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बंदरों के काटने पर वन विभाग देगा 59 हजार से लेकर पौने पांच लाख तक का मुआवजा

इस कवायद के बाद अब  बंदर के काटने पर वन विभाग ने मुआवजा देने का ऐलान किया है. राज्य में पहली बार बंदर के काटने पर मुआवजे का प्रावधान किया गया है, जिससे जंगलों से सटी आबादी ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों के लोग भी राहत की सांस ले सकें.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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छत्तीसगढ़ में चुनाव करीब आते ही जंगलों से सटी एक बड़ी आबादी को सरकार ने खुश कर दिया है. यहां लोग बंदरों से परेशान थे क्योंकि बंदरों को नुकसान पहुंचाने के चलते उनके खिलाफ पशु अत्याचार अधिनियम के तहत मामला पंजीबद्ध हो जाता था. लोगों की परेशानी को देखते हुए सरकार ने बंदरों की नसबंदी का फैसला किया. इसके लिए सरगुजा डिवीजन में एक अस्पताल भी खोलने की तैयारी की गई है.

इस कवायद के बाद अब  बंदर के काटने पर वन विभाग ने मुआवजा देने का ऐलान किया है. राज्य में पहली बार बंदर के काटने पर मुआवजे का प्रावधान किया गया है, जिससे जंगलों से सटी आबादी ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों के लोग भी राहत की सांस ले सकें.

बंदरों के मारने और काटने पर मिलेगा मुआवजा

वन विभाग ने ऐलान किया है कि बंदर के काटने पर यदि किसी व्यक्ति की मौत होती है तो उसके परिवार को गुजर बसर के लिए 4 लाख 78 हजार रुपये मुआवजा दिया जाएगा . बंदर के हमले से अपंग होने पर दो लाख रुपये और घायल होने पर 59 हजार रुपये की राशि बतौर मुआवजा दी जाएगी. इसके साथ ही यदि बंदर पालतू जानवरों या मवेशियों को नुकसान पहुंचाते हैं तो उसके मालिक को तीस हजार रुपये देने का निर्णय वन विभाग ने लिया है. बता दें कि अभी तक जंगली जानवरों में वाइल्ड लाइफ की सूची वन में दर्ज जानवरों के हमले पर मुआवजे का प्रावधान था. इसमें शेर, भालू, हाथी और तेंदुआ शामिल हैं. गौरतलब है कि राज्य के एक बड़े हिस्से में जंगल है और जंगलों में बंदरों की संख्या ज्यादा है.

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बंदरों के आतंक से त्रस्त है राज्य की आबादी

रायपुर समेत धमतरी, महासमुंद, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, अंबिकापुर, जशपुर, सूरजपुर, बलरामपुर और बैकुंठपुर के कई गांव कस्बों में बंदर आतंक का पर्याय बन गए हैं. कई बंदर इतने आक्रमक हो गए हैं कि वे हमले के दौरान इंसानों को मारते और काटते हैं. हमले से घायल व्यक्ति के शरीर में रैबीज की बीमारी तेजी से फैलती है. डॉक्टरों के मुताबिक कुत्ते के काटने से होने वाले रैबीज की तुलना में बंदर के काटने से होने वाले रैबीज का प्रभाव कही ज्यादा तेजी से होता है. इससे प्रभावित व्यक्ति की मौत तक हो जाती है.

बंदरों के काटने से कई लोगों की गई जान

डॉक्टरों के मुताबिक कई मामलों में देरी से हुआ उपचार कारगर साबित नहीं होता और मरीज की मौत हो जाती है. जबकि कुत्ते के काटने से फैला रैबीज कुछ हद तक नियंत्रित हो जाता है. हाल ही में रायपुर से सटे आरंग, अभनपुर , धरसींवा और मंदिर हसौद इलाके में कुल 47 लोगों को बंदरों ने काटा था. रायपुर और भिलाई के बीच ग्राम कुम्हारी के करीब स्थित नंदनवन चिड़ियाघर के आसपास के गांव में बंदरों के काटने से कई लोग प्रभावित हैं. इलाज के दौरान कुछ एक लोगों की मौत भी हुई है. सरकारी अफसरों ने जब इन इलाकों का दौरा किया और हालात से वाकिफ हुए तब जाकर वन विभाग पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए तैयार हुआ.

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वन्य जीव प्रेमी एवं जंगली जानवरों की आदतों पर अध्ययन करने वाले पंडित अजय मिश्रा के मुताबिक आबादी वाले इलाकों में बंदरों के हमले और उनकी मौजूदगी का मुख्य कारण जंगलों में फल-फूल वाले पौधों की कमी के साथ-साथ जल स्त्रोतों का घटना भी मुख्य कारण है. उनके मुताबिक छत्तीसगढ़ में लगातार तीन वर्षों से सूखा पड़ने और औसत से कम बारिश होने के चलते जंगलों में फलदार पौधों की कमी आई है. राज्य के वन मंत्री महेश गागड़ा ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि पीड़ितों को आर्थिक सहायता मिलने से उन्हें राहत मिलेगी. उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में बंदरों को नियंत्रित करने के प्रयासों में तेजी लाई जाएगी.

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