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सामाजिक प्रताड़ना से तंग शख्स ने दी जान, शव ले जाने के लिए एंबुलेंस तक नहीं मिली

छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले में सामाजिक बहिष्कार के चलते गणेश पटेल नाम के एक शख्स ने आत्महत्या कर ली. वह अपने परिवार का कर्ता-धर्ता था. उसकी मौत के बाद भी समाज के ठेकेदारों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. पुलिस और अस्पताल प्रशासन ने भी शर्मनाक रवैया दिखा.

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ठेले में शव को ले जाते परिजन
ठेले में शव को ले जाते परिजन

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आजादी के सात दशक बाद भी भारत सामाजिक कुरीतियों से मुक्त नहीं हो पाया है. आज भी सामाजिक प्रताड़ना से तंग आकर लोग अपनी जान दे रहे हैं. ऊपर से प्रशासन की लापरवाही मानवता को शर्मसार करने वाली है. ताजा मामला छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले का है, जहां सामाजिक बहिष्कार के चलते गणेश पटेल नाम के एक शख्स ने आत्महत्या कर ली. वह अपने परिवार का कर्ता-धर्ता था. पिता की  मौत के बाद वो परिवार के मुखिया के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कर रहा था, लेकिन सामाजिक प्रताड़ना ने उसे जीने नहीं दिया.

इतना ही नहीं, इस शख्स की मौत के बाद भी समाज के ठेकेदारों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. मौत को गले लगाने के बाद इस शख्स की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजने तक के लाले पड़ गए . ना तो किसी ने निजी वाहन मुहैया करवाया और ना ही पुलिस ने कोई सहायता की. मौके पर पहुंची पुलिस ने लाश का पंचनामा कर पीड़ित परिवार को निर्देशित कर दिया कि वे शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल पहुंचाएं. प्रशासन की इस शर्मनाक लापरवाही ने मानवता को भी शर्मसार कर दिया.

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पीड़ित परिवार ने मजबूरन ठेला में शव को रखकर अस्पताल का रुख किया. पोस्टमार्टम के बाद अस्पताल के कर्मियों ने लाश परिजनों को सौप दी. इसके बाद परिजन लाश को घर ले जाने के लिए वाहन तलशते रहे, लेकिन प्रभावशील समाज के ठेकेदारों के चलते ना तो पीड़ित परिवार को निजी वाहन मिल पाया और ना ही अस्पताल ने एंबुलेंस की कोई व्यवस्था की, जबकि केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से सरकारी अस्पताल से पीड़तों के घर तक लाश पहुंचाने के लिए निःशुल्क एंबुलेंस का बंदोबस्त वाली योजना चल रही है. पुलिस और फिर अस्पताल प्रशासन की ओर से निराशा मिलने के बाद पीड़ित परिवार ने  ठेला में शव को लादकर घर पहुंचाया.

भाई के अंतरजातीय विवाह करने पर हुआ था सामाजिक बहिष्कार

जांजगीर के चांपा थाना के अंतर्गत कुरदा निवासी गणेश पटेल के छोटे भाई संतोष पटेल ने दो साल पहले अन्तरजातीय विवाह कर लिया था. इसके बाद गांव के प्रभावशील वर्ग ने उनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार शुरू कर दिया. दबंगों के आगे गांव के तमाम लोगों ने घुटने टेक दिए. इस परिवार का हुक्का पानी बंद करने के साथ ही किसी ने भी उनके साथ मेलजोल नहीं रखा. यहां तक की सामाजिक बहिष्कार के चलते गणेश पटेल के छोटे भाई -बहन की शादी तक नहीं हो पा रही थी.  

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उधर, सामाजिक बहिष्कार के चलते संतोष अपनी पत्नी के साथ दूसरे गांव चला गया, ताकि वह अपना दाम्पत्य जीवन गुजार सके. हालांकि सामाजिक अत्याचार ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. सामाजिक बहिष्कार ने गणेश पटेल के परिवार की कमर तोड़ दी. आखिरकर गणेश ज्यादा दिन तक तनाव नहीं झेल पाया और उसने आत्महत्या कर ली. उसने अपने सुसाइड नोट में सामाजिक बहिष्कार से पैदा हुई स्थिति का जिक्र किया.

गणेश की मौत के बाद भी नहीं पसीजा समाज

सामाजिक अत्याचार से परेशान होकर गणेश पटेल ने खुदकुशी कर ली, लेकिन इसके बावजूद उसके परिवार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. उसकी मौत के बाद भी पीड़ित परिवार का सामाजिक बहिष्कार जारी है. समाज के ठेकेदारों के दबाव में आकर पुलिस ने उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल तक पहुंचाने का कोई बंदोबस्त नहीं किया.

उधर, पोस्टमार्टम के बाद समाज के ठेकेदारों ने अस्पताल प्रशासन और निजी वाहन चालकों पर अपना दबाव बनाया, जिसके चलते पीड़ित परिवार को शव ले जाने के लिए वाहन नहीं मिला . इस गर्दिश में इस पीड़ित परिवार पर न तो समाज पसीजा और न ही प्रशासन.

अस्पताल ने एंबुलेंस देने से खड़े किए हाथ

सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों ने लाश को घर तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस देने से हाथ खड़े कर दिए दूसरी ओर निजी वाहन चालकों ने भी वाहन मुहैया कराने से इंकार कर दिया. आखिरकर करीब छह घंटे के इंतजार के बाद पीड़ित परिवार ने दोबारा उसी ठेले पर गणेश के शव को रखकर अपने घर लाया. इस मामले में जांजगीर चाम्पा के बीडीएम अस्पताल के सिविल सर्जन और डाक्टरों से बातचीत करने का प्रयास किया गया, लेकिन इस  घटना के बारे में उन्होंने अनभिज्ञता जताई. उधर, पुलिस कर्मियों का कहना है कि वाहन का बंदोबस्त नहीं होने पर शव को अस्पताल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी पीड़ित परिवार की होती है.

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