छत्तीसगढ़ में फसल बीमा योजना किसानों पर भारी पड़ रही है. हजारों रुपए प्रीमियम में देने के बावजूद बीमा कंपनियां फसल बीमा की रकम देने में आना-कानी कर रही है. सर्वे के नाम पर भुगतान रोक दिया गया है. राज्यभर के हजारों किसान बीमा कंपनियों के चक्कर काट रहे हैं. जिन किसानों को फसल की बर्बादी का सामना करना पड़ा है उन्हें बीमा कंपनियों ने 80 रुपए से लेकर 100 रुपए तक का मुआवजा बांटा है.
किसानों के साथ मजाक
दरअसल सालभर पहले बेमौसम बारिश और ओला वृष्टि के चलते किसानों की फसले नष्ट हो गई थी. सरकार ने तहसीलदार के जरिए किसानों की खराब हुई फसलों का सर्वे कराया था. सर्वे के बाद सरकार ने उन्हें मुआवजे का भरोसा दिलाया. लेकिन चेक के जरिए जब मुआवजे की रकम आई तो किसानों की आंखें फटी की फटी रह गई. बीमा कंपनियों ने अंबिकापुर जिले के लुंड्रा ब्लॉक के सैंकड़ों किसानों के साथ सरकार ने अजीबो गरीब मजाक किया है. किसानों को बीमे की रकम के तहत 80 रुपए से लेकर 100-150 और 200 रुपए के चेक जारी किए गए हैं. जब किसानों ने बीमे की रकम की अदायगी पर आपत्ति की और चेक लेने से इनकार कर दिया तो प्रशासन ने जांच का हवाला देकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया.
किसानों में भारी नाराजगी
राज्य के प्रमुख किसान नेता वीरेन्द्र पांडे का कहना है कि किसानों के ऊपर वज्रपात की तरह बीमा योजना है. उनके मुताबिक 10 फीसदी कुल बीमे की रकम का हिस्सा लेने के बाद बतौर मुआवजा 50 और 100 रुपए दिए जा रहे हैं. फसल बीमा योजना सिर्फ निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए लागू की गई है. लुंड्रा के किसान अपनी शिकायतें लेकर रायपुर में कृषि विभाग और बीमा कंपनियों के अफसरों ने चक्कर काट रहे हैं. लेकिन यहां भी उन्हें चलता कर दिया जा रहा है.
मंत्री ने दिया जांच का भरोसा
कई किसानों ने अपने चेक कृषि विभाग के अधिकारियों और सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के दफ्तर में जमा करा दिए हैं, उन्हें एक माह के भीतर नया चेक जारी होने का आश्वासन मिला था. लेकिन 6 महीने बीत गए प्रशासन ने उनकी सुध तक नहीं ली. हालांकि राज्य के कृषि मंत्री का कहना है कि वो मामले की जांच करवा रहे हैं. राज्य के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की दलील है कि सरकार का निर्देश है कि एक हजार रुपए से कम का चेक किसी को भी दिया नहीं जाएगा. वहीं कांग्रेस इसे किसानों का अपमान बता रही है और इस मामले को लेकर वो आंदोलन करने की तैयारी में है.