छत्तीसगढ़ में MBBS की पढ़ाई कर रहे जूनियर डॉक्टरों को हाईकोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है. जिसके तहत राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई पूरी होने के बाद दो साल तक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देना जरूरी हो गया है. दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार के इस बारे में जारी दिशा-निर्देश को MBBS के छात्रों ने बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस की बेंच ने सरकार के नियम को जायज ठहराते हुए जूनियर डॉक्टरों की याचिका खारिज कर दी है.
जानकारी के मुताबिक, साल 2012 में राज्य सरकार ने नियम बनाया था कि MBBS के छात्रों को पढ़ाई पूरी करने के बाद अगले दो साल तक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देना अनिवार्य है. इसके लिए बकायदा MBBS के सामान्य वर्ग के छात्रों से पांच लाख और आरक्षित वर्ग के छात्रों के लिए तीन लाख रूपये का बॉन्ड भरना जरुरी है. इस नियम का उल्लंघन करने पर सरकार ने पांच लाख तक के जुर्माने का प्रावधान किया है. यही नहीं सरकार चाहे तो ऐसे MBBS छात्रों की डिग्री पर रोक भी लगा सकती है.
राज्य सरकार के इस नियम को प्रतिभा सिन्हा सहित MBBS के अन्य छात्रों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. मामले की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार के नियम को सही ठहराते हुए MBBS विद्यार्थियों की याचिका ख़ारिज करते हुए राज्य सरकार के फैसले को जायज करार दिया.
उधर याचिका रद्द होने के बाद छात्रों और उनके परिजनों में हड़कंप मचा है. उनकी दलील है कि ग्रामीण इलाकों में बुनियादी सुविधाएं नहीं है. न तो रहने के लिए उपयुक्त मकान है, न सड़कें और न ही बच्चों के लिए शिक्षा के अच्छे केंद्र. ऐसे में गांव की ओर रुख करना बिल्कुल मुनासिब नहीं है.
दूसरी ओर सरकार की दलील है कि पिछले 15 सालों में ग्रामीण इलाकों का कायाकल्प हो चुका है. गांव में भी अब शहरों जैसी मूलभूत सुविधाएं हैं, लेकिन डॉक्टरों को इंसानों के स्वास्थ्य को लेकर बुनियादी सुविधाओं का रोना नहीं रोना चाहिए.
ज्यादातर डॉक्टर अभी भी शहरी इलाकों में ही अपनी तैनाती पर जोर दे रहे हैं. अब ये डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में सेवा न करने के लिए अपनी नई दलीलों के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं.
प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से हर साल सैकड़ों डॉक्टर डिग्री लेकर निकलते हैं, लेकिन इक्का-दुक्का ही ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं देने के लिए राजी होते हैं. ज्यादातर शहरों में अपने निजी क्लिनिक खोलकर प्रैक्टिस में जुट जाते हैं.
राज्य सरकार ने गांव-गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और क्लिनिक खोले हैं, लेकिन डॉक्टरों की गैर मौजूदगी और इस मानसिकता के चलते ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं लगातार लचर होती जा रही हैं.