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सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से किसानों को हो रही परेशानी, सड़क पर टमाटर फेंकने को मजबूर

टमाटर की बम्पर पैदावार ने उन्हें फिर से मुसीबत में डाल दिया है. उत्पादन इतना हुआ है कि टमाटर का लागत मूल्य भी किसानों को नहीं मिल पा रहा है. नतीजतन कई इलाकों में किसानों ने अपनी फसल को सड़कों पर फेंकने की तैयारी की है. जशपुर में तो नाराज किसानों ने सब्जी मंडी से लेकर खेत खलिहानों तक सड़को पर टमाटर फेंककर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की.

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किसानों ने सड़क पर फेंके टमाटर
किसानों ने सड़क पर फेंके टमाटर

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छत्तीसगढ़ समेत देश के कई राज्यों में कुछ माह पहले टमाटर की कीमत को लेकर उपभोक्ता लाल पीले हो रहे थे. लगातार घाटे की वजह से किसानों ने टमाटर का उत्पादन बंद कर दिया था. ऐसे में उसकी कीमत 100 रुपये किलो तक जा पहुंची थी. इसके बाद बढ़ी हुई कीमत से किसानों की उम्मीद जगी. उन्होंने इसका उत्पादन शुरू किया, लेकिन फिर हालात ऐसे बदले कि अब किसान चिंता में डूब गए.

टमाटर की बम्पर पैदावार ने उन्हें फिर से मुसीबत में डाल दिया है. उत्पादन इतना हुआ है कि टमाटर का लागत मूल्य भी किसानों को नहीं मिल पा रहा है. नतीजतन कई इलाकों में किसानों ने अपनी फसल को सड़कों पर फेंकने की तैयारी की है. जशपुर में तो नाराज किसानों ने सब्जी मंडी से लेकर खेत खलिहानों तक सड़को पर टमाटर फेंककर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की.

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सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से आ रही दिक्कत

दरअसल, टमाटर की खेप पकिस्तान निर्यात होती थी. रोजाना लगभग 500 ट्रक टमाटर राज्य से बाहर चला जाता था. लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से पकिस्तान जाने वाले माल की खपत कम होती चली गयी. फिलहाल निर्यात बंद है. दूसरी ओर राज्य में टमाटर का उत्पादन चालीस फीसदी तक बढ़ गया है. ऊपर से अच्छी फसल आने से किसानों की हालत पतली हो गयी है. थोक में टमाटर की कीमत 80 पैसे से लेकर 1 रूपये प्रति किलो तक पहुंच गई है. जबकि खुदरा में यह चार से पांच रुपये प्रति किलो तक मिल रहा है.

बम्पर उत्पादन से कम हुए दाम

टमाटर की खेती के लिए एक एकड़ में ढाई लाख तक का खर्च आता है. सामान्य उत्पादन और खपत की स्थिति में प्रति एकड़ किसान को 30 से 40 हजार रुपये तक की कमाई होती है, लेकिन बम्पर उत्पादन से कीमत में आई गिरावट से किसानों को उत्पादन लागत तक नहीं मिल पा रहा है.

फसल फेंकने पर मजबूर हैं किसान

प्रति किलो टमाटर के उत्पादन में एक रुपये बीस पैसे से लेकर डेढ़ रुपये तक लागत आती है. ऐसे में किसानों ने टमाटर तोड़ना बंद कर दिया है. वे बतौर विरोध प्रदर्शन टमाटर फेंकने लगे हैं. नाराज किसानों की दलील है कि सरकार ने टमाटर के रख-रखाव और निर्यात के लिए कोई व्यवस्था नहीं की है, इसलिए वे अपनी फसल फेंकना ही मुनासिब समझ रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ का जशपुर जिला टमाटर नगरी के नाम से मशहूर है. इसके अलावा अंबिकापुर, सूरजपुर, बलरामपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, बालोद, धमतरी, बेमेतरा और महसमुंद में बड़े पैमाने पर टमाटर की पैदावार होती है. राज्य में टमाटर उत्पादन का कुल रकबा डेढ़ लाख हेक्टेयर के लगभग है. राज्य के विभिन्न जिलों में टमाटर की खपत कुल उत्पादन का महज 20 फीसदी है. शेष टमाटर दूसरे राज्यों और पकिस्तान तक निर्यात होता है.

पूरी तरह ठप हुआ निर्यात

साग सब्जियों का निर्यात करने वाले कारोबारी बताते हैं कि बीते दो सालों से रोजाना लगभग 500 ट्रक टमाटर विभिन्न राज्यों में भेजा जाता था. इसमें से आधे ट्रक बाघा बॉर्डर के जरिये पकिस्तान पहुंचता था, लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच फैले तनाव के कारण रोजाना निर्यात गिरता चला गया. अब हालत यह है कि यह निर्यात पूरी तरह से ठप्प हो गया है. दूसरी ओर अच्छी पैदावार से टमाटर के दाम घटते चले गए.

रामदेव के प्लांट से सुधरेगी हालत

छत्तीसगढ़ में बाबा रामदेव के पतंजलि संस्थान ने राजनांदगांव में फूड प्रोसेसिंग प्लांट की बुनियाद रखी है. इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार और पतंजलि के बीच करार भी हुआ है. लेकिन इस प्रोजेक्ट को पूरा होने में दो साल से ज्यादा वक्त लगेगा. ऐसे में किसानों को जल्द बाजार मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नहीं है.

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राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू

फिलहाल किसान बम्पर पैदावार को मुसीबत मान कर चल रहे हैं. उन्हें फसल तुड़वाने में ज्यादा लगत आ रही है. इसलिए कई किसानों ने टमाटर के खेतों से फसल निकालना ही बंद कर दिया है. इस साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. लिहाजा टमाटर राजनीति भी शुरू हो गयी है. तमाम राजनीतिक दल टमाटर उत्पादक किसानों की सहानुभूति पाने के लिए राज्य की बीजेपी सरकार पर हमला बोलने में पीछे नहीं हैं.

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