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कांशीराम की कर्मभूमि पर हाथी-हल साथ, कांग्रेस नहीं बीजेपी का भी बिगड़ सकता है खेल

राज्य की नक्सल प्रभावित 18 सीटों पर पहले चरण में 12 नवम्बर को मतदान होगा, जबकि शेष 72 सीटों पर 20 नवम्बर को वोटिंग कराई जाएगी. मतों की गिनती 11 दिसम्बर को होगी.

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मायावती और अजीत जोगी (फोटो- पीटीआई और फेसबुक)
मायावती और अजीत जोगी (फोटो- पीटीआई और फेसबुक)

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बहुजन समाज पार्टी व जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में आज संयुक्त रैली के जरिए चुनावी बिगुल फूंक रही हैं. मायावती और अजीत जोगी की रैली कई मायनों में महत्वपूर्ण है. विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए दोनों ही दलों ने रैली में पांच लाख लोगों की भीड़ जुटाने का लक्ष्य रखा है.

मायावती इस रैली के माध्यम से अपनी पार्टी को वोट कटवा के लेबल से जहां मुक्त कराना चाहती हैं, वहीं अजीत जोगी अपने ऊपर लगे बीजेपी की बी-टीम होने का धब्बा साफ करना चाहते हैं.

मायावती और जोगी के बीच हुए गठबंधन में 35 सीटें बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के खाते में आई हैं और 55 सीटों पर जनता कांग्रेस को मिली है.

दलित-आदिवासी गठजोड़

जातिगत समीकरण के लिहाज से देखा जाए तो जोगी के पास जहां आदिवासी वोट की ताकत है, वहीं बसपा के पास दलित मतदाताओं का खासा समर्थन है. ऐसे में ये कांग्रेस को बसपा से अलग चुनाव लड़ने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, इस बात की भी प्रबल आशंकाएं हैं. सियासी गलियारों में चर्चा ये भी है कि कांग्रेस को इस गठजोड़ से एक-डेढ़ दर्जन सीटों पर नुकसान पहुंचने की आशंका है.

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छत्तीसगढ़ से कांशीराम का सियासी आगाज

बीएसपी संस्थापक कांशीराम ने अपनी सियासी पारी का आगाज भी छत्तीसगढ़ से ही किया था. 1984 के आम चुनाव में कांशीराम ने जांजगीर लोकसभा सीट पर एक निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में उन्हें सिर्फ 8.81 फीसदी वोट मिले था और उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी थी. जबकि कांग्रेस उम्मीदवार प्रभात कुमार मिश्रा ने 58.61 फीसदी वोट पाते हुए जीत हासिल की थी.

1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ ने नए राज्य के रूप में जन्म लिया. 2003 में हुए पहले राज्य विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 54 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें उसे सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत हासिल हुई और महज 4.45 फीसदी वोट मिले. सिर्फ 54 सीटों की बात करें तो यहां बीएसपी को 6.11 फीसदी वोट प्राप्त हुए.

2013 में सभी सीटों पर लड़ी बीएसपी

2013 के चुनाव में बीएसपी ने सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन इस चुनाव में उसका वोट प्रतिशत और भी कम हो गया. बीएसपी को महज 4.27 फीसदी मत मिले और उसके टिकट पर एक ही विधायक निर्वाचित हो पाया.

दिलचस्प तथ्य यह है कि मायावती और अजीत जोगी दोनों ही अनुसूचित जातियों के मसीहा होने का दावा करते हैं. इस बार दोनों ने हाथ मिलाया है. छत्तीसगढ़ की जनसंख्या के आधार पर देखा जाए तो यहां 10 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं. इन 10 सीटों में से 9 पर मौजूदा समय में कमल खिला हुआ है. बची हुई एक सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार जीता था.

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अब राजनीतिक पंडितों का मानना है कि नया गठबंधन कोई फायदा कर सकता है तो वह बीजेपी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाकर ही संभव है

जातिगत समीकरण

छत्तीसगढ़ में 31.8 फीसदी मतदाता आदिवासी समुदाय से हैं और 11.6 फीसदी वोटर दलित हैं. दोनों समुदाय के मिलकर करीब 43.4 फीसदी वोट होते हैं, जो किसी भी पार्टी को सत्ता में पहुंचाने के लिए काफी अहम हैं. इसी के मद्देनजर बसपा और अजीत जोगी ने आपस में गठबंधन किया है. एक दिलचस्प आंकड़ा ये भी है कि कांग्रेस पिछले तीन चुनाव में महज एक से डेढ़ प्रतिशत वोटों के अंतर से ही सत्ता गंवाती रही है.

आरक्षित सीटों का समीकरण

दरअसल, 2003 के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने एससी की 4-4 सीटें जीती थीं. जबकि बीएसपी ने एससी के लिए आरक्षित 2 सीटों पर कब्जा किया था. इसी तरह 2008 के चुनावों में बीजेपी ने 5 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 4 सीटें जीती थीं. इस चुनाव में बीएसपी को केवल एक ही विधायक एससी सीट से जीता था.

2003 के चुनाव में पूर्व नेता विद्या चरण शुक्ला ने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के खिलाफ बगावत करते हुए एनसीपी ज्‍वॉइन कर ली थी. उन्होंने 7.09 फीसदी वोट हासिल किए थे, क्योंकि शुक्ला की वजह से कांग्रेस ये चुनाव हार गई और पिछले 15 सालों से विपक्ष में बैठ रही है.

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अजीत जोगी को छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री बनाया था, जबकि उनके पास पर्याप्त सपोर्ट भी नहीं था. यही वजह थी कि शुक्ला ने बगावत कर दी थी. इसके बाद हुए 3 चुनावों में बीजेपी के हाथों कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा.

राज्य के कांग्रेस नेतृत्व ने लगातार हुई हार के लिए जोगी के तीन साल की सरकार को जिम्मेदार ठहराया. अब एक बार फिर उनका मायावती से हाथ मिलाना, कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बन सकता है.

गठबंधन समझौते के मुताबिक 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए बसपा 35 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि जेसीसीजे 55 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. अजित जोगी को गठबंधन में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया है.

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