छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक सरकारी शिविर में नसबंदी के बाद हुई महिलाओं की मौत मामले में नए आरोप सामने आए हैं. बैगा जनजाति की एक दिवंगत महिला के पति ने आरोप लगाया है कि स्वास्थ्य कर्मियों ने उन पर दबाव डाला और पैसा देने का वादा भी किया था.
बुद्धु सिंह ने आरोप लगाया, ‘सहायक नर्स मिडवाइफों और दूसरी महिला स्वास्थ्य कर्मियों ने महिलाओं से कहा कि उन्हें बहुत बड़ी रकम और मुफ्त दवाइयां मिलेंगी. लेकिन उसके बाद उन्हें बस 30-40 रुपए दिए गए और कहा गया कि बाकी पैसे उनके (गाड़ी) भाड़े और दूसरे इंतजामों पर खर्च हो गए.’ बुद्धु सिंह की पत्नी उन 13 महिलाओं में एक थी जिनकी नसबंदी के ऑपरेशन के बाद मौत हो गई.
बैगा जनजाति की महिलाओं की नसबंदी पर है रोक
1970 के दशक में जारी एक आदेश के अनुसार, कोरवा, बैगा, अबुझमरिया, बिरहोर और कमर जनजातियों में उच्च मृत्युदर के चलते नसबंदी पर प्रतिबंध है. ये जनजातियां छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में रहती हैं.
सिंह ने बताया कि गौरेला क्षेत्र से बैगा जनजाति की कम से कम 18 महिलाओं की नसबंदी की गई जबकि सरकार ने दावा किया है कि इस जनजाति की बस दो महिलाओं का ऑपरेशन किया गया. छत्तीसगढ़ में नसबंदी कराने वाली महिलाओं के लिए सरकारी मानदेय इसी महीने 600 से बढ़ाकर 1400 कर दिया गया था. पेंड्रा के सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट ओ पी वर्मा ने बताया कि एक अन्य बैगा महिला मंगली का भी ऑपरेशन हुआ था और उसका बिलासपुर के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है.
सादे कागज पर कराए गए हस्ताक्षर!
उन्होंने कहा कि हो सकता है कि पहले कुछ और बैगा महिलाओं का ऑपरेशन हुआ हो, इसकी जांच की जा रही है. बैगा और अन्य जनजातियों को संरक्षण प्रदान करने वाला आदेश अब भी कवर्धा, बीलापुर, कोरबा, मुंगेली, सुरगुजा और छत्तीसढ़ के अन्य क्षेत्रों में प्रभाव में है. हालांकि यदि कोई महिला लिखित सहमति देती है तो उसका ऑपरेशन किया जा सकता है. पर बुद्धु सिंह का कहना है कि ऐसी सहमति नहीं ली गई.
सिंह ने कहा, ‘स्वास्थ्यकर्मियों ने मुझसे एक सादे कागज पर हस्ताक्षर कराया और मेरी पत्नी का अंगूठा निशान लिया गया. उन्होंने हमसे कहा कि ये कागजात सरकार से हमें लाभ पहुंचाने में इस्तेमाल किए जाएंगे. अब अधिकारी कह रहे हैं कि ये हलफनामे हैं जिन पर हमने हस्ताक्षर किए हैं.’