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झीरम हमला: जब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं सहित 33 लोगों की हुई थी निर्मम हत्या, नक्सल कमांडर ने बताया कौन था मास्टरमाइंड

झीरम घाटी में नक्सलियों ने 25 मई 2013 को कांग्रेस नेताओं के काफिले को निशाना बनाकर कायराना हमला किया था, इस हमले में नक्सलियों ने 33 लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी. अब एक नक्सली कमांडर ने इस पूरे हमले का असली सच बताया है.

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झीरम हमले की 10वीं बरसी:नक्सली कमांडर ने बताई सबसे बड़े राजनीतिक हत्याकांड की असली कहानी
झीरम हमले की 10वीं बरसी:नक्सली कमांडर ने बताई सबसे बड़े राजनीतिक हत्याकांड की असली कहानी

दस साल पहले आज ही के दिन नक्सलियों ने बस्तर जिले के झीरम घाटी में खूनी खेल खेलते हुए देश के सबसे बड़े राजनीतिक हत्याकांड को अंजाम दिया था. कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर किए गए हमले में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व सहित 33 लोगों की नक्सलियों ने निर्ममता से हत्या कर दी थी. आज झीरम हमले की दसवीं वर्षगांठ को कांग्रेस बलिदान दिवस के रूप में मनाने जा रही है. इस हत्याकांड की असली वजह आज भी रहस्य बनी हुई है. इस से जुड़े कई राज आज भी घाटी में ही दफन होकर रह गए हैं. इस हमले की साजिश कहां रची गई थी, कौन इसके पीछे था? ऐसी ही कई सवालों को आज हम उजागर करने जा रहे हैं. इस हमले में शामिल रहे नक्सली कमांडर की जुबानी जानते हैं इस घटना का सच. 

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झीरम घाटी में आठ सौ नक्सलियों थी मौजूदगी 

छत्तीसगढ़ के झीरम घाटी में एक दशक पूर्व हुए नक्सली हमले की असल कहानी सरकार की ख़ुफ़िया तंत्र की पोल खोल रही हैं. नक्सली हमले में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की हत्या को लेकर सेन्ट्रल रीजनल कमांड के पूर्व नक्सली कमांडर प्रकाश ने बताया कि घटना को अंजाम देने के लिए सीआरसी- 2 के करीब 300 हार्डकोर नक्सली आधुनिक हथियारों से लैस होकर पहुंचे थे. 300 नक्सलियों की मदद के लिए दरभा,दंतेवाड़ा,सुकमा और बीजापुर से आएं जन मिलिशिया कमेटी के करीब 500 नक्सलियों को लगाया गया था. इसमें नक्सलियों के ब्रेकअप पार्टी और मेडिकल टीम के सदस्य भी शामिल रहे हैं. झीरम घाटी में आठ सौ नक्सलियों की मौजूदगी की खबर खुफिया तंत्र को ना लग पाना सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता है.

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हिकुम में 30 दिनों तक चली प्रैक्टिस 

 झीरम कांड को अंजाम देने के लिए हिकुम गांव में नक्सलियों के द्वारा एक महीने तक अभ्यास किया गया था. दरभा घाटी की भौगोलिक परिदृश्य को हिकुम के जंगल में तैयार की गई थी. गांव के समीप जंगल में अस्थाई रूप से दरभा घाटी तैयार कर जवानों को टारगेट करने के लिए 30 दिनों तक रोजाना सुबह-शाम प्रैक्टिस चलती रही. इस दौरान बड़ी संख्या में मौजूद नक्सलियों के लिए खाने-पीने का पूरा इंतजाम आसपास के गांव वालों के द्वारा किया गया था. इससे पहले जवानों की रेकी कर नक्सलियों के द्वारा झीरम घाटी में तैनात रहने वाले जवानों की लोकेशन की पुख्ता जानकारी इकट्ठा कर ली गई थी. घाटी में सुरक्षा व्यवस्था के तहत जवान कहां-कहां खड़े होते हैं और उनकी संख्या कितनी होती है. इस हिसाब से नक्सलियों के द्वारा मास्टर प्लान तैयार कर वारदात को अंजाम की रूपरेखा तैयार की गई थी. 

इस बारूद से लिखी थी नरसंहार की पटकथा

बैलाडीला खदान से लूटी हुई बारूद से झीरम नरसंहार की पटकथा लिखी गई थी. घटना को अंजाम देने के लिए झीरम घाटी में नक्सलियों के द्वारा अलग-अलग हिस्सों में छोटे-बड़े कई आईईडी लगाए गए थे. सुकमा से परिवर्तन रैली  समाप्त करने के बाद कांग्रेसियों का काफिला जैसे ही घाटी में पहुंचा था वहां सामने चल रही वाहन को ब्लास्ट कर नक्सलियों के द्वारा जोरदार धमाका कर एक के बाद एक कई लोगों की हत्याएं कर दी गईं. बैलाडीला खदान से लूटी हुई बारूद और पटाखे से नुकसान पहुंचाने के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. सुकमा और जगदलपुर से आने वाली बैकअप फोर्स रोकने के लिए झीरम घाटी के आगे पीछे सीआरसी टू के लड़ाकू तैनात किए गए थे.

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क्या है सीआरसी

नक्सलियों के सबसे खतरनाक लड़ाकू दस्ते को सीआरसी (सेंट्रल रीजनल कमांड ) के नाम से जाना जाता है. इस दल में शामिल नक्सली सदस्यों की आयु 20 से 30 वर्ष के बीच की होती है. दंडकारण्य में काम करने वाले मिलिशिया कमेटी, एरिया कमेटी,प्लाटून और कंपनी में सक्रिय बेहतर कद-काठी और लड़ाकू प्रवृत्ति के नक्सली को सीआरसी में शामिल किया जाता है. नक्सली संगठन में अभी तक सीआरसी-1,2 और 3 की स्थापना की गई है. सीआरसी-1 में शामिल नक्सली सदस्यों की जिम्मेदारी सेंट्रल कमेटी के शीर्ष नक्सली लीडरों की सुरक्षा व्यवस्था करना होता है. वहीं सीआरसी- 2 और 3 के नक्सलियों को थाना, कैंप और जवानों पर हमला करने की जिम्मेदारी दी जाती है. गढ़चिरौली,आंध्र प्रदेश,तेलंगाना,उड़ीसा के साथ छत्तीसगढ़ मैं बड़ी हमला करने के लि इस संगठन में रखा गया है. ताड़मेटला में 76 जवानों की हत्या में सेंट्रल रीजनल कमांड की नक्सलियों की भूमिका रही है. 

घटना में शामिल नहीं था हिड़मा

झीरम घाटी में 33 लोगों की हत्याकांड के मास्टरमाइंड को लेकर भी एक दशक से चर्चाएं चल रही हैं. घटना के बाद अधिकांश मीडिया हाउस से हिडमा को मास्टरमाइंड बताया गया. घटना में शामिल रहे पूर्व नक्सली की मानें तो इस घटना में हिड़मा की उपस्थिति बिल्कुल भी नहीं रही.आत्मसमर्पित नक्सली कमांडर ने बताया कि घटना के वक्त हिडमा अपने लड़ाकू दस्ते के साथ ग्रेहाउंड फोर्स को टारगेट करने के लिए सुकमा, आंध्र और तेलंगाना के बॉर्डर में गया हुआ था. 24 और 25 मई के दौरान हिडमा की लोकेशन सुकमा के बटुम गांव के आसपास थी. पूर्व नक्सली कमांडर ने बताया कि  झीरम हमले की पूरी जिम्मेदारी देवजी के हाथों में थी. सेंट्रल कमेटी के शीर्ष नक्सली लीडरों के साथ वॉकी-टॉकी में बात कर देवजी के द्वारा घटना को अंजाम दिया गया है. देव जी के साथ जयलाल और सिरदार सहित अन्य बड़े नक्सली कमांडर भी मौजूद थे.

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खूनी खेल के बाद फिर पहुंचे थे हिकुम

देश का सबसे बड़ा राजनीतिक नरसंहार होने के बाद नक्सलियों का जमावड़ा फिर हिकुम गांव पहुंचा था. यहां दो दिनों तक रुकने के बाद सुकमा के जंगल में समीक्षा बैठक भी हुई थी. इस दौरान राजनीतिक हत्या को लेकर नक्सलियों के बीच में नफे और नुकसान को लेकर कयास लगाए गए थे.समीक्षा बैठक में सेंट्रल कमेटी के शीर्ष नक्सली लीडरों की मौजूदगी में जश्न भी मनाया गया था. जिसके बाद नक्सली अपने-अपने इलाके की ओर लौट गए. झीरम कांड के बाद नक्सली संगठन में करीब एक साल काम करने के बाद नक्सली कमांडर प्रकाश संगठन को छोड़कर घर आ गया था. जिसके बाद नारायणपुर में डीआरजी के निरीक्षक सुक्कू नुरेटी के संपर्क में आया और बस्तर आईजी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.


 

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