल-पल की निगरानी रखने के साथ ऑक्सीजन की सप्लाई भी की जा रही थी. आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था और एम्बुलेंस भी तैनात किए गए थे. राज्य आपदा प्रबंधन टीम के अलावा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन (NDRF) की टीम ओडिशा के कटक और भिलाई से आकर रेस्क्यू में जुटी थी. सेना के कर्नल चिन्मय पारीक अपनी टीम के साथ इस मिशन में जुटे थे. रेस्क्यू से बच्चे को सकुशल निकालने के लिए हर सम्भव कोशिश की गई.

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रस्सी नहीं पकड़ पा रहा था राहुल 

देश के सबसे बड़े रेस्क्यू के पहले दिन 10 जून की रात में ही राहुल को मैनुअल क्रेन के माध्यम से रस्सी से बाहर लाने की कोशिश की गई. राहुल द्वारा रस्सी को पकड़ने जैसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिए जाने के बाद परिजनों की सहमति और एनडीआरएफ के निर्णय के पश्चात तय किया गया कि बोरवेल के किनारे तक खुदाई कर रेस्क्यू किया जाए. रात लगभग 12 बजे से दोबारा अलग-अलग मशीनों से खुदाई प्रारंभ की गई. लगभग 65 फीट की खुदाई किए जाने के बाद पहले रास्ता तैयार किया गया.

चट्टान बनी बाधा 

एनडीआरएफ और सेना के साथ जिला प्रशासन की टीम ने ड्रीलिंग करके बोरवेल तक पहुंचने के लिए सुरंग बनाया. सुरंग बनाने के दौरान कई बार मजबूत चट्टान आने से इस अभियान में बाधा आई. बिलासपुर से अधिक क्षमता वाली ड्रिलिंग मशीन मंगाए जाने के बाद बहुत ही एहतियात बरतते हुए काफी मशक्कत के साथ राहुल तक पहुंचा गया. 

100 किमी लंबा ग्रीन कॉरिडोर

आखिरकार तमाम मशक्कतों के बाद मंगलवार देर रात सेना, एनडीआरएफ के जवानों ने रेस्क्यू कर राहुल को बाहर निकाला गया. मौके पर ही डॉक्टरों ने बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण किया और बेहतर उपचार के लिए 100 किमी लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाकर उसे अपोलो अस्पताल ले जाया गया. 

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बहरहाल, 104 से अधिक घंटे तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में राहुल साहू के जीवित बाहर निकाल लिए जाने से सभी ने राहत की सांस ली. पिता लाला साहू, मां गीता साहू सहित परिजनों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित कलेक्टर, जिला प्रशासन के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और एनडीआरएफ, सेना, एसडीआरएफ सहित सभी का विशेष धन्यवाद दिया.  

कलेक्टर सहित सभी अफसर दिन-रात रहे मुस्तैद, 5 दिन लगातार चला ऑपरेशन

राहुल के सलामती के लिए जहां दिन- रात पर दुआओं का दौर चला. वहीं, घटनास्थल पर इस ऑपरेशन के पूरा होने तक कलेक्टर जितेंद्र कुमार शुक्ला, पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल सहित तमाम अफसर रात भर घटनास्थल पर रेस्क्यू पर निगरानी रखे हुए थे. लगभग 104 घंटे से अधिक समय तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में राहुल के सकुशल बाहर आने की घटना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थी. 

राहुल को बोरवेल से निकालकर एंबुलेंस तक ले जाते बचावकर्मी.

आसान काम नहीं था

कलेक्टर ने बताया कि बोरवेल में फंसे होने की वजह से बालक का रेस्क्यू बहुत ही आसान काम नहीं था. सभी की कोशिश थी कि उसे सुरक्षित निकाला जाए. विपरीत परिस्थितियों के कारण जो भी संभव था, वह फ़ैसला एनडीआरएफ और परिजनों के साथ मिलकर लिए गए. कलेक्टर ने इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए जिले के अधिकारियों सहित आम नागरिकों से भी अपील की है कि किसी भी स्थान पर बोरवेल को खुला न रखें. अपने छोटे बच्चों को ऐसे स्थानों पर कतई न जाने दें और स्वयं भी अपने बच्चों को निगरानी में रखें. 
 

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( पिहरीद गांव से नरेश शर्मा की रिपोर्ट)


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