जापानी बुखार की आमद दर्ज होने की खबर के बाद छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के दर्जनों गांव में वीरानी छाने लगी है. ग्रामीण दहशत के मारे अपने घर छोड़ कर दूर दराज बसे अपने रिश्तेदारों के यहां शरण ले रहे हैं. आस-पड़ोस के बच्चों के बीमार पड़ने की खबर सुनते ही ग्रामीणों ने अपने घरों से दूरियां बनानी शुरू कर दी है. पलायन की स्थिति उन गांव में है जो मलकानगिरी से एकदम सटे हुए हैं. ओडिशा के मलकानगिरी में दर्जनों बच्चों की जापानी बुखार से हुई मौत की खबर सुनकर ही इन ग्रामीणों के होश फाख्ता हो रहे हैं. लिहाजा अपने बच्चों को बचाने के लिए एक के बाद एक कई गांव खाली होने लगे हैं.
छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सरहद पर स्थित होलेर गांव के लोग पलायन करने में मजबूर है. यह गांव ओडिशा के मलकानगिरी जिले से एकदम सटा हुआ है. इस गांव में सन्नाटा छाया हुआ है. करीब 200 घरों और 700 लोगों की बस्ती वाले इस गांव में गिने चुने आठ दस परिवार ही रह रहे हैं. बाकी पूरा गांव खाली हो चुका है. जिन लोगों ने इस गांव से पलायन किया है, उन्हें जापानी बुखार का खौफ सता रहा है. सिर्फ होलेर ही नहीं बल्कि मलकानगिरी से सटे दरभा, कोदरिपाल, नेतानाल और भूर्मि समेत दो दर्जन से ज्यादा गांव में ऐसा ही नजारा है. ग्रामीणों ने अपने बच्चो को अपने रिश्तेदारो के यहां भेज दिया है. कई ऐसे ग्रामीण भी है, जो अपने घरों में ताला लगाकर जगदलपुर, सुकमा, बीजापुर, कोटा, दंतेवाड़ा और कांकेर में अपने नाते रिश्तेदारो के यहां शरण लिए हुए हैं.
इन ग्रामीणों ने गांव छोड़ने के पहले ओडिशा के कई डॉक्टरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से संपर्क किया था. इनसे डॉक्टरी मदद की गुहार लगाईं थी. लेकिन उन्हें छत्तीसगढ़ के ग्रामीण होने के चलते कोई मदद नहीं मिली. नतीजतन मलकानगिरी से सटे गांव अब खाली होने लगे है. हालांकि ग्रामीणों के पलायन की खबर मिलने के बाद छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य विभाग हालात पर निगाह रखे हुए हैं. स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक पलायन वाले गांव में डॉक्टरों की टीम भेजी गई है, जो उन गांव में जाकर ग्रामीणों का रक्त परिक्षण कर रही है.
ओडिशा की तरह छत्तीसगढ़ को भी जापानी इंसेफ्लाइटिज से लड़ने के लिए वैक्सीन का इंतजार है. बताया जा रहा है कि समय पर वैक्सीन नहीं मिलने के चलते मलकानगिरी में नवजात से लेकर पांच साल तक के ज्यादातर बच्चे जापानी बुखार की चपेट में आ गए. डॉक्टरों के मुताबिक एंटी इंसेफ्लाइटिज वैक्सीन का असर उसे लगाने के सात दिनों बाद ही होता है, लिहाजा इसकी चपेट में आए बच्चों का इलाज करना मुश्किल हो रहा है.