छत्तीसगढ़ के बेमेतरा के बावमोहरा गांव में 175 साल के गंगाराम की मौत हो गई. गंगाराम की मौत से पूरा गांव सदमे में है. दूर-दूर से लोग गंगाराम को अंतिम बार देखने पहुंच रहे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि गंगाराम कोई इंसान नहीं बल्कि एक मगरमच्छ है, गांववालों के अनुसार वह तालाब में 175 साल से रह रहा था.
सुबह गंगराम पानी के ऊपर तैरने लगा तो मछुआरों ने पास जाकर देखा तो गंगाराम की सांसें थम गईं थी. ग्रामीणों ने उसे पानी से बाहर निकाला और सजा धजाकर अंतिम यात्रा निकली. उसके बाद अंतिम संस्कार किया गया. लोगों के बीच रहने के कारण मगरमच्छ उनसे घुल-मिल गया था. लोगों की कई पीढ़ियां इस मगरमच्छ को देखते हुए निकल गईं. यह मगरमच्छ गांववालों के जीवन का हिस्सा बन गया था. यही कारण है कि मगरमच्छ का अंतिम संस्कार बिल्कुल अपनों के जैसे किया गया.
गंगाराम के नाम से मंदिर बनवाया जाएगा
शव को पीएम के लिए बाहर ले जाने से ग्रामीणों ने मना कर दिया. तब उच्च अधिकारियों के निर्देश पर गांव में ही 4 डॉक्टरों की टीम ने मगरमच्छ के शव का पीएम किया गया. ग्रामीणों की आस्था के चलते गांव में ही शव को दफना दिया गया है. स्थानीय लोगों और ग्रामीणों के सहयोग से तालाब किनारे अब गंगाराम के नाम से मंदिर बनवाया जाएगा. मगरमच्छ की लंबाई 3.40 मीटर और मोटाई 1.30 मीटर थी. उसका वजन ढाई क्विंटल था.
मगरमच्छ को दाल-चावल भी खिलाते थे गांववाले
ग्रामीणों के मुताबिक, मगरमच्छ ने कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. तालाब में नहाते समय जब लोग मगरमच्छ से टकरा जाते थे या पैर पड़ जाता था तो वह हट जाता था. तालाब में मौजूद मछलियां गंगाराम का आहार थीं. ग्रामीणों ने बताया कि कई बार लोग मगरमच्छ को दाल-चावल भी खिला दिया करते थे. यहां स्व. हरि महंत रहते थे. वे गंगाराम पुकारते थे, तो मगरमच्छ तालाब के बाहर आ जाता था.
वैसे तो मगरमच्छ की औसत आयु 70 साल होती है लेकिन रूस के एक चिड़ियाघर में 115 साल का मगरमच्छ होने का भी दावा किया गया है.