छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित बस्तर और दंतेवाड़ा के जंगलों और आदिवासी इलाकों से निकलकर नक्सली अब राजनांदगांव और कवर्धा जैसे पश्चिमी छत्तीसगढ़ के शहरों की ओर बढ़ रहे हैं. नक्सलियों की इस नई रणनीति में अर्बन नक्सल उनके लिए मददगार साबित हो रहे हैं. नक्सलियों की नई रणनीति की विशेष पड़ताल करने के लिए आज तक संवाददाता आशुतोष मिश्रा पहुंचे राजनांदगांव.
नक्सलवादी संगठन अब छत्तीसगढ़ के बस्तर और दंतेवाड़ा में सीमित नहीं है बल्कि देश के आंतरिक सुरक्षा के लिए घातक नक्सली, छत्तीसगढ़ के शहरी इलाकों में अपने पांव पसार रहे हैं. दक्षिण छत्तीसगढ़ के बस्तर दंतेवाड़ा के जंगलों में रहने वाले नक्सली अब पश्चिमी छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जैसे शहरी इलाकों में डेरा जमा रहे हैं.
इतना ही नहीं, शहरों में नक्सलियों को पैर जमाने के लिए अर्बन नक्सल खुलकर इनकी मदद कर रहे हैं. जिसका खुलासा हाल ही में हुई कुछ गिरफ्तारियां से हुआ. जाहिर है ये राज्य और देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है.
राजनांदगांव में पिछले दिनों जो नक्सल संबंधी वारदात हुई हैं , वह अपने आप में बेहद चिंताजनक हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि नक्सलियों का मूवमेंट बस्तर और दंतेवाड़ा से निकलकर राजनांदगांव और कवर्धा जैसे इलाकों में पसरने लगा है. पिछले 6 महीनों में सामने आई जानकारियों से साफ समझा जा सकता है कि नक्सली छत्तीसगढ़ के शहरों का रुख कर रहे हैं. एक नजर डालते हैं हाल ही में हुई घटनाओं पर जो राजनांदगांव और कवर्धा जैसे शहरों के आसपास हुई हैं.
12 अप्रैल: राजनांदगांव शहर से 135 किलोमीटर दूर मानपुर में तीन आईडी धमाके हुए, जिसमें दो आईटीबीपी के जवान घायल हुए.
10 अप्रैल: मानपुर में बुकमरका पहाड़ी पर पुलिस की सर्च पार्टी को नक्सलियों के भारी जमावड़ा का पता चला है, जहां दोनों तरफ से गोलीबारी हुई. नक्सलियों के पास से लांचर और हथियार बरामद हुए.
19 मार्च: अर्धसैनिक बलों के साथ ऑपरेशन में गाटापार जंगल में महिला नक्सली मारी गई.
9 मार्च: राजनांदगांव में नागपुर की रहने वाली 8 लाख रुपये की इनामी नक्सली एरिया कमांडर सरिता उर्फ सुशीला को छत्तीसगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया.
9 मार्च: छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल और अर्धसैनिक बलों के साझा ऑपरेशन में गाटापार इलाके के नकटीघाटी जंगल से नक्सलियों का पाइप बंद डेटोनेटर नक्सली वर्दे मेडिकल सामान नक्सली साहित्य और भारी मात्रा में असला बरामद किया गया.
27 फरवरी: राजनांदगांव के साबर दानी इलाके में पुलिस को नक्सलियों की बंदूकें और भारी मात्रा में दूसरे जरूरी साजो-सामान बरामद हुए.
26 फरवरी: राजनांदगांव के बकराकट्टा में पुलिस को नक्सलियों के असलहा बंदूक साहित्य रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें बरामद हुई.
15 फरवरी: राजनांदगांव के साले वारा इलाके में पुलिस को नक्सली वर्दी, साहित्य, रेडियो, मोबाइल फोन, कपड़े- दवाइयां, स्टेशनरी और हथियार बरामद हुए.
18 जनवरी: गाटापार के जंगलों में छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश सीमा पर नक्सली और पुलिस के बीच मुठभेड़.
अर्बन नक्सल आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा
राजनंदगांव पुलिस ने 24 दिसंबर को बड़ी कार्रवाई करते हुए वेंकट नाम के एक शख्स की गिरफ्तारी की, जिस पर नक्सलियों के लिए काम करने का आरोप है. छत्तीसगढ़ पुलिस ने इसे अर्बन नक्सल भी कहा था. वेंकट के ठीक पहले सरिता नाम की महिला नक्सली की भी गिरफ्तारी राजनांदगांव शहर से ही हुई थी.
दरअसल नक्सल समर्थक सीमावर्ती घने जंगलों में रहने वाले नक्सलियों को न सिर्फ आर्थिक मदद मुहैया करवाते थे, बल्कि उन्हें जरूरत के सामान समेत जरूरी जानकारियां भी उपलब्ध कराते थे. यह इलाके ज्यादातर राजनांदगांव और कवर्धा जैसे शहरों के बेहद करीब हैं.
छत्तीसगढ़ पुलिस भी मानती है कि अर्बन नक्सल आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं. राजनांदगांव के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस केएल कश्यप ने आज तक से बातचीत में कहा कि अर्बन नक्सल नक्सलियों की लाइफ लाइन है, जो उन्हें हर जरूरी और बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाते हैं.
नक्सलियों का केंद्र है छुरिया इलाका
राजनांदगांव का छुरिया इलाका नक्सलियों का केंद्र है, जिसे epicenter of MMC भी कहा जाता है. छुरिया से एक रास्ता महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की ओर जाता है तो दूसरा रास्ता भंडारा की ओर. महाराष्ट्र गढ़चिरौली नक्सलियों का गढ़ माना जाता है.
दूसरी और यहां ये एक रास्ता मध्य प्रदेश से जुड़े हुए भावे और गातापार जंगल से जुड़ा हुआ है. बस्तर दंतेवाड़ा से जंगल की पूरी लाइन महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से जुड़ती है. राजनांदगांव से निकले राष्ट्रीय राजमार्ग के जरिए नक्सलियों को मदद भी आराम से पहुंच रही है.
राजनांदगांव पुलिस का कहना है कि इस इलाके में दुर्गम पहाड़ियां, घने जंगल और नेशनल हाइवे नक्सलियों के लिए सुगम साधन है, जिसकी वजह से वह बस्तर और दंतेवाड़ा छोड़कर घने जंगलों के जरिए पश्चिम और उत्तर के शहरों की ओर बढ़ रहे हैं.
छुरिया का नक्सली आंदोलन एक दशक पुराना है. एक दशक पहले इसी छुरिया से राजनांदगांव में नक्सली मूवमेंट की शुरुआत हुई थी. बदलते समय के साथ अर्धसैनिक बलों और छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा लगातार चलाए जा रहे ऑपरेशन से राजनांदगांव को नक्सलियों से मुक्त करा लिया गया था.
तीन राज्यों से मिलती हुई सीमाएं इस इलाके में नक्सलियों के लिए सबसे बड़ी मददगार हैं. स्थानीय पत्रकार मनोज चंदेल बताते हैं कि तीन राज्यों की सीमाएं और राष्ट्रीय राजमार्ग से कनेक्टिविटी के चलते नक्सलियों ने कवर्धा और राजनांदगांव को अपना नया ठिकाना बनाया है.
छुरिया के पुलिस थाने को नक्सलियों ने 10 साल पहले आग लगाने के बाद बंदूकें लूट ली थीं और पुलिसवालों को बंधक बना लिया था. 10 साल बाद नक्सलवाद इस इलाके में फिर लौटा है.
चौराहों पर लटकता है लाल झंडा
सुदूर जंगलों में नक्सली हमले होते रहे लेकिन हाल-फिलहाल में पुलिस को शहर के नजदीकी इलाकों से भी आईईडी बरामद होने लगे हैं. शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर बस एक कई सारे ऐसे गांव हैं जो अब राजनांदगांव नगर पालिका का हिस्सा बन चुके हैं.
ऐसे ही इसी एक गांव में रहने वाले उदयराम के भाई को नक्सलियों ने कुछ साल पहले उठा लिया था, लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया. 3 महीने पहले उसने भी अपने घर के पास नक्सलियों की पूरी टीम को आहट महसूस की थी. हालांकि, उदय का कहना है कि हमें नक्सलियों से डर नहीं लगता क्योंकि नक्सली हमें नुकसान नहीं पहुंचाते. ना तो हम उनके मुखबिर हैं ना ही नक्सलियों के लिए काम करते हैं इसलिए नक्सलियों ने हमें नुकसान नहीं पहुंचाया.
आसपास के गांव में कई चौराहों पर लाल झंडा लटकता नजर आता है. ज्यादातर लोग नक्सलियों के बारे में न तो कुछ कहते हैं ना किसी सवाल का जवाब देते हैं. शायद यह नक्सलियों का खौफ है जो यहां के लोगों को जेहन में डर बनाकर बैठा है.
महाराष्ट्र की सीमा की ओर बढ़ते हुए राजनांदगांव के मुख्य हाइवे से निकली यह सड़क जोक तक ले जाती है. जहां हाल-फिलहाल में आईटीबीपी ने अपना एक बड़ा बेस कैंप बनाया है. यह पूरा इलाका नक्सलियों का गढ़ माना जाता है और इसीलिए यहां की सड़कें विकास से महरूम हैं. आसपास की पहाड़ियां घने जंगल और तीन राज्य की सीमाओं की भौगोलिक स्थिति नक्सलियों के लिए ढाल का काम कर रही हैं.