छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ एक बार फिर ज्वाइंट ऑपरेशन की तैयारी जोर शोर से चल रही है. दरअसल मानूसन की लेटलतीफी का पुलिस ने सीधा फायदा उठाया है. आमतौर पर बारिश के मौसम में जंगलों की हरियाली और भीतरी रास्तों में नदी नालों के ऊफान में होने से जंगल में दाखिल होना मुश्किल होता है. लेकिन इस बार मानसून के आने में हुई देरी से नक्सलियों की कमर टूट गई है.
तेलंगाना राज्य के गठन के बाद छत्तीसगढ़ से सटी आंध्र प्रदेश की सरहद से नक्सलियों की आवाजाही लगभग खत्म होने के बाद केंद्रीय सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सरहद को नक्सलवाद से मुक्त करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. कई बड़े नक्सली नेताओं के आत्मसमर्पण के बाद पुलिस ने नक्सल प्रभावित इलाकों में संयुक्त ऑपरेशन छेड़ दिया है.
छत्तीसगढ़ में बारिश के मौसम में पुलिस नक्सलियों के खिलाफ किसी भी तरह का ऑपरेशन नहीं छेड़ती. इसका मुख्य कारण जंगलों की हरियाली से उन्हें विजिबिलिटी में होने वाली कठिनाई है. यही नहीं कई बार जंगल के भीतर के खेत खलिहानों में हरियाली और कम विजिबिलिटी के चलते निर्दोष ग्रामीण भी मारे जाते हैं. लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. मानसून की लेटलतीफी का भरपूर फायदा पुलिस उठा रही है. राज्य के ज्यादातर हिस्सों में मानसून ने दस्तक नहीं दी है. खासतौर पर बस्तर में. लिहाजा इस बार बारिश के मौसम में पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान जंगल के भीतर दाखिल होकर नक्सलियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं.
बारिश नहीं होने से जंगलों के भीतर पर्याप्त रोशनी मिल रही है. यही नहीं जंगल के भीतर के नदी नाले और पानी के कुण्ड सूखे हुए हैं. इससे पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों की चौतरफा आवाजाही हो रही है. मौके की नजाकत को देखते हुए ओडिसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश की पुलिस ने नक्सलियों के खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ दिया है. बताया जा रहा है कि इस ऑपरेशन के लिए मोदी सरकार ने खासतौर पर मंजूरी दी है.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं, ये चलता रहेगा. इसके लिए हमें सूझबूझ से काम करना पड़ेगा. इसलिए महासमुंद, सरायपाली से लेकर इन क्षेत्रों में हमने अतिरिक्त बटालियन की मांग की है और हमें मिल भी रही है. हमें दो अतिरिक्त बटालियन मिलेंगे. उन्हें हम दंतेवाड़ा, बीजापुर के एरिया में तैनात करेंगे.
बारिश में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन छेड़ने का एक महत्वपूर्ण कारण और भी है. दरअसल तेलंगाना राज्य के गठन के बाद ज्यादातर नक्सली नेताओं की राज्य में आवाजाही खत्म हो चुकी है. कई बड़े नक्सली कमांडरों ने छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश में आत्मसमर्पण किया है. उनके आत्मसमर्पण से नक्सलवाद की जड़ें कमजोर हुई हैं. राधा, राम लक्ष्मण, शंकर वासा, सुमारु, गोपी, बुला और बुधराम जैसे कुख्यात नक्सली सरेंडर कर चुके हैं. इनके सरेंडर से नक्सलवाद की जड़ें हिल गई हैं.
यहां तक कि नक्सली दलम चलाने के लिए आवश्यक रकम तक नहीं जुटा पा रहे हैं. दलम को सिर्फ पुलिस से लूटे गए हथियारों को लेना पड़ रहा है. नक्सली लड़ाकों को ना तो तनख्वाह मिल पा रही है और ना ही गांव से पहले की तरह समर्थन ही हासिल हो रहा है. लिहाजा वो आत्मसमर्पण की राह में हैं. नक्सली आंदोलन पहले कभी इतना कमजोर नहीं हुआ है. इसी बात को ध्यान में रखकर ज्वाइंट ऑपरेशन को मंजूरी दी गई है.
स्पेशल इंवेस्टीगेटिव ब्रांच के डीआईजी दीपांशु काबरा का कहना है कि नक्सलियों का आंदोलन अब समाप्ति की ओर है. पुलिस ग्रामीण इलाकों में आम जनता से सीधा संपर्क कर उनकी समस्याएं सुलझा रही है. इससे लोगों का पुलिस पर भरोसा बढ़ा है. ग्रामीण अब पहले की तरह नक्सलियों की मदद नहीं करते. हमें भी अब उनकी सूचना मिलने लगी है. हमें उम्मीद है कि बारिश के मौसम से नक्सलियों की पकड़ और ढीली हो जाएगी. क्योंकि जिस तरह से केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ तालमेल बिठाकर हम कार्यवाही कर रहे हैं, उससे नक्सलियों का दबदबा कम हुआ है और वो अपना इलाका छोड़कर भाग रहे हैं.
फिलाहल बस्तर के सैकड़ों गांवों में पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान एक ओर ग्रामीणों का दिल जीतने में जुटे हैं, तो दूसरी ओर जंगल के भीतर नक्सलियों से दो-दो हाथ करने में व्यस्त हैं.