छत्तीसगढ़ सरकार के बार-बार यू टर्न से राज्य में कांग्रेस पशोपेश में है. वह समझ ही नहीं पा रही कि आखिर राज्य की बीजेपी सरकार करना क्या चाहती है और वह किन मुद्दों पर उसे घेरे.
मुख्यमंत्री रमन सिंह की कैबिनेट बार-बार अपने फैसले पलट रही है. इसे प्रशासनिक चूक कहें या फिर लापरवाही या फिर बीजेपी की रणनीति का हिस्सा, लेकिन राज्य सरकार के एक के बाद एक यू-टर्न लेने से कांग्रेस भ्रम की स्थिति में आ गई है.
कांग्रेस जैसे ही विरोध-प्रदर्शन की रूपरेखा तय करती है वैसे ही बीजेपी सरकार अपने फैसले वापस ले लेती है. इससे कांग्रेस को समझ ही नहीं आ रहा कि वो बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन कहां से शुरू करे और कहां खत्म. हालांकि राज्य सरकार के यू-टर्न लेने से उसे बीजेपी पर हमला करने के नए मौके मिल रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के करीब आते ही मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनकी सरकार के यू-टर्न से कांग्रेस भरमा गई है. भ्रम की स्थिति ऐसी है कि कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा है कि बीजेपी के खिलाफ आंदोलन कहां से शुरू करे और कहां खत्म. दरअसल महीनेभर के भीतर छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार ने कैबिनेट से पारित अपने ही फैसलों को वापस लेना शुरू कर दिया.
सरकार के इन कदमों से बीजेपी के विरोधी दलों से लेकर आम जनता भी पशोपेश में है. मुख्यमंत्री रमन सिंह की कैबिनेट महत्वपूर्ण मामलो पर जितनी जल्दी फैसला ले रही है, उतनी जल्दी अपने फैसलों से पलटते भी जा रही है.
पहला मामला, आदिवासियों की जमीन को लेकर भू-राजस्व संहिता में संशोधन से जुड़ा है. राज्य की बीजेपी सरकार ने कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर यह नियम पारित किया कि अब आदिवासियों की जमीन विकास कार्यों के लिए खरीदी बिक्री की जा सकेगी. कैबिनेट के प्रस्ताव का राज्यभर में विरोध हुआ और आखिरकर सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा.
दूसरा मामला, स्काई योजना से जुड़ा है. इस योजना के तहत राज्य की बीजेपी सरकार ने लगभग एक हजार करोड़ रुपये की लागत से 55 लाख से ज्यादा लोगों को मुफ्त में स्मार्टफोन बांटने का ऐलान किया. बेहतर कनेक्टिविटी के लिए रमन सिंह कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित किया कि मोबाइल टॉवरों का निर्माण पंचायतों के फंड से किया जाएगा. इसके लिए प्रदेश की सभी ग्राम पंचायतों की विकास निधि से मोबाइल टावर के निर्माण में खर्च होने वाली लगभग आठ से दस लाख रुपये तक की रकम की कटौती किए जाने पर कैबिनेट की मुहर लगी. सरकार के इस फैसले का बीजेपी और कांग्रेस शासित दोनों ही पंचायतों ने विरोध किया. आखिरकर सरकार ने अपना यह फैसला भी पलट दिया.
तीसरा मामला, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की जाति से जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकार ने जोगी की जाति की जांच के लिए हाई पावर कमिटी गठित की, लेकिन एक सदस्यीय समिति ने जोगी को फर्जी आदिवासी करार दिया. जोगी ने हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी. हाईकोर्ट ने तकनीकि आधार पर हाई पावर कमिटी को ही गैरकानूनी करार देते हुए उसका फैसला निरस्त कर दिया, और राज्य की बीजेपी सरकार को नए सिरे से कमिटी गठित करने के निर्देश दिया.
तीनों ही मामलों को लेकर बीजेपी सरकार की जमकर किरकिरी होने के बाद फैसले पलटने से जनता भले ही पशोपेश में हो, लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस तिलमिलाई हुई है क्योंकि उसके विरोध-प्रदर्शन की रूपरेखा ही नहीं बन पा रही है.
सरकार का अपने ही फैसलों से यू-टर्न लेना सरकारी मशीनरी के नाकाम होने की ओर इशारा करता है. किसी भी मसले पर कैबिनेट का फैसला लिया जाना एक महत्वपूर्ण सरकारी निर्णय होता है. जो कानूनन बंधनकारी भी होता है, लेकिन जिस तेजी से सरकार अपने फैसलों को पलट रही है उससे सरकार की साख पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह का मानना है कि उनके यू-टर्न से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. काम बेहतर होगा तो वो चौथी बार फिर सत्ता में आएंगे.
फिलहाल राज्य में एक के बाद यू-टर्न की नौबत आखिर क्यों आ रही है, या फिर ये बीजेपी की रणनीति का कोई हिस्सा है इसे लेकर राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है.