अफसरशाही किस तरह से चुनी गई सरकारों पर हावी है और एयर कंडीशन कमरों में बैठ कर किस तरह से सूखाग्रस्त किसानों के हित में फैसला लेती है, इसे दिखाने के लिए आजतक पहुंचा छत्तीसगढ़ . इस बार यहां सूखा पड़ा है. राज्य के 27 में से 22 जिलों में सूखा राहत काम खोले जाने को लेकर पांच हजार करोड़ का काम का प्रोपोजल केंद्र सरकार को भेजा गया है.
इसके अलावा किसानों को सूखा राहत पैकेज देने के लिए 22 हजार करोड़ का भी प्रपोजल केंद्र सरकार के पास विचाराधीन है. राज्य में 96 तहसील विधिवत सूखाग्रस्त घोषित की गयी है. कुल मिलाकर राज्य का 90 फीसदी हिस्सा सूखाग्रस्त है. इसके बावजूद नौकरशाहों ने छत्तीसगढ़ में धान की खरीदी के लिए करीब 70 लाख मैट्रिक टन धान खरीदने का फैसला लिया है. वो भी करीब 15 हजार करोड़ की लागत से.
यह फैसला ऐसे समय किया गया है जब राज्य के तमाम खेत खलिहानों में सूखे की वजह से पैदावार हुई ही नहीं और किसान सूखा राहत के लिए सड़को पर है. जब राज्य में सूखा है तो इतनी भारी मात्रा में ये अफसर धान कहां से लाएंगे. इसे लेकर किसान ही नहीं ख़रीद फरोख्त के जानकार भी हैरत में है.
खेत खलिहानों का रुख किया जाए तो पता पड़ेगा कि फसल हुई ही नहीं है. औसत से भी कम बारिश के चलते राज्य के एक तिहाई से ज्यादा हिस्सों में या तो किसानों ने बुआई ही नहीं की या फिर जिन किसानों ने बुआई की उनकी फसल सूखे की वजह से नष्ट हो गई.
कई इलाकों में किसानों ने नष्ट हुई फसलों को मवेशियों को खिलाना भी शुरू कर दिया. ताकि कमोवेश अगली बुआई के लिए खेत साफ़ हो सके. सूखे का जायजा लेने के बाद सरकार ने सूखा राहत काम खोले जाने को लेकर केंद्र का दरवाजा खटखटाया. राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने तत्काल फौरी सहायता के बतौर 21 सौ करोड़ रूपये भी सैंक्शन करा लिए.
ताकि किसानों को पिछ्ली बुआई के लिए बतौर प्रोत्साहन बोनस की रकम दी जा सके. इसके अलावा केंद्र सरकार से सूखा राहत पैकेज की मांग की है. वो भी बकायदा मनरेगा और दूसरी योजनाओं के जरिये राहत का काम खोला जा सके.
कैबिनेट की बैठक हुई जिसमें राज्य की बीजेपी सरकार ने सूखे का हवाला देते हुए फैसला लिया कि वो किसानों के लिए अपनी तिजोरी खोल रही है. उधर, मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किसानों के हमदर्द होने के दावे को राज्य की नौकरशाही ने इतनी गंभीरता से लिया कि सूखाग्रस्त होने के बावजूद 70 लाख मैट्रिक टन धान खरीदने का फैसला ले लिया और इसके लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज कर 10 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम भी स्वीकृत करा ली.
70 लाख मैट्रिक टन धान खरीदने की अफसरों की मंशा उस समय परवान चढ़ती है जब राज्य के किसी भी हिस्से में ना तो सूखा पड़ता और ना ही फसलों पर कीट पतंगों का हमला होता है और तो और मानसून भी पुरे प्रदेश में अच्छी तरह से मेहरबान होता. लेकिन धान खरीदी की योजना बन गयी. आला अफसरों को मुख्यमंत्री जी ने शाबाशी भी दे दी. लेकिन किसान सड़को पर उतर आये.
उन्होंने सरकार से सवाल किया कि जब सूखा है और पैदावार ही नहीं हुई तो आखिर धान कहां से आएगी. किसानो को अंदेशा है कि मौके का फायदा उठा कर अफसरों ने चौका मारा. पड़ोसी राज्यों से धान की स्मगलिंग होगी और अफरातफरी के बीच राज्य की बीजेपी सरकार फसल उत्पादक किसानों के बजाये चावल और धान के व्यापारियों और बिचौलियों से धान खरीदेगी.
संयुक्त किसान मोर्चे के अध्यक्ष अनिल दुबे का आरोप है कि कुछ सरकारी अफसर और सरकार के मंत्री पड़ोसी राज्यों से धान की अफरातफरी कर राज्य में धान खपाना चाहते हैं. इससे उनका फायदा होगा, लेकिन यहां के किसानों का हित मारा जायेगा. उनके मुताबिक जब सूखे की वजह से धान की पैदावार ही नहीं हुई, तो ऐसे में कहा से धान आएगी इसका जवाब सरकार के पास नहीं है.
छत्तीसगढ़ चावल उत्पादन के मामले में देश में अव्वल नंबर पर है. यहां का चावल PDS के जरिये देश भर में वितरित होता है. केंद्र और राज्य सरकार बड़े पैमाने पर सालाना धान की खरीदी करती है. इसी धान की कस्टम मिलिंग के जरिये चावल निकाला जाता है और फिर यही चावल केंद्र सरकार के वेयरहाउस में जमा किया जाता है.
राज्य में हालात यह है कि औसत से भी कम बारिश होने के चलते खेत खलियान सूखे पड़े है. ग्राउंड वॉटर लेवल काफी नीचे जा चुका है. पानी की किल्लत अभी से शुरू हो गयी है. किसान अपने सूखे खेतो में नहरों के जरिये बांधो से पानी की मांग कर रहे है, ताकि बेचने के लिए ना सही कम से कम पेट भरने के लिए साग सब्जियों और फसलों को उगा सके. ऐसे में अफसरों का धान की बम्पर पैदावार और उसकी खरीदी का प्लान सावन में हुए अंधे को हर जगह हरा ही हरा दिखाई देता है, इससे कुछ कम नहीं.