छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात अर्धसैनिक बलों के जवान गहरे अपसाद के बीच अपनी ड्यूटी करते हैं और यही वजह है कि पिछले एक महीने में तीन जवानों ने आत्महत्या की है. सूत्रों के मुताबिक ये तीनों जवान लंबे समय से इस इलाके में तैनात थे और मानसिक तौर से पारेशान थे.
बस्तर में तैनात जवानों के बीच यह चर्चा भी आम है कि इस इलाके में उन जवानों की तैनाती होती है जिन्हें उनके सीनियर सजा देना चाहते हैं.
छत्तीसगढ़ के बस्तर में केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान विपरीत प्रस्थितियों में काम करते हैं. नक्सलियों से निपटेने की चुनौती के बीच उन्हें इस बात का भी खयाल रखना पड़ता है कि कहीं मलेरिया के मच्छर न काट लें. इस डर की वजह से जवान गर्मी में भी मोटे कपड़े पहने रहते हैं.
यहां के हाट बाजारों में सब्जी-भाजी की तरह मच्छर काटने से बचने वाले तेल और ट्यूब बिकते है. इनके मुख्य खरीददार सुरक्षा बलों के जवान होते है जबकि स्थानीय आबादी लंबे अर्से से यहाँ रहने के कारण इम्यून हो चुकी है. उन्हें मच्छर काटने का उतना असर नहीं होता जितना कि यहां आने वाले बाहरी लोगों पर होता है. बस्तर में मलेरिया से पीड़ित जवानो की संख्या सर्वाधिक है. यहां कई जवानो की जान मस्तिष्क ज्वर और सेरेब्रल मलेरिया से जा चुकी है. इसके अलावा कई जवान डेंगू और हार्टअटैक का शिकार भी हुए हैं.
छत्तीसगढ़ में पिछले दो वर्षों में जवानों की आत्महत्या और बीमारी से होने वाली मौत की घटनाओं में जबरदस्त इजाफा हुआ है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में CRPF के पांच जवानो ने आत्महत्या की जबकि 2016 में 31 जवानो ने आत्महत्या की. वर्ष 2017 के 15 अप्रैल तक की अवधि में CRPF के 13 जवान आत्महत्या कर चुके हैं. वर्ष 2016 में CRPF के 92 जवान हार्ट अटैक, पांच जवान मलेरिया और 26 जवान डेंगू से ग्रसित होने की वजह से काल के गाल में समा गए. इसी तरह वर्ष 2015 में CRPF के 82 जवानों की मौत हार्टअटैक , 13 जवानो की मौत मलेरिया व डेंगू से हुई जबकि 35 जवानों ने आत्महत्या की. इसी अवधि में 277 जवानों की मौत अन्य कारणों से हुई है.
बस्तर में तैनात जवानों की एक मुख्य शिकायत है कि उनके अधिकारी यहां आते हैं. उनकी परेशानियां और शिकायतें सुनते हैं फिर दिल्ली जाकर भूल जाते हैं.