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छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवा की फिर खुली कलई, शव को खाट पर 7 किमी दूर घर ले गए परिजन

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के मर्दा गांव में एक बार फिर ऐसा वाकया सामने आया है , जिसे देखने के बाद ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्वास्थ सेवाओं की हकीकत का खुलासा होता है. स्वास्थ्य केंद्र कोयलबेड़ा में शव वाहन न होने से मरीज की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को उसे 7 किमी की दूरी पर खाट में रखकर कंधे पर ले जाना पड़ा.

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छत्तीसगढ़ में गरीबों को अक्सर रिक्शे या खाट पर ले जाना पड़ता है शव
छत्तीसगढ़ में गरीबों को अक्सर रिक्शे या खाट पर ले जाना पड़ता है शव

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छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के मर्दा गांव में एक बार फिर ऐसा वाकया सामने आया है , जिसे देखने के बाद ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्वास्थ सेवाओं की हकीकत का खुलासा होता है. स्वास्थ्य केंद्र कोयलबेड़ा में शव वाहन न होने से मरीज की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को उसे 7 किमी की दूरी पर खाट में रखकर कंधे पर ले जाना पड़ा.

एक शख्स ने इस तरह का वाकया जब देखा तो उसने तत्काल मोबाइल निकाला और फोटो खींची तथा वीडियो भी बनाया. पड़ताल करने पर पता चला कि इस अस्पताल में एम्बुलेंस है , लेकिन पिछले डेढ़ साल से खराब पड़ी है.

गौरतलब है कि आज भी बस्तर के सुदूर इलाकों में परंपरागत ढंग से शव ढोने की परंपरा चली आ रही है. वह भी तब जब केंद्र और राज्य सरकारें स्वास्थ सेवाओं की बहाली का न केवल दावा करती है बल्कि अखबारों और टेलीविजन में बड़े- बड़े विज्ञापन भी जारी करती हैं. घटना नक्सल प्रभावित कांकेर के मर्दा गांव में सामने आई है. जहां आज भी खटिया ही एंबुलेंस है, और यही शव वाहन की तर्ज पर काम करती है.

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दर्जनों गांव में मरीजों को अस्पताल तक लाने ले जाने के लिए परिजनों को खाट का इस्तेमाल करना होता है. गांव वाले जिस खटिया में मरीज को लेकर सरकारी अस्पताल में चिकित्सा के लिये आते हैं, मृत्यु हो जाने पर उसी खटिया में अपने प्रियजन के शव को ढोकर ले जाना पड़ता है. जब सोशल मिडिया में जब इस घटना का वीडियो वायरल हुआ तब सरकारी मशीनरी हरकत में आई. हालांकि जिले के कलेक्टर और मुख्य स्वास्थ अधिकारी ने इस मामले में जानकारी का आभाव बता कर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

ऐसा ही मामला कोयलीबेड़ा सामुदायिक स्वस्थ्य केंद्र में उस वक्त देखने को मिला जब मर्दा निवासी जानसिंग की तबियत खराब होने पर इलाज के लिये लाया गया था. बताया जा रहा है कि मर्दा निवासी जनसिंग पिता सुकालूराम को तबियत ख़राब होने पर स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था. वह टीबी का मरीज था. परिवार वालों का कहना है कि उसे खाट पर ही रखकर अस्पताल में दाखिल कराया गया था और उसकी मौत के बाद उसी तरह से वापस गांव जाना पड़ रहा है. अस्पताल से उनके घर की दूरी 7 किमी है.

सिर्फ इस पीड़ित परिवार ही नहीं बल्कि इलाके के कई लोगों को बिमारी की अवस्था में इसी तरह अस्पताल में आना जाना पड़ता है. एम्बुलेंस या फिर 108 जैसी सुविधाओ के बारे में ग्रामीणों को न तो कोई जानकारी है ना ही इस सुविधा का गांव के किसी घर परिवार को लाभ मिला है.

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मृतक जनसिंग की पत्नी और बेटा इस खाट एम्बुलेंस के साथ चल रहे थे. स्थानीय राहगीरों ने जब उन्हें देखा तो उन्हें कोई अचरज नही हुआ, लेकिन इसी दौरान इस मार्ग से गुजरने वाले दो मोटर साइि‍कल सवार लड़कों को यह दृश्य देख कर हैरत हुई. उन्होंने इसे अपने मोबाइल कैमरे में कैद किया. पीड़ितों से पूछने पर पता पड़ा कि उन्हें इसके लिए न ही सरकारी मदद मिली और न ही किसी ने उसे शव वाहन उपलब्ध कराने की दिलचस्पी दिखाई.

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