नरेंद्र मोदी के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह बीजेपी की ऐसी दूसरी शख्सियत हैं जो विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर हैट्रिक सीएम क्लब में शामिल हो गए हैं. कांटे के मुकाबले में जब बीजेपी का आंकड़ा 49 सीटों पर जाकर स्थिर होने लगा तो सीएम हाउस में मौजूद अधिकारियों की पूरी टीम और खुद रमन सिंह के परिवार-रिश्तेदारों के चेहरे पर सुकून नजर आया. जीत के फौरन बाद इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता संतोष कुमार ने उनसे खास बातचीत की. पेश है उसके अंश-
सवाल- जीत की हैट्रिक हुई है, लेकिन कांटे के मुकाबले में मिली इस जीत में किस चेहरे ने रखी लाज, डॉ. रमन या नरेंद्र मोदी?
जवाब- मोदी जी का असर छत्तीसगढ़ में पड़ा है. लेकिन इसके साथ सरकार की योजनाओं का भी एक असर आम जनता पर रहा है.
सवाल- काफी ऊहापोह वाला दिन रहा नतीजों को लेकर, कैसे आज का दिन बाकी दिनों से अलग रहा?
जवाब- बिलकुल 20-20 का जो खेल होता है, आखिरी ओवर-आखिरी बॉल तक जो उतार-चढ़ाव होता रहा. लेकिन मुझे मालूम था कि नतीजा अच्छा आएगा. कुल मिलाकर 49 सीट पर स्थिर हो गया. पूरे देश में छत्तीसगढ़ को लेकर जिज्ञासा थी.
सवाल- यह हैट्रिक डॉ. रमन सिंह के लिए निजी तौर पर कितना मायने रखती है?
जवाब- निजी तौर पर कहें या पार्टी के नाते या फिर देश के मौजूदा परिदृश्य के मद्देनजर, तीनों परिस्थिति में तीसरी बार चुनाव जीतना अपने आप में एक, इससे ज्यादा बेहतर अवसर क्या हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री रहते हुए ये अवसर मिला और हम सफल हुए हैं और पूरी टीम सफल हुई.
सवाल- चुनाव में ये देखा गया कि आपलोगों ने नरेंद्र मोदी की सभाएं बढ़ाकर दोगुनी की, क्या कोई अंदेशा था?
जवाब- फेज वन में हम कहीं न कहीं थोड़े पीछे हो रहे थे. सो हमने फेज-2 में फोकस किया. मैंने खुद अपने कार्यक्रम दोगुने किए. तीन से पांच, पांच से आठ और आठ से 10. मोदी और बाकी नेताओं का भी दौरा बढ़ाया. फेज-टू में हमने पूरी ताकत झोंकी और उसका नतीजा भी अच्छा निकला.
सवाल- तीसरे टर्म में आपकी सरकार की प्राथमिकताएं क्या होगी?
जवाब- जिस आधार पर और जिन कामों को लेकर जनता ने अवसर दिया, उसे और बेहतर क्रियान्वयन करना. हमने पीडीएस को बेहतर किया, कोर पीडीएस में आ गए. महिलाओं के नाम से कार्ड. इस सिस्टम को मजबूत करना, ताकि आखिरी व्यक्ति तक कोई शिकायत न हो. खरीद प्रक्रिया को बेहतर किया, बोनस का जो वादा किया वो पूरा करेंगे. युवाओं के लिए रोजगार के ज्यादा अवसर मिले, उसके लिए हमने जो 27 जिलों में कार्य योजना बनाई है, टैबलेट, लैपटॉप. जो उम्मीदें है उसे पूरा करने का अवसर रहेगा.
सवाल- आदिवासी क्षेत्र अब भी विकास की मुख्यधारा से पूरी तरह कनेक्ट नहीं हो पाए हैं, क्या आप मानते हैं कि चुनाव पर उसका असर पड़ा है?
जवाब- आदिवासी विकास की मुख्यधारा से जुड़े हैं. उनका बड़ा सहयोग मिला है इस चुनाव में भी. चाहे कोरिया हो या जशपुर, पूरी सीटें हम जीतकर आए हैं.
सवाल- लेकिन आप बस्तर-सरगुजा और खुद राजनंदगांव जो आपका जिला है, उसमें पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब है?
कुछ उम्मीदवारों के मामले में लोगों ने रिएक्ट तो किया है. हम इसकी समीक्षा करेंगे.
सवाल- कहा जा रहा है कि आदिवासी जनसंख्या ग्रोथ रेट में भारी गिरावट आई है. यह समाज कांबिंग ऑपरेशन और नक्सलियों के बीच के दो पाटों में पिस रहे है, आपको नहीं लगता कि ये लोग सरकार से नाराज हैं?
जवाब- आदिवासियों का जबरदस्त समर्थन मिला है पूरे छत्तीसगढ़ में, बस्तर की कुछ सीटों को छोड़कर.
सवाल- चुनाव में आपके लिए सबसे कठिन दौर क्या रहा?
जवाब- नतीजों में जब उतार-चढ़ाव हो रहा था तब बेहद कठिन लग ही रहा था. कभी कांग्रेस की 49 सीटें तो हमारी 38 हो गई.
सवाल- चुनाव प्रचार के दौरान कभी लगा कि इस बार थोड़ी मुश्किल है?
जवाब- प्रचार के समय कहीं कोई दिक्कत नहीं थी. काफी सघन अभियान किया. 102 स्थानों पर मैं गया, 75 विधानसभाएं कवर की. विकास यात्रा की थी.
सवाल- आपको लगता है कि अगर और मौजूदा विधायकों के टिकट काटे गए होते तो नतीजे बेहतर हो सकते थे?
जवाब- चुनाव के बाद तो लोग ऐसा कह सकते हैं.
सवाल- लेकिन पहले 20-22 विधायकों के टिकट कटने की बात थी, लेकिन आपने सिर्फ 13 टिकट काटे गए.
जवाब- 13 विधायक बदलने का फायदा तो मिला है.
सवाल- भ्रष्टाचार एक मुद्दा रहा. मंत्रियों-विधायकों के खिलाफ नाराजगी थी, लेकिन बतौर कैप्टन आपकी लोकप्रियता बढ़ती रही, क्या लगता है कि जो पांच मंत्री हार गए, स्पीकर हार गए, कैप्टन तो मजबूत रहा और खिलाड़ी पीछे रह गए. जिम्मेदारी किसकी? क्या कैप्टन में कहीं कमजोरी रह गई या खिलाड़ी खुद जिम्मेदार हैं?
जवाब- ठीक बात है, कहीं-कहीं हमारी चूक हुई है और कुछ लोग चुनाव में पीछे रह गए है. यह सबके लिए सबक है कि जनता का विश्वास और जनता के बीच हमारा सतत संपर्क बना रहे. ये चुनाव बहुत सारे सबक भी देता है सभी के लिए.
सवाल- कांग्रेस की हार की बड़ी वजह आपकी नजर में क्या है, अंदरुनी गुटबाजी या कुछ और वजह?
जवाब- देखिए कांग्रेस संगठित रूप से जितनी शक्ति लगा सकती थी, लगाई. राहुल गांधी तो खुद इस चुनाव में लड़ते रहे. हर 90 विधानसभा सीट में अपनी पर्सनल टीम भेजी. लगातार तीन महीने लगे रहे, उन्हें लगता था कि ये चुनाव जीत जाएंगे. ये सारी मेहनत और ताकत लगाने के बाद भी हार गए. दिल्ली में जो वातावरण बना उसका भी असर हुआ छत्तीसगढ़ में.
सवाल- मैदानी इलाकों में बीजेपी की जीत हुई है, क्या वजह है कि बाकी क्षेत्र कट से गए?
जवाब- हर चुनाव में थोड़ा सा फर्क तो आता है. जहां पूरे के पूरे विधायक जीतकर आते हैं उस क्षेत्र में कुछ मुश्किल रहती है. इस बार हमको फायदा मिला, जहां पहले कांग्रेस के विधायक ज्यादा थे. उन्हें ये नुकसान हुआ और हमारा ये फायदा रहा.
सवाल- जिस तरह कांटे का मुकबला हुआ, आपको लगता है कि तीसरी पारी में संगठन और सरकार के स्तर पर बड़े पैमाने पर फेरबदल की जरूरत है, ताकि जनता में विश्वास कायम हो?
जवाब- हमारी नई टीम बेहतर होगी और अच्छी टीम बनाएंगे. संगठन की जवाबदेही मेरे पास तो नहीं है लेकिन सरकार में हम ऐसे लोगों को लाएंगे जो जनता के बीच ज्यादा बेहतर तरीके से पहुंचे. नया खून आने से इसमें फर्क जरूर पड़ेगा.
सवाल- कहा जा रहा है कि अधिकारी वर्ग में भी नाराजगी है सरकार के खिलाफ?
जवाब- अधिकारी वर्ग की तो ड्यूटी है काम का क्रियान्वयन करना. उनका कर्तव्य है कि काम को बेहतर तरीके से करे. उनकी नाराज होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है.
सवाल- दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि जहां कांग्रेस-बीजेपी के अलावा तीसरा बेहतर विकल्प है, लोग उसे चुन रहे हैं. आपको लगता है कि लोग तीसरे विकल्प को चुन रहे हैं और जहां नहीं है वहां बीजेपी को चुन रहे हैं?
जवाब- दिल्ली का चुनाव एक सीमित क्षेत्र का है. 70 क्षेत्रों में. देश में चुनाव होगा तो स्पष्ट है और लोग मन बना चुके हैं, क्योंकि चार राज्यों में जनता ने बता दिया है कि बीजेपी ही विकल्प है. एनडीए की सरकार बनेगी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे, अब जनता ने मन बना लिया है.
सवाल- अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की जीत को आप किस तरह देखते हैं?
जवाब- ठीक है, दिल्ली में एक वातावरण बनाने में सफलता हासिल की है. अन्ना का इतना असर तो रहेगा ही.
सवाल- लोकसभा चुनाव को लेकर अब आपकी क्या रणनीति होगी?
जवाब- पिछली बार 10 जीते थे, इस बार 11 में 11 सीटें जीतकर देंगे.
सवाल- लेकिन आपके खुद के जिले राजनंदगांव में स्थिति कमजोर रही है. लोकसभा और विधानसभा में फर्क रहता है. विधानसभा में प्रत्याशियों को लेकर कुछ थोड़ी-बहुत दुख और तकलीफ होती है.
जवाब- लोकसभा में राष्ट्रीय मुद्दे होंगे और इस बार उन सभी क्षेत्रों में सफल होंगे.
सवाल- अगर लोकसभा में बीजेपी की सीटें कम रह जाती है और मोदी के नाम पर सहमति नहीं बनती तो क्या डॉ. रमन विकल्प हो सकते हैं?
जवाब-
मैं नहीं समझता कि वैसी परिस्थिति बनेगी. बीजेपी अच्छे बहुमत के साथ जीतेगी और कहीं विकल्प ढूंढने की जरूरत देश को नहीं पड़ेगी.
सवाल- अगर विकल्प की बात होती है और आपके नाम पर विचार होता है तो क्या आप तैयार हैं?
जवाब-
मुझे नहीं लगता है कि ऐसा कोई विषय होगा.