एक ओर देश के ज्यादातर बैंकों में रकम जमा करने और निकालने के लिए मारामारी हो रही है, तो दूसरी ओर कई ऐसे भी बैंक हैं जहां ना तो ग्राहकों का जमावड़ा है और पैसे निकालने और जमा करने के लिए ग्राहकों को कतार में खड़ा होना पड़ता है. लोग अपना कामकाज निपटाने के साथ साथ पैसा जमा भी कर रहे है और निकाल भी रहे है.
टोकन देना रहा फायदेमंद
दरअसल बैंक के मैनेजर ने अपने ग्राहकों को
टोकन दे दिया है और उन्हें समय भी बता दिया है.
इसका नतीजा यह हुआ की ग्राहक अपने तयशुदा समय
पर बैंक आ रहे है और बड़ी आसानी से अपनी रकम
जमा भी कर रहे है और निकाल भी रहे है. ऐसी ही
व्यवस्था और भी दूसरे बैंको में भी हो जाए तो जनता
राहत की सांस लेगी. रायपुर के रजबंधा मैदान स्थित
SBI की ब्रांच में बड़ी शांति के साथ कामकाज चल रहा
है. इस ब्रांच के मैनेजर गौरव भटनागर के मुताबिक जो
SBI के ग्राहक नहीं भी है, ऐसे लोग भी इस ब्रांच में
अपनी पुरानी रकम को बदलवाने आ रहे है. उनके एटीएम
में भी भीड़ नहीं लग रही है क्योंकि वह सभी को टॉकिन
दे रहे है.
लगा दी जूते-चप्पल और पासबुक की लाइन
उधर रायपुर से लेकर बस्तर और सरगुजा तक के
कई बैंको में पैसा जमा करवाने और निकलवाने के लिए
कतार में इंसान नहीं, बल्कि जूते चप्पल और पासबुक
हिस्सा ले रहे है. इस अनोखी तकनीक के चलते ना तो
बैंक के ग्राहक परेशान हो रहे है और ना ही बैंक कर्मी.
बैंको के सामने अपने जूते चप्पल रखने वाले ग्रामीण पूरी
ईमानदारी के साथ इस तरह की कतार को अंजाम दे रहे
हैं. कोई भी चप्पल जूतों को आगे पीछे करने की
हिमाकत नहीं करता, जिस किसी की भी बारी आती है
वो अपने चरण पादुकाओं को पहचान कर बैंक में दाखिल
होता है. जूते चप्पलों को कतार में लगाने का क्रम सुबह
6 बजे शुरू होता है और शाम तीन बजे तक खत्म हो
जाता है. कोई भी ग्राहक देर रात या फिर अगली सुबह
अपने जूते चप्पल नहीं रख सकता.
इधर धमतरी के ग्रामीण इलाको में एक और अनोखा नजारा देखने को मिल रहा है. सुदूर जंगलो के भीतर के गांव में बैंक के ग्राहक अपनी पासबुक को कतार में लगा देते है. पासबुक हवा में ना उड़े और सुरक्षित रहे इसके लिए पासबुक के ऊपर पत्थर रख दिया जाता है. आम ग्रामीणों के बीच में से एक दो लोगो की ड्यूटी लगती है, ये ग्रामीण पासबुक और उसे रखने वालो पर पैनी निगाहें रखते है. पासबुक की सुरक्षा की जवाबदारी इन्हीं ग्रामीणों पर होती है, बैंक खुलने के बाद अपनी बारी से ग्राहक अपनी रकम जमा भी कर रहे है और निकाल भी रहे है. इस सब कवायत के बीच ग्रामीणों का आपसी समझ काबिले तारीफ है.
वापिस आया पुराना जमाना
बैंको में रकम की निकासी और जमा करने के ऐसे
परंपरागत तौर तरीके उस दौर की याद दिला रहे है, जब
ट्रेन आने पर यात्री ट्रेन की खिड़की से रुमाल या गमछा
फेक कर अपने लिए सीट रिजर्व कर लिया करते थे.
स्टेशन में ट्रेन आते ही यात्रियों का हुजूम सामान लेकर
नहीं बल्कि रुमाल लेकर खिड़की की ओर टूट पड़ता था.
500-1000 के नोटों को बदलवाने के लिए आधुनिक दौर
में ये परंपरागत तौर तरीके आज भी कारगर दिखाई दे
रहे है.