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छत्तीसगढ़: राइस मिलों की हड़ताल से थमे 1 लाख ट्रकों के पहिए, किसान परेशान

लेकिन इस धान से चावल बनाने वाले राइस मिलर्स सरकार की नीति को घाटे का सौदा बता कर हड़ताल पर चले गए है. उनका आरोप है कि मौजूदा नीति से उन्हें चावल बनाने में 500 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है.

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ट्रकों की थमी रफ्तार
ट्रकों की थमी रफ्तार

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छत्तीसगढ़ में हफ्ते भर से चली आ रही एक ओर राइस मिलरों की हड़ताल से एक लाख ट्रकों के पहिये थम गए है, तो दूसरी ओर नोटबंदी के चलते मजदूरों और किसानों का बुरा हाल है. किसान मंडियों से ना तो धान की खरीदी हो रही है और ना ही उसका उठाव. लिहाजा 10 लाख से ज्यादा मजदूरों के सामने रोजीरोटी का संकट खड़ा हो गया है. वहीं किसानों को अपनी फसल की चिंता सता रही है, क्योंकि उनकी मेहनत की कमाई वीरान धान मंडियों में पड़ी है. जहां उनका कोई खरीददार नहीं है. राज्य सरकार ने 16 नवम्बर से धान की खरीदी शुरु कर दी है.

लेकिन इस धान से चावल बनाने वाले राइस मिलर्स सरकार की नीति को घाटे का सौदा बता कर हड़ताल पर चले गए है. उनका आरोप है कि मौजूदा नीति से उन्हें चावल बनाने में 500 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है. धान की सालाना खरीदी लाखो क्विंटल में होती है, इसके लिए केंद्र और राज्य मिल कर लगभग २० हजार करोड़ से ज्यादा की रकम का बंदोबस्त करते है.

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थम गए 1 लाख ट्रकों के पहिए
छत्तीसगढ़ में धान मंडियों, मिलों और राष्ट्रीय और राज्य मार्गों के इर्दगिर्द एक लाख से ज्यादा ट्रकों के पहिये थम गए है. ये ट्रक हफ्ते भर से राइस मिलरों की हड़ताल के खत्म होने का इंतजार कर रहे है. लेकिन हड़ताल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है. हड़ताली राइस मिलरों और सरकार के बीच दो दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. राइस मिलरों की दलील है कि कस्टम मिलिंग से उन्हें 500 रुपये का नुकसान हो रहा है. लेकिन सरकार बंद होती और घाटे में जा रही राइस मिलो के साथ न्याय करने को तैयार ही नहीं है. उनके मुताबिक़ धान ढोने का मालभाड़ा लंबी दूरी के लिए घटते क्रम में और कम दूरी का भाड़ा धान मंडियों से बढ़ते क्रम में दिया जा रहा है. वो भी 15 साल पुराने रेट में जब डीजल 20-22 रुपये प्रति लीटर मिलता था. जबकि आज महंगाई 200 गुना बढ़ गयी है.

बाजार में 8-10 रुपये में मुहैया होने वाला बारदाना उन्हें 32 रुपये में दिया जा रहा है. सरकार को प्रति दिन 100 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है. राइस मिलरों की हड़ताल से राज्य के 150 से ज्यादा साल्वेंट प्लांट तक बंद हो गए है. क्योंकि उनके पास चावल बनाने के लिए धान ही नहीं है. राइस मिलर्स की दलील है कि राज्य सरकार इस मामले में केंद्र के दिशा निर्देशो का पालन करें, प्रदेश अध्यक्ष योगेश अग्रवाल राइस मिलर्स के मुताबिक सरकार उनकी वाजिब मांगो पर भी टालमटोल कर रही है. इससे राइस उद्योग तो चौपट हो ही रहा है, लेकिन उनके साथ किसान, मजदूरों के भी बुरे दिन शुरु हो गए है.

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मंडियों में नहीं है खरीददार
वहीं 8 नवंबर से नोटबंदी और 10 तारीख से राइस मिलर्स की हड़ताल से मजदूरों और किसानों की हालत पतली होती जा रही है. केंद्र और राज्य सरकार मिलकर सालाना 20 हजार करोड़ की धान की खरीदी करते है. इस धान को चवाल में तब्दील कर उसे देश के PDS सिस्टम को मुहैया कराया जाता है. नोटबंदी और हड़ताल की वजह से राज्य भर की धान मंडियां वीरान पड़ी है. किसानों को उम्मीद थी कि इन धान मंडियों में उनकी फसल हाथों हाथ बिक जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. मंडियों में कोई खरीददार नहीं आ रहा है. इसके चलते हमालों और मजदूरों से लेकर किसानों को तंगहाली का सामना करना पड़ रहा है. 20 लाख से ऐसे घर परिवार है जो पूरी तरह से आजीविका के लिए इन्हीं धान मंडियों पर निर्भर है. दिनों दिन उनकी हालात खस्ता होती जा रही है.

उधर राइस मिलरों की मांग को लेकर सरकार भी टस से मस नहीं हो रही है, दो दौर की बैठक का नतीजा सिफर रहा है. हड़ताली राइस मिलर मौके की नजाकत को देख कर लचीला रुख अपना रहे है. वही सरकार ने भी उन्हें बातचीत का न्योता भेजा है, राज्य के खाद्य मंत्री पुन्नू लाल मोहले के मुताबिक समस्या का कोई न कोई हल जल्द निकलेगा.

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छत्तीसगढ़ में किसानों की आर्थिक स्थिति धान की फसल का उत्पादन और मंडियों में उसकी सर्मथन मूल्य या फिर उससे अधिक दाम में बिक्री से आका जाता है. साल भर में यही एक मौका होता है जब किसानों की फसल मुंह मांगे दाम में बिकती है. इस मौके को कोई भी किसान खोना नहीं चाहता. किसान की कोशिश होती है कि धान का एक एक दाना बिक जाए, ताकि अगली फसल के लिए उसके जेब में रकम हो और घर खर्च के लिए तिजोरी भी भरी हो. फिलहाल किसान सपने ही बुन रहे है. उन्हें डर इस बात का है कि मंडियों में लावारिस रखे उनके धान पर कोई हाथ साफ ना कर दें.

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