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सरकारी डॉक्टरों ने दस्तावेजों पर 15 दिनों तक नहीं किए दस्तखत, गई एक और बच्चे की जान

मासूम बच्चों के दिल में होने वाली बीमारियों खासकर हृदय में छेद होने की बीमारी से ग्रसित बच्चों के इलाज के लिए राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना शुरू की है.

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डॉक्टरों ने नहीं की फाइल पर साइन
डॉक्टरों ने नहीं की फाइल पर साइन

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मासूम बच्चों के दिल में होने वाली बीमारियों खासकर हृदय में छेद होने की बीमारी से ग्रसित बच्चों के इलाज के लिए राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना शुरू की है. लेकिन इस योजना का लाभ उठाने के लिए जरूरतमंद बच्चों और उनके परिजनों को जमकर पापड़ बेलने पड़ रहे हैं. इसके चलते कई बच्चे बेमौत मारे जा रहे हैं. ऐसी ही एक घटना भिलाई में घटित हुई. हालांकि लापरवाह डॉक्टरों को शासन ने नोटिस जारी किया है. लेकिन उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी इस ओर लोगों की निगाहें लगी हुई हैं.

सरकारी योजना से दिल के सुराख के ऑपरेशन की उम्मीद के बीच भिलाई के एक निजी अस्पताल में भर्ती पांच माह की बच्ची ने दम तोड़ दिया. वह सरकारी योजना से इलाज कराने की हकदार थी. उसके परिजनों के पास दस्तावेज भी पूरे थे. लेकिन सरकारी डॉक्टरों की लापरवाही और असंवेदनशीलता से उसकी जान नहीं बच पाई. सुपेला निवासी 29 वर्षीय ज्योति वर्मा की पहली संतान पांच माह की नव्या दिल में छेद लिए जन्मी थी. उसकी बीमारी का पता लगने पर पिता ने मुख्यमंत्री बाल हृदय सुरक्षा योजना से मदद की गुहार लगाई. पहले तो सरकारी बाबुओं और डॉक्टरों ने दस्तावेज पूरे करने के नाम पर चक्कर लगवाए. आखिर में दस्तावेज के जरिए नव्या को इलाज का हक मिलने का समय आया तो सिर्फ एक दस्तखत के लिए मामला अटक गया. गंभीर हालत में एक निजी अस्पताल में भर्ती होने के चलते सरकारी डॉक्टरों ने दस्तखत करने से इंकार कर दिया. परिजन डॉक्टरों से गुहार लगाते रहे लेकिन वो टालमटोल करते रहे.

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नव्या के परिजनों ने भिलाई की सिविल सर्जन डॉ. रेखा गुप्ता से बात की तो उन्होंने निजी अस्पताल में वेंटिलेटर पर जिंदा बच्ची को उनके सामने नहीं लाए जाने की बात कहकर फोन एसएनसीयू प्रभारी डॉ. प्रफुल्ल जैन को दे दिया. इस डॉक्टर ने ऐसा जवाब दिया कि नव्या के परिजनों के होश उड़ गए. इस डॉक्टर ने तो साफ कह दिया कि जिस बच्ची की जिंदा रहने की उम्मीद नहीं उसके लिए सरकारी पैसा क्यों बर्बाद करना? पीड़ितों के काफी रिकवेस्ट करने के बाद शाम को सिविल सर्जन ने दस्तावेज पर दस्तखत कर दिए. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. आख़िरकर बेहतर इलाज के अभाव में नव्या ने वेंटिलेटर पर ही दम तोड़ दिया.

मामले के तूल पकड़ने के बाद हरकत में आया विभाग
राज्य के स्वास्थ्य सचिव सुब्रत साहू ने सिविल सर्जन को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. उनके मुताबिक नियमो में कही नहीं लिखा है कि वेंटिलेटर में यदि कोई मरीज है तो सरकारी योजना के तहत उसका उपचार नहीं होगा. उनके मुताबिक जिम्मेदार डॉक्टर को मरीज के वेरिफ़िकेशन के लिए स्वयं निजी अस्पताल में जाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

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