कांकेर जिले के कर्रामाड़ गांव के कामधेनु गौशाला में भूख से 140 से अधिक गायों की मौत का खुलासा हुआ है. बताया जा रहा है कि महीनेभर में ये गाय बेमौत मारी गई. हालांकि इस खुलासे के बाद गौशाला प्रबंधन मामले की लीपापोती में जुट गया है. गौशाला प्रबंधन ने इस अवधि में सिर्फ 20 उम्रदराज गायों के मरने की बात कही है.
गायों की मौत पर हंगामा
दरअसल कांकेर के कर्रामाड़ गांव की कामधेनु गौशाला को लोग अबतक काफी सम्मानीय नजरों से देखते थे. लेकिन अब ये गौशाला ग्रामीणों की आंखों की किरकिरी बन गई है. यहां काम करने वाले कर्मी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि माहभर के भीतर इस गौशाला में 140 गायों की मौत हुई है. सर्वाधिक मौत भूख के कारण हुई है, जबकि इस गौशाला को हर माह लाखों रुपए गायों के संरक्षण के लिए मिलते हैं. राज्य गौसेवा आयोग के रजिस्टर में यह गौशाला प्राथमिक रूप से दर्ज है.
भूख की वजह से गायों की मौत का मामला
इस गौशाला को साल 2008 में स्थापित किया गया जबकि 2012 से इसे सरकारी अनुदान मिलना शुरू हो गया. इस गौशाला में आधा दर्जन कर्मी काम करते हैं, गायों की संख्या 283 है. कामगारों के मुताबिक गर्मी और बारिश के अलावा बिमारियों से भी कई गाएं मारी गईं. उनके मरने के बाद तत्काल गौशाला प्रबंधन उन्हें ठिकाने लगा देता है इसलिए किसी को भी गायों की मौत की भनक तक नहीं लग पाती. गौशाला के एक कर्मी जागेश्वर जैन के मुताबिक डेढ़ महीने के भीतर यहां करीब 130-150 के आसपास गायें मर गईं. वो कहते हैं कि ठीक से दाना-पानी मिलेगा तभी तो गाय जिंदा रहेगी. गौशाला के मैदान में अभी भी आधा दर्जन से अधिक गायें मरी पड़ी हैं. उनके शवों से आ रही बदबू के कारण ग्रामीणों को बीमारी फैलने का डर सता रहा है.
गौशाल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप
हफ्ते भर पहले ही स्थानीय वेटेनरी अस्पताल के डॉक्टर ने इस गौशाला का मुआयना किया था. स्थानीय वेटनरी डिस्पेंसरी में 3 अगस्त को 6 गायों की, 7 अगस्त को पांच, 8 अगस्त को 2, 9 और 10 अगस्त को एक-एक गाय, 11 अगस्त को दो और 12 अगस्त को तीन गायों की मौत यहां के रजिस्टर में दर्ज की गई है. स्थानीय पशु चिकित्सक के मुताबिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गायों की मौत बीमारी से नहीं, बल्कि भूख की वजह से होना पाया गया है. उनके मुताबिक गौशाला प्रबंधन ने अगर समय रहते गायों के बीमार होने की जानकारी दी होती तो शायद गायों को बचाया जा सकता था.
मामले की जांच तेज
हालांकि इस संबंध में उन्होंने एक रिपोर्ट गौसेवा आयोग और राज्य के पशु चिकित्सा विभाग को सौंपी है. गायों की मौत के बाद कई सामाजिक संस्थाएं इस गौशाला का जायजा लेने पहुंची. इन संस्थाओं ने इस गौशाला को बीते तीन बरस में मिली सरकारी रकम का ब्योरा भी पेश किया है. सामाजिक कार्यकर्ता सूर्यकांत तिवारी ने इस गौशाला का जायजा लिया. उन्होंने बताया की 3 साल में लगभग 45 लाख रुपए की रकम इस गौशाला को जारी की गई.
गौशाल प्रबंधन की सफाई
उधर, गौशाला प्रबंधक का कहना है कि लोग अफवाह फैलाकर इस गौशाला को बदनाम करने में जुटे हैं. उसकी दलील है कि इस गौशाला में बुजुर्ग गायों की संख्या सर्वाधिक है. इसलिए गाहे-बगाहे ये गाय प्राकृतिक रूप से दम तोड़ रही है, ना की भूख और बिमारी से. कामधेनु गौशाला के संचालक पीयूष घोष तमाम आरोपों को झूठा बता रहे हैं, इस गौशाला के निरीक्षण और गायों की मौत की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित की गई है. इस समिति को 10 दिन के भीतर इस गौशाला की असलियत सरकार को सौंपनी हैं, फिलहाल गौशाला में गंदगी की सफाई और बीमार गायों को दवा देने का काम शुरू हो गया है.