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छत्तीसगढ़ में विलुप्ति की कगार पर है ‘चांदी’ का पेड़

छत्तीसगढ़ में औषधीय वृक्ष कुल्लू विलुप्‍ति की कगार पर है. इन पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण चांदी जैसे चमकदार तने वाले कुल्लू के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है. चांदनी रात में अपनी चमक से पूरे जंगल में अलग से दिखाई पड़ने वाले कुल्लू को उसकी खूबसूरती के चलते अंग्रेजों ने ‘लेडी लेग’ का नाम दिया था.

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छत्तीसगढ़ में औषधीय वृक्ष कुल्लू विलुप्‍ति की कगार पर है. इन पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण चांदी जैसे चमकदार तने वाले कुल्लू के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है. चांदनी रात में अपनी चमक से पूरे जंगल में अलग से दिखाई पड़ने वाले कुल्लू को उसकी खूबसूरती के चलते अंग्रेजों ने ‘लेडी लेग’ का नाम दिया था. तने के आकर्षक चमकीलेपन के चलते अंग्रेज इसकी तुलना गोरी मेम की टांगों से करते थे. राज्‍य के अचानकमार में नाले के किनारे कुल्लू के कुछ पेड़ अब भी बचे हैं और जल्दी ही इन्हें बचाने की कोशिश नहीं की गई, तो ये दुर्लभ औषधीय पेड़ खत्म हो सकते हैं.

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छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व के पूर्व संचालक व वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी अनिल कुमार साहू का कहना है कि कुल्लू के पेड़ दुर्लभ हो सकते हैं, लेकिन विलुप्त नहीं हुए हैं. इन वृक्षों की संख्या बढ़ाने के लिए टिश्यू कल्चर का सहारा लिया गया, लेकिन इस प्रकार से उत्पन्न पेड़ों में उसके प्राकृतिक गुण नहीं रहते.

बिलासपुर स्थित गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में वनस्पति शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष सुनील चतुर्वेदी के मुताबिक कुल्लू का वानस्पतिक नाम ईस्टर कुलिया यूरेन है. चमकीले आकर्षक रंग के चलते ये पेड़ रात में अलग से पहचान में आते हैं. मार्च में इसके पत्ते जब गिर जाते हैं, तब पीले रंग के फूल खिलते हैं. सभी पत्ते झड़ जाने के बाद कुल्लू रात में अजीब दहशत पैदा करते हैं. लिहाजा इसे घोस्ट ट्री (भूतिया पेड़) के नाम से भी जाना जाता है.

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उन्होंने बताया कि कुल्लू का गोंद शक्तिवर्धक और औषधीय गुणों वाला होता है. विदेशों में इसकी कीमत काफी होती है. बहरहाल राज्‍य में अब भी इन पेड़ों की कुछ संख्यां बाकी हैं और जरूरत है इनको सहेज कर संरक्षित रखने की. नहीं तो ये सिर्फ किताबों और दंतकथाओं में ही रह जाएंगे.

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