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नक्सलियों ने ठप किया ' छत्तीसगढ़ ' का विकास कार्य!

छत्तीसगढ़ में चल रहे विकास के कार्य को नक्सलियों ने जबरदस्त चोट पहुंचाई है. छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले में नक्सलियों ने रोड निर्माण के कार्य को ठप्प कर दिया है. इन इलाकों में बारिश के पहले निर्माण कार्य को पूर्ण कर लेने का लक्ष्य, दो साल पहले ही निर्धारित कर दिया गया था.

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छत्तीसगढ़ की सड़को कि बद्त्तर हालत
छत्तीसगढ़ की सड़को कि बद्त्तर हालत

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छत्तीसगढ़ में चल रहे विकास के कार्य को नक्सलियों ने जबरदस्त चोट पहुंचाई है. छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले में नक्सलियों ने रोड निर्माण के कार्य को ठप्प कर दिया . इन इलाकों में बारिश के पहले निर्माण कार्य को पूर्ण कर लेने का लक्ष्य, दो साल पहले ही निर्धारित कर दिया गया था. लक्ष्य को पूरा करने के लिए पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने अपनी पूरी ताकत झोक भी दी थी. लेकिन बड़े नक्सली हमलों के चलते सरकार के अरमानों पर पानी फिर गया है. निर्माण कार्य की रफ्तार को रोकने में नक्सलीयों ने कामयाबी हासिल कर ली है. बस्तर में दो दर्जन से ज्यादा सड़कों में अब ना तो मजदूर नज़र आते है और ना ही सरकारी अफसर , ठेकेदार और सुरक्षा कर्मी. दरअसल तमाम सड़कों से पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों को हटा लिया गया है. इससे वहां निर्माण कार्य ठप्प पड़ गया है .

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सुकमा हमले के बाद से CRPF सड़के छोड़ लौट गई अपने बैरक
सुकमा के बुरुकापाल में CRPF जवानों पर हुए हमले के बाद बस्तर की 25 सड़कों का निर्माण आधे में लटक गया है .इन सड़कों पर 6 महीने के लिए काम बंद कर दिया गया है. माओवादी हमले की आशंका के चलते बस्तर के सभी सात ज़िलों में ठेकेदार और मजदूर भी सड़क निर्माण स्थलों से अपना सामान समेट कर जा चुके है. इन इलाकों में आजादी के बाद से कभी भी सड़के नहीं बनी थी. पूर्वी मध्यप्रदेश के जमाने में ज्यादातर इलाकों में सिर्फ कच्ची सड़के बनी थी.| इन सड़कों की मरम्मत भी कभी कभार ही हुई. 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद भी यही हाल रहा. पहले कांग्रेस और उसके बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह के कार्यकाल के दस सालों में भी इन सड़कों की हालत जस की तस बनी रही. क्योकि इन इलाके में नक्सली पूरी तरह से हावी रहे हैं.

बीजेपी जब तीसरी बार सत्ता में आई तो फिर बस्तर में निर्माण के कार्यों ने जोर पकड़ना शुरु कर लिया. खासतौर पर नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस हाऊसिंग कार्पोरेशन ने सड़क निर्माण कार्य की जिम्मेदारी अपने कंधो में ली जिससे गांव की तस्वीर बदलने लगी. जंगल के भीतरी रास्तों के बजाये ग्रामीण पक्की सड़कों पर चहलकदमी करने लगे. गांव में आवाजाही भी शुरू हो गई. यात्री बस, जीप , कार और दूसरे वाहनों की भी आवाजाही शुरू हो गई. साथ ही साथ पुलिस और सुरक्षा बलों के वाहन भी इन सड़कों पर दौड़ने लगे. बस नक्सलियों को यही अखरने लगा. पुलिस और सुरक्षा बलों के वाहन उनकी आखों की किरकिरी बन गये.


माओवादियों के हौसले बुलंद , ग्रामीण हुए मायूस
नक्सलियों ने आम फ़ोर्स के बजाये सड़क निर्माण की सुरक्षा में लगी CRPF टीम को निशाना बनाना शुरू कर दिया. इसी साल पहले सुकमा में 11 मार्च को CRPF के दस्ते पर हमला कर 11 जवानों को निशाना बनाया. इसके बाद 24 अप्रैल को सुकमा में ही CRPF के 25 जवान नक्सली हमले में शहीद हो गए थे. दोनों घटनाओं से राज्य और केंद्र की सरकार सकते में आ गई. सुकमा के बुरुकापाल में हुए हमले के बाद CRPF के तत्कालीन डीजीपी ' सुधीर लखटकिया ' ने सड़क निर्माण नहीं करने और फ़ोर्स को हटने का निर्देश दे दिया था. जिसके बाद फ़ोर्स अपने बैरकों में लौट गई. तब से ही तमाम इलाकों में सड़क निर्माण का पूरा काम ठप्प पड़ा हुआ है. यह काम कब शुरू होगा इसके बारे में ना तो छत्तीसगढ़ पुलिस कुछ कह पा रही है और ना ही CRPF . सड़क निर्माण से इलाके के लोगों को उम्मीद जगी थी कि देर से ही सही लेकिन सरकार ने उनकी सुध तो ली. माओवादियों ने एक बार फिर ग्रामीणों के विकास के सपनों पर पानी फेर दिया है.

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