देश के प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री को लेकर छत्तीसगढ़ में अजीबोगरीब स्थिति बन गई है. इस वर्ष मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ के एक ऐसे शख्स को पद्मश्री दिया गया है, जिसके खिलाफ अदालत में चार सौ बीसी का प्रकरण दर्ज है. हाल ही में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति भवन से पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई थी.
इसमें छत्तीसगढ़ राज्य भाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी का नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिए शामिल किया गया था. वह कवि हैं और पत्रकारिता के पेशे से जुड़े रहे हैं. पद्मश्री के लिए नामित होने की घोषणा के बाद लोगों ने चतुर्वेदी की खूब पीठ थप-थपाई, लेकिन पखवाड़े भर बाद एक FIR सामने आई. इसमें श्यामलाल चतुर्वेदी समेत कुल 12 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 419, 420, 406, 408, 477, 34 के तहत मामला दर्ज है.
फिलहाल जमीन की खरीद-फरोख्त और उसकी बिक्री को लेकर दर्ज किए गए मामले में 11 आरोपियों के साथ वह भी जमानत पर है. दरअसल, पदम पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया के तहत नियम है कि पुरस्कार के उम्मीदवार का चरित्र और बीता जीवन सवालों से परे होना चाहिए.
सरकारी जांच एजेंसियां इन पुरस्कारों के दावेदारों के बारे में अपनी रिपोर्ट देती हैं. इसके बाद ही पुरस्कार प्रदान किया जाता है, लेकिन लगता है कि छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं हो रहा है. हाल ही में एक जाने-माने विद्वान को पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए पद्मश्री से नवाजा गया है.
किस मामले में दर्ज है FIR
पुलिस के मुताबिक वर्ष 2003-04 में बिलासपुर के डीपी विप्र महाविद्यालय प्रशासन समिति ने वहां कार्यरत कर्मचारियों के लिए गृह निर्माण समिति बनाने, भूखंड उपलब्ध कराने और आवासीय परिसर निर्माण का निर्णय लिया था. इस दौरान समिति के सर्वेसर्वा श्यामलाल चतुर्वेदी थे. समिति के जिम्मेदार पदाधिकारी के रूप में श्यामलाल चतुर्वेदी ने इस महाविद्यालय के बैंक अकाउंट से रकम निकालकर 8.05 एकड़ भूमि खरीदी. फिर इस जमीन का विक्रय कर उससे मिली रकम को अध्यक्ष प्रशासन समिति और तत्कालीन प्राचार्य डीपी विप्र महाविद्यालय ने मिलकर अपने व्यक्तिगत अकाउंट में जमा करा दी.
इसके चंद दिनों बाद ही कॉलेज के एक कर्मचारी ने इस पर आपत्ति उठाते हुए पुलिस में धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई. मामले के शिकायतकर्ता अरुण कुमार कश्यप के मुताबिक वो भी भूखंड के खरीददार थे, लेकिन उनसे भूखंड की पूरी राशि लेकर भी भूखंड प्रदान नहीं किया गया. भूखंड नहीं मिलने की सूरत में पीड़ित अरुण कश्यप की लिखित शिकायत बिलासपुर सिटी कोतवाली में दर्ज हुई, लेकिन पुलिस ने FIR दर्ज करने से इंकार कर दिया. जब थाने में रिपोर्ट नहीं लिखी गई, तब पीड़ित ने अदालत में परिवाद दाखिल किया.
इसके बाद अदालत ने मामले में संज्ञान लेते हुए रामनारायण शुक्ल, श्यामलाल चतुर्वेदी, नंदकिशोर तिवारी, राजकुमार अग्रवाल, पीके तिवारी, सीएस पटेल और सगराम चंद्रवंशी समेत कुल 12 आरोपियों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करने के निर्देश दिए. फ़िलहाल मामले के सभी आरोपी साल 2007 से जमानत पर है. बिलासपुर की निचली अदालत ने यह मामला पिछले 10 सालों से विचाराधीन है.
पुरस्कार चयन की पारदर्शिता पर सवाल
पदम सम्मानों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार ने हमेशा ताल ठोकी है कि वो पारदर्शी तरीके से इसकी घोषणा कर रही है. केंद्रीय गृह मंत्रालय पद्म पुरस्कारों के चयन के दौरान आवेदकों के आचरण, उनके कार्य और योग्यता की बारीकी से जांच करता है. इस दौरान राज्य सरकार की अनुशंसा पर भी मुहर लगती है, लेकिन इस मामले में इतनी बड़ी चूक कहां और किस स्तर पर हुई, यह जांच का विषय है. इसमें दोराय नहीं है कि पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के कार्य अनुकरणीय और कर्तव्यपरायणता की मिसाल है, लेकिन पद्म पुरस्कार के लिए चयन करने वाली कमेटी सवालों के घेरे में है.
श्यामलाल चतुर्वेदी की तरफ से नहीं मिली प्रतिक्रिया
इस मामले को लेकर आजतक ने पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन फोन उठाने वाले शख्स ने किसी भी तरह की बातचीत करने से इनकार कर दिया. दूसरी ओर FIR दर्ज कराने वाले अरुण कश्यप ने इस बात की तस्दीक की कि यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है. पेशी की तारीख पर तारीख मिलने से सुनवाई नहीं हो पा रही है. उधर बिलासपुर जिले के कलेक्टर पी. दयानंद के मुताबिक चतुर्वेदी के पद्मश्री की अनुसंशा उनके कार्यकाल में नहीं हुई है.