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फसल बीमा करने वाली कंपनियों ने छोड़ा किसानों का साथ

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के पिरिद गांव के हजारों किसान मुसीबत में हैं. ये किसान फसल बीमा की रकम को पाने के लिए दो साल से एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. लेकिन इनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं है.

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किसान परेशान
किसान परेशान

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छत्तीसगढ़ में फसल बीमा करने वाली कंपनियों ने कई इलाकों में ऐसा पैंतरा खेला है कि किसान चारों खाने चित हो गए हैं. बीमा कंपनियों ने फसल बीमा की बाकायदा प्रीमियम की रकम वसूली, लेकिन जब बारी नुकसान के भरपाई की आई, तो बीमा कंपनियों ने पल्ला झाड़ लिया.

कहीं सूखे की वजह से तो कहीं जरूरत से ज्यादा पानी गिर जाने से और तो और आंधी-तूफान से किसानों  की फसलें बर्बाद हुई थीं. किसानों ने फसल बीमा की रकम की अदायगी के लिए जब एग्रीकल्चर सोसायटी का दरवाजा खटखटाया तब पता चला कि नुकसान की भरपाई करने की बजाए बीमा कंपनियों ने प्रीमियम की रकम ही लौटा दी. फसल बीमा को लेकर छले गए किसान इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं. राज्य के कई जिलों में बीमा कंपनियों ने किसानों को झटका दिया है.

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नुकसान भरपाई की बजाए प्रीमियम की रकम लौटाई

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के पिरिद गांव के हजारों किसान मुसीबत में हैं. ये किसान फसल बीमा की रकम को पाने के लिए दो साल से एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. लेकिन इनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं है. इन किसानों ने अपने खेतों में चावल और दाल की फसल लगाई थी. उसका बीमा भी करवाया था, लेकिन चक्रवाती तूफान से एक ही दिन में खड़ी फसल चौपट हो गई. इस गांव के करीब चार सौ किसानों की हालत उस समय पतली हो गई, जब फसल बीमा की रकम की मांग को लेकर वे सोसायटी पहुंचे. सोसायटी के अफसरों ने उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि बीमा करने वाली कंपनियों ने उनकी प्रीमियम की रकम ही लौटा दी है. ऐसे में उन्हें मुआवजा कौन दे. साल भर किसानों ने फसल बीमा की किश्ते अदा की थी. अब ये किसान नुकसान की भरपाई को लेकर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन फसल बीमा करने वाली कंपनियों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा.

बताया जा रहा है कि नुकसान की भरपाई के पैमाने पर ज्यादातर बीमा कंपनियां फिसड्डी साबित हो रही हैं. वे फसल बीमा के मुआवजे का अगर शतप्रतिशत भुगतान करेंगी तो उन्हें खुद के डूब जाने का खतरा है. लिहाजा वे नुकसान की भरपाई के मामले में आनाकानी कर रही हैं. फसल बीमा करने वाली कंपनियों की फेहरिस्त में कई नामी कंपनियां हैं, जो मुसीबत में लोगों की सहायता का दावा कर रोजाना अपना कारोबार बढ़ा रही हैं.      

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कई इलाकों में किसान परेशान

सिर्फ बालोद ही नहीं दुर्ग, बेमेतरा, कवर्धा, धमतरी, महासमुंद जिले समेत कई और ऐसे इलाके हैं, जहां फसल बीमा करने वाली कंपनियों ने मौका पड़ने पर प्रीमियम की रकम ही लौटा दी है. प्रीमियम की रकम लौटा देने से मामला कानूनी पेंच में फंस गया है. किसान कभी सोसायटी तो कभी कलेक्टर के दफ्तर का मुंह ताक रहे हैं. ताकि ऐसी कंपनियों के खिलाफ कोई तो कार्रवाई हो सके, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आया.

इस मामले को लेकर राज्य के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का अपना तर्क है. उनका कहना है कि तमाम मामलों की शिकायतें जब उनके सामने आएंगी तो वो जरूर गौर फरमाएंगे. हालांकि शिकायतें अभी अफसरों की टेबल पर हैं. जिला कलेक्टर और सब डिविजनल मजिस्ट्रेट के अलावा राजस्व न्यायालय में विभिन्न बीमा कंपनियों की लगभग पौने चार लाख शिकायतें हैं. इनमें से ज्यादातर फसल बीमा योजना की नुकसान की भरपाई को लेकर है. किसानों के खेत खलिहानों का सर्वे करने के बाद ज्यादातर बीमा कंपनियों ने उन्हें मुआवजा देने के मामले में हाथ पीछे खींच लिए. कई मामलों में दावा आपत्ति की सुनवाई चल रही है. अपने वकीलों के माध्यम से ज्यादातर मामलों में बीमा कंपनियों ने कानूनी दांव-पेंच खेला है और किसानों की प्रीमियम की रकम पिछले दरवाजे से सहकारी समितियों को सौंप दी है, ताकि मुआवजे की नौबत ही ना आए. उनका ये पैंतरा सरकारी दिशा-निर्देशों को मुंह चिढ़ा रहा है.   

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बीमा कंपनियों और सरकार के करार पर सवाल

केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक फसल बीमा योजना का गुणगान करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती हैं, लेकिन जब इस तरह के हालात पैदा हो जाते हैं, तब किसानों की ओर रुख करने का समय तक उनके पास नहीं होता. फसल बीमा योजना के लिए राज्य व केंद्र सरकारों और बीमा कंपनियों के बीच हुए करार पर अब सवालियां निशान लगने लगे हैं.

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