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एंटी नक्सल ऑपरेशन को खतरा नक्सलियों से नहीं... मानवाधिकार की वकालत से

पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने नक्सलियों को मार गिराने का फैसला कर लिया है. उन्हें मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी जोरों पर है. लेकिन आला अफसरों को मानव अधिकारों की वकालत करने वालो के दावपेंचों की भी चिंता सता रही है.

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सुकमा के शहीद
सुकमा के शहीद

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पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने नक्सलियों को मार गिराने का फैसला कर लिया है. उन्हें मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी जोरों पर है. लेकिन आला अफसरों को मानव अधिकारों की वकालत करने वालो के दावपेंचों की भी चिंता सता रही है. दरअसल, जब कभी भी नक्सलियों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर सुरक्षा बलों के कदम उठते हैं. उसी दौरान फोर्स पर मानव अधिकारों के हनन को लेकर एक खास वर्ग सक्रिय हो जाता है. पुलिस और सुरक्षा बलों पर ज्यादतियों का आरोप लगा कर उनकी कार्यवाही को ना केवल नाजायज ठहराया जाता है बल्कि उसे अदालत में भी चुनौती दी जाती है. छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की तलाश में जुटी एंटी नक्सल ऑपरेशन की टीम ने जंगलों में दबिश तो दे दी है, लेकिन उन्हें मानव अधिकारों के हो हल्ले की भी आशंका है.

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ये वो वीर जवान हैं जिन्होंने नक्सलियों से लोहा लेते हुए अपने प्राण निछावर कर दिए. ये जवान सुकमा में तैनात थे. इन पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया . अपने बचाव में नक्सलियों ने ग्रामीणों का इस्तेमाल उन्हें सामने रख बतौर ढाल की तरह किया था. ग्रामीणों को बचाने के लिए इन जवानों ने पहले फायर नहीं किया. नतीजतन नक्सली फायरिंग पहले हुई और ये जवान वीर गति को प्राप्त हुए. लेकिन बस्तर से लेकर दिल्ली तक ना तो किसी मानव अधिकारवादी संगठन और उसके कार्यकर्ताओं ने इन जवानों के मानव अधिकारों की रक्षा की वकालत की और ना ही इन्हे इंसाफ दिलाने के लिए आवाज उठाई. पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों का कोई मानव अधिकार है या नहीं यह बताने वाला बस्तर में कोई नहीं है. दूसरी ओर सुकमा जवानों को JNU में श्रद्धांजलि देने वाले डॉ बुद्ध सिंह पर भी हमला हो गया. लिहाजा मानव अधिकारवादियों के रवैयों को लेकर बस्तर में अच्छी खासी बहस छिड़ गई है.

बस्तर में नक्सली कभी जन अदालत लगा कर निर्दोष ग्रामीणों को मौत के घाट उतार रहे हैं, तो कभी सरकारी भवनों, स्कूलों और सड़कों को बारूदी सुरंगों से उड़ा रहे हैं. वो इस इलाके में विकास का विरोध भी कर रहे हैं. विकास के कामों में मदद करने वाले पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों के अलावा सरकारी कर्मचारियों की भी जान ले रहे हैं. ऐसे में इनके मानव अधिकारों को लेकर अदालत का दरवाजा कोई नहीं खटखटा रहा है.

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बस्तर में मानव अधिकारों के हनन के मामलों से बचने के लिए पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों को ताकीद किया गया है. एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान आम ग्रामीणों से सादगी से पेश आने के निर्देश इन जवानों को दिए गए हैं.

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