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छत्तीसगढ़: गर्भवती महिलाओं का सहारा बनी मोटर साइकिल एंबुलेंस

नारायणपुर के ग्रामीण इलाकों के लिए यह मोटर साइकिल एंबुलेंस शानदार और जानदार सवारी है. जंगल के अंदर के गांव जो तराई वाले इलाके में बसे हैं या फिर पहाड़ी इलाकों में हैं, वहां यह एंबुलेंस हर जगह पहुंच सकती है. इस एंबुलेंस से इमरजेंसी केस वाले कई मरीजों को अस्पताल पहुंचाया गया और उनकी जान बचाई गई है.

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इस एंबुलेंस से कई गर्भवती महिलाओं की बचाई गई जान
इस एंबुलेंस से कई गर्भवती महिलाओं की बचाई गई जान

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छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाके बस्तर में एक मोटर साइकिल एंबुलेंस इन दिनों काफी चर्चा में है. कच्ची सड़कों वाले इस इलाके में न तो अच्छी मेडिकल सुविधा है और न ही आवागमन का साधन. ऐसे में ये मोटर साइकिल एंबुलेंस रोगियों और गर्भवती महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है. नारायणपुर के रहने वाले अजय ट्रैकरू इसी मोटर साइकिल एंबुलेंस से अपने ग्रामीण साथियों की सेवाएं कर रहे हैं.

गांव की तस्वीर बदलने में नाकाम रही सरकार
राज्य सरकार ने अपनी तिजोरी से तो कभी केंद्रीय मदद से आवागमन के साधनों को मजबूत किया है. कई इलाकों में पक्की सीमेंटेड और कई इलाकों में कच्ची सड़कें बनाई हैं, लेकिन सरकार गांव की तस्वीर बदलने में नाकाम रही, क्योंकि बस्तर के सुकमा, नारायणपुर, कोंटा, कोंडागांव, कांकेरा, दंतेवाड़ा और गीदम जैसे इलाके नक्सल प्रभावित हैं. ऐसे में यहां बुनियादी सुविधाओं की कमी है. ऐसे में बीमार, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को खासी परेशानी होती है.

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जगंली इलाकों में भी अपनी सेवा देती है ये एंबुलेंस
नारायणपुर के ग्रामीण इलाकों के लिए यह मोटर साइकिल एंबुलेंस शानदार और जानदार सवारी है. जंगल के अंदर के गांव जो तराई वाले इलाके में बसे हैं या फिर पहाड़ी इलाकों में हैं, वहां यह एंबुलेंस हर जगह पहुंच सकती है. इस एंबुलेंस से इमरजेंसी केस वाले कई मरीजों को अस्पताल पहुंचाया गया और उनकी जान बचाई गई है.

खास तरीके से बना है एंबुलेंस
इस मोटर साइकिल एंबुलेंस को खास तरीके से बयान गया है. इसे साइड कैरेज से जोड़ा गया है. भीतर स्ट्रेचर बनाया गया है और उसे हरे कपड़े से कवर किया गया है. एंबुलेंस पर नीली बत्ती भी लगाई गई है. इसे चलाने वाले अजय को प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड की भी जानकारी है. लिहाजा वे रास्ते में मरीज को जरूरत के मुताबिक दवाइयां भी मुहैया कराते हैं.

एंबुलेंस के रख-रखाव में खर्च होते हैं 15 हजार
अजय ट्रैकरू ने बताया कि इस एंबुलेंस को बनाने में करीब एक लाख 70 हजार रुपये की लागत आई है, जबकि इसके रख-रखाव और फ्यूल पर महीने भर में 15 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं. उनके मुताबिक, यूनिसेफ, साथी समाज सेवी संस्था और राज्य के स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से यह मोटर साइकिल एंबुलेंस जंगल के अंदर बसे गांववालों की रक्षक बन गई है.

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क्या कहते हैं मरीज?
इस एंबुलेंस की सेवाएं ले चुकी सुमन बाई ने बताया कि बारिश के दौरान उसे लेबर पेन हुआ. उस वक्त घर में हर कोई सदस्य मौजूद था, लेकिन सारे के सारे असहाय थे, क्योंकि गांव में ना तो किसी के पास गाड़ी थी और ना ही 108 एंबुलेंस उन तक पहुंच पाती. ऐसे बीहड़ इलाके में इसी मोटर साइकिल एंबुलेंस से उसे अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उसने अपनी बच्ची को जन्म दिया.

क्या कहते हैं डॉक्टर?
चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. अनूप वर्मा ने बताया, 'ये एक बहुत अच्छी कोशिश है. सरकार को इसमें खास ध्यान देना चाहिए. ऐसे एंबुलेंस की तादाद बढ़ाई जानी चाहिए और दूरगामी जगहों में जहां बड़ी एंबुलेंस की पहुंच नहीं है, वहां मेडिकल सुविधा मुहैया करानी चाहिए.

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