
छत्तीसगढ़ के कांकेर में देसी अंदाज में दूल्हा बारात लेकर निकला. अपनी दुल्हनियां को लेने के लिए बैलगाड़ी पर सवार होकर जब दूल्हा निकला, तो हर कोई उसे निहारने लगा. चांदी के आभूषण के साथ धोती, कमीज और पारंपरिक वेशभूषा में सजे दूल्हे ने कहा कि उसने अपनी परंपरा निभाई है. देसी अंदाज में निकली इस बारात की लोगों ने जमकर सराहना की.
दूल्हा बने शंभुनाथ सलाम बड़गांव सर्कल के क्षेत्रीय गोंडवाना समाज के अध्यक्ष हैं. जानकारी के मुताबिक, दोपहर एक बजे पिपली से निकली बारात शाम चार बजे करकापाल पहुंची. इस दौरान रास्ते से गुजर रही बारात को लोग अपने दरवाजे, खिड़की और छतों पर खड़े होकर देखते रहे. साथ ही लोगों की फोटो और सेल्फी लेने की होड़ लग गई.
छत्तीसगढ़ी संस्कृति को संरक्षित रखने का प्रयास
मॉर्डन जमाने में देसी अंदाज की बारात को देखकर बुजुर्गों ने पुराने समय को याद किया. इस प्राचीन परंपरा को देख कर लोग बहुत खुश नजर आ रहे थे. बेहद सादगी भरी इस परंपरा को खर्चीली शादियों से बचने के लिए एक मिसाल के तौर पर जानी जाएगी. छत्तीसगढ़ी संस्कृति को संरक्षित रखने के इस प्रयास में शादी के दौरान सर्व समाज के पदाधिकारियों की भी मौजूदगी रही.
आने वाली पीढ़ी को करेगी प्रेरित
इस शादी में सियाराम पुड़ो, गजेंद्र उसेंडी, नरेश कुमेटी, बलि वड्डे समेत तमाम समाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे. सिया राम पुड़ो ने कहा कि शंभुनाथ का यह प्रयास आने वाली पीढ़ी को सामाजिक दिशा की ओर रुख करने का बेहतर तरीका है. उन्हें गर्व है कि आज के युवा पीढ़ी के लोग अपने संस्कृति और परंपराओं को न भूलते हुए उन्हें संरक्षित रखने के साथ आने वाली पीढ़ी को प्रेरित भी कर रहे हैं.
सामाजिक पदाधिकारी होने के नाते कर्तव्य निभाया- दूल्हा
दूल्हे शंभुनाथ ने कहा कि आधुनिक के इस युग में प्राचीन और हमारी छत्तीसगढ़ी परंपरा विलुप्त होती जा रही है. इसे संजोकर और संरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है. सामाजिक पदाधिकारी होने के नाते मैंने अपना कर्तव्य निभाया है. आने वाले पीढ़ी के लोग भी आधुनिकीकरण से हटकर अपनी परंपराओं और रीति रिवाजों के अनुसरण करें और अपनी परंपराओं को न भूलें.
खर्चीली शादियों से बचने के लिए बनेगी मिसाल- किसान
बैलगाड़ी देने वाले किसानों ने बताया कि उन्हें भी बेहद खुशी हुई कि उनकी बैलगाड़ी खेती करने के काम के साथ छत्तीसगढ़ी संस्कृति को पुनर्जन्म दिलाने के एक प्रयास में कामगार साबित हुई है. बेहद सादगी भरी इस परंपरा की ओर लौटने की यह पहल आदिवासियों को निश्चित ही अपनी परंपरा की ओर लौटने के लिए प्रेरित करेगी. साथ ही आज की खर्चीली शादियों से बचने के लिए एक मिसाल के तौर पर जानी जाएगी.